स्वास्थ्य

पतंजलि की दवा को सरकार की हरी झंडी, लेकिन ये सवाल हैं बाकी

आयुष मंत्रालय का कहना है कि दवा केवल इम्युनिटी बढ़ाने के लिए, पतंजलि का दावा मरीज होंगे ठीक

Banjot Kaur

पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड ने 1 जुलाई 2020 को कहा था कि उसकी कोरोनिल और स्वसारी दवा को केंद्र सरकार के आयुष मंत्रालय की मंजूरी मिल गई है। कंपनी का दावा था कि इस दवा से कोरोनावायरस के मरीजों का उपचार हो सकता है। हालांकि सरकार की मंजूरी के बाद भी ऐसे बहुत से प्रश्न थे जिनके उत्तर नहीं मिले।

पतंजलि के संस्थापक रामदेव ने हरिद्वार में पत्रकारों को बताया कि यह दवा बहुत जल्द बाजार में उपलब्ध होगी। इसी बीच आयुष मंत्रालय ने दवा के प्रचार पर रोक लगा दी। प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद आयुष मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, “मंत्रालय ने केवल इम्युनिटी बढ़ाने के लिए दवा को मंजूरी दी है, कोरोनावायरस के उपचार के लिए नहीं।”

रामदेव ने उपचार शब्द का इस्तेमाल नहीं किया लेकिन उन्होंने जोर देकर कहा कि वह क्लीनिकल ट्रायल के नतीजों के साथ हैं। रामदेव के सहयोगी बालकृष्ण प्रेसवार्ता में “ठीक” शब्द का कम से कम दो बार इस्तेमाल किया।   

सेंट्रल ट्रायल रजिस्ट्री ऑफ इंडिया (सीटीआरआई) के पास उस ट्रायल के डिजाइन की विस्तृत जानकारी है जिसके आधार पर आयुष मंत्रालय ने पतंजलि को अनुमति दी थी। सीटीआरआई के अनुसार, ट्रायल का नाम है, “इम्पैक्ट ऑफ इंडियन ट्रेडिशनल आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट रेजिम फॉर नोवेल कोरोनावायरस-2”। ट्रायल के शीर्षक में ट्रीटमेंट यानी उपचार का जिक है, लेकिन आयुष मंत्रालय के प्रवक्ता का कहना था कि दवा को मंजूरी केवल इम्युनिटी बढ़ाने के लिए दी गई है, उपचार के लिए नहीं।

इसमें एक समस्या और भी है। सेवाग्राम स्थित महात्मा गांधी इंस्टीट्यूट फॉर मेडिकल साइंसेस (एमजीआईएमएस) के मेडिकल सुप्रिटेंडेंट एसपी कालंतरी का कहना है कि जब शोधकर्ताओं ने ट्रायल को डिजाइन किया, तब वे कोविड-19 के मरीजों पर दवा के असर को देखना चाहते थे, उसका रोकथाम की क्षमता नहीं। शोधकर्ता दवा की रोकथाम क्षमता (इम्युनिटी बढ़ाना) के बारे में भी बात कर रहे थे। कालंतरी आगे बताते हैं कि बिना वैज्ञानिक ट्रायल के क्या कोई नतीजों में बदलाव कर सकता है। आयुष मंत्रालय की भूमिका अन्य कारणों से भी सवालों के घेरे में है। उसने 30 जून को उत्तराखंड राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण को पत्र भेजा और उसे पतंजलि आयुर्वेद को भी कॉपी कर दिया।

अब रामदेव का कहना है कि दवा कोविड-19 के प्रबंधन के लिए है, उपचार के लिए नहीं। क्लिनिकल रिसर्च के विशेषज्ञ कालंतरी का कहना है कि वैज्ञानिक ट्रायल बीमारी की रोकथाम के लिए दवा की क्षमता अथवा प्रभावी नतीजों को हासिल करने के लिए किए जाते हैं। वह बताते हैं कि हम क्लिनिकल शोध में प्रबंधन शब्द का प्रयोग नहीं करते।

बायोएथिक्स के विशेषज्ञ अनंत भान का कहना है, “इसके गंभीर दुष्परिणाम हो सकते हैं। प्रबंधन एक बेहद हल्का शब्द है। ऐसा कोई वैज्ञानिक पेपर नहीं या प्रीप्रिंट नहीं जो उपचार अथवा रोकथाम की गारंटी दे सके, इसलिए हम उनके नतीजों पर भरोसा नहीं कर सकते। लेकिन लोग यह सब नहीं समझेंगे।”

भान कहते हैं कि अगर रामदेव इस दवा को स्टोरों में पहुंचाने में कामयाब हो जाते हैं तो लोग घबराहट में इसे खरीद लेंगे। इससे लोगों को सुरक्षित होने का भ्रम पैदा हो जाएगा और वे सामाजिक दूरी के तमाम नियमों की अनदेखी कर देंगे।

डाउन टू अर्थ ने इस मामले में बात करने के लिए आयुष मंत्रालय के सचिव राजेश कोटेचा को फोन किया और मेसेज भी भेजे, लेकिन कोई उत्तर नहीं मिला। इस संबंध में उत्तराखंड आयुर्वेद विभाग के लाइसेंसिंग अधिकारी वाईएस रावत से भी बात करने की कोशिश की गई लेकिन वहां से भी जवाब नहीं मिला। डाउन टू अर्थ ने पतंजलि के प्रवक्ता एसके तिजारावाला को भी फोन किया लेकिन उन्होंने प्रश्नों को सुनने से पहले ही फोन काट दिया।