भारत के लगभग आधे बच्चे पहले से ही कुपोषित हैं और सरकार द्वारा महामारी से निपटने के लिए उठाए गए कदम लाखों अन्य बच्चों को कुपोषण के खतरे में डाल देंगे। झारखंड में आंगनवाड़ी कर्मचारी सभा की महासचिव सुंदरी तिर्की ने बताया,“अप्रैल के बाद से आंगनवाड़ियों में बच्चों को भोजन नहीं मिल रहा है, क्योंकि उस समय उन्हें या तो क्वारंटाइन सेंटर बना दिया गया था या महामारी के कारण बंद कर दिया गया था।” वह बताती हैं कि कई बच्चों के लिए आंगनवाड़ी केंद्रों में परोसा जाने वाला खाना दिन का एकमात्र पौष्टिक भोजन होता था। इसके बावजूद लॉकडाउन की वजह से इन ग्रामीण बाल देखभाल कार्यक्रमों को चलाने के लिए जिम्मेदार महिला स्वयं सहायता समूहों में से किसी ने भी फरवरी-मार्च के बाद से भोजन नहीं बनाया है। इस तरह के व्यवधानों के नतीजे भयावह हो सकते हैं। जर्नल ऑफ ग्लोबल हेल्थ साइंस में प्रकाशित एक शोधपत्र की मानें तो यह लाखों बच्चों के कुपोषण का कारण बन सकता है। यह पत्र चेतावनी देता है कि अकेले झारखंड में 3.5 लाख बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हो सकते हैं और अन्य 3.6 लाख बच्चों का वजन सामान्य से कम हो सकता है।
यह चेतावनी “लिविंग ऑन द एज: सेंसटिविटी ऑफ चाइल्ड अंडरन्यूट्रिशियन प्रिवेलेंस टू बॉडीवेट शॉक इन द कांटेस्ट ऑफ द 2020 नैशनल लाॅकडाउन” पत्र में दी गई है। चिंता यहीं खत्म नहीं होती। झारखंड में अन्य 5 लाख बच्चे वेस्टेड हो सकते हैं और 4 लाख गंभीर रूप से वेस्टेड हो सकते हैं। किसी बच्चे को वेस्टेड तब कहा जाता है जब उसकी ऊंचाई के हिसाब से उसका वजन कम होता है। खराब आहार या दस्त जैसे संक्रामक रोगों की वजह से बच्चे वेस्टेड होते हैं। आयु के अनुपात में कम वजन वाले बच्चों को “अंडरवेट” कहा जाता है। एक अंडरवेट बच्चा वेस्टेड अथवा स्टंटिंग (नाटेपन) अथवा दोनों का शिकार हो सकता है।
यह पत्र देश के बाकी हिस्सों में भी ऐसे ही हालात होने की भविष्यवाणी करता है। इस अध्ययन के अनुसार, फूड शॉक (लॉकडाउन के कारण पौष्टिक भोजन की उपलब्धता में आया व्यवधान), बिहार, उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश में सर्वाधिक महसूस किया जाएगा। शोधकर्ताओं ने चेताते हुए कहा, “इन राज्यों में गरीबी के अलावा मातृ मृत्यु दर, शिशु मृत्यु दर और सार्वजनिक स्वास्थ्य और पोषण सेवाओं की कम कवरेज के साथ उच्चतम बाल जनसंख्या है।” लॉकडाउन के फलस्वरूप केवल इन तीन राज्यों में पांच लाख से अधिक बच्चे कुपोषण का शिकार बन सकते हैं।
2015-16 का नवीनतम नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस) इस अध्ययन का आधार है और इस सर्वे के अनुसार भारत में हर दूसरा बच्चा पहले से ही कुपोषित है। इसका मतलब है कि हमारे देश में लगभग 7.7 करोड़ बच्चे कुपोषित हैं। यह झारखंड, तेलंगाना और केरल की संयुक्त जनसंख्या के बराबर है।
इस डेटा का उपयोग करते हुए शोधकर्ताओं ने अतिरिक्त बच्चों की आबादी का पता लगाया है जो तीन अलग-अलग परिदृश्यों में कुपोषित हो जाएंगे। उन्होंने यह जानने की कोशिश की कि अगर लॉकडाउन के दौरान बच्चों का वजन का 0.5 प्रतिशत, 2.5 प्रतिशत और 5 प्रतिशत कम हो जाए तो क्या स्थिति होगी।
रिपोर्ट कहती है कि “0.5 प्रतिशत के बॉडीवेट शॉक की स्थिति में, वेस्टेड एवं अंडरवेट होने की प्रवृत्ति में क्रमशः 1.42 और 1.36 प्रतिशत की वृद्धि होगी। इसका मतलब है अंडरवेट एवं वेस्टेड के क्रमशः 4,10,413 और 3,92,886 मामले बढ़ेंगे”(देखें, भारत को तत्काल कुपोषण मूल्यांकन की आवश्यकता है, पृष्ठ 20)। गंभीर रूप से अंडरवेट और वेस्टेड बच्चों की संख्या में क्रमशः 268,767 और 166,342 का इजाफा होने की उम्मीद है। पांच प्रतिशत वजन घटने की सूरत में अंडरवेट एवं गंभीर रूप से अंडरवेट बच्चों की संख्या में क्रमशः 4.4 लाख एवं 3.2 लाख की भयावह बढ़ोतरी होगी। इसके अलावा 5,140,936 अतिरिक्त बच्चे स्टंटेड व 2,129,522 बच्चे गंभीर रूप से स्टंटेड हो जाएंगे।
शोधकर्ता यह कहकर आंकड़ों की व्याख्या करते हैं कि देश में बच्चों की एक बड़ी संख्या पहले से ही कुपोषित है। ऐसे में पोषण व स्वास्थ्य पर मामूली झटके के गंभीर प्रभाव हो सकते हैं। मौजूदा परिदृश्य में चुनौती को देखते हुए, यह शोधपत्र कहता है कि संक्रमण से बचाव करते हुए, गरीब बच्चों को पौष्टिक भोजन और अन्य पोषक पदार्थों की खुराक की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है। शोध का निष्कर्ष है कि ये अनुमान असल खतरे से कम भी हो सकते हैं और इन व्यवधानों के फलस्वरूप भारत के पोषण व स्वास्थ्य पर विनाशकारी प्रभाव पड़ सकता है।