स्वास्थ्य

भारत में अक्टूबर से पहले कोविड-19 से निजात नहीं : अध्ययन

आईआईटी खड़गपुर के अध्ययन में कहा गया है कि अक्टूबर के बाद कई राज्यों में कोरोनावायरस संक्रमण खत्म होने लगेगा

DTE Staff

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, खड़गपुर के एक अध्ययन के मुताबिक, भारत में इस साल अक्टूबर से पहले कोविड-19 से निजात नहीं मिलेगी।

आईआईटी खड़गपुर के कम्प्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग फैकल्टी अभिजीत दास के मुताबिक, कोरोना वायरस का संक्रमण जब खात्मे की कगार पर आएगा, तो संक्रमितों की संख्या 7,00,000 से ज्यादा होगी। उन्होंने ये अनुमान लॉजिस्टिकल मॉडल के आधार पर लगाया है।

अध्ययन के अनुसार, मौजूदा ट्रेंड संकेत दे रहा है कि ये बीमारी देश में कई महीनों तक रहेगी और सितंबर महीने के खत्म होने से पहले इसमें कमी आने की संभावना नहीं है। 

हालांकि, दास ने ये भी आगाह किया है कि ये अनुमान पूरी तरह विश्वसनीय और स्थिर नहीं है क्योंकि मॉडलिंग की अपनी सीमाएं हैं। 

महाराष्ट्र, जो कोविड-19 से सबसे ज्यादा प्रभावित है, वहां हफ्ते भर में सामने आनेवाले मामलों का हिसाब कर अनुमान लगाया गया है कि जून महीने में कोविड संक्रमण अपने चरम पर होगा। इस महामारी के खत्म होने तक महाराष्ट्र में कोविड-19 संक्रमित मरीजों की संख्या 1,60,000 से अधिक होने का अनुमान है।

अध्ययन में दिल्ली में नवंबर तक कोविड-19 महामारी खत्म होने का अनुमान लगाया गया है और तब तक राजधानी में कोरोनावायरस से संक्रमित मरीजों की संख्या 2,50,000 को पार कर जाएगी। यानी दिल्ली, महाराष्ट्र को भी पीछे छोड़ देगी। वहीं, तमिलनाडु में ये महामारी अक्टूबर तक खत्म होगी और तब तक संक्रमित मरीजों की संख्या 1,30,000 के आसपास पहुंच जाएगी।

उत्तर प्रदेश में फिलहाल कोरोना मरीजों की तादाद 16,000 है। अध्ययन के मुताबिक, नवंबर तक यहां ये महामारी खत्म हो सकती है और तब तक मरीजों की संख्या 40,000 से ज्यादा हो जाएगी। इसी तरह मध्यप्रदेश और पश्चिम बंगाल को क्रमशः सितंबर अक्टूबर तक इस बीमारी से छुटकारा मिल सकता है और तब तक एमपी में संक्रमितों की संख्या 13,000 और बंगाल में 30,000 से अधिक हो जाएगी।

हालांकि, अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है कि अध्ययन के बाद जो अनुमान लगाया गया है, वो तमाम प्रयास और कई कोशिशों के बावजूद विश्वसनीय नहीं है। अध्ययन में अलग-अलग समय में संक्रमण के फैलने के अलग-अलग पैटर्नों का जिक्र भी किया गया है। 

अध्ययन में कहा गया है, “ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि लॉकडाउन के समय अलग-अलग वक्त में लोगों के जमा होने का अलग पैटर्न रहा, कामगारों का बड़े स्तर पर पलायन हुआ, इलाज के साधनों में बदलाव हुआ और वायरस में क्रमागत बदलाव आया है।

लेकिन, ये बदलाव किसी भी पूर्वनुमान के मॉडल के नियंत्रण के बाहर है”, अध्ययन में कहा गया है। ऐसे में वक्त के साथ भविष्य के पूर्वानुमान बदल भी सकते हैं।