कोविड-19 एक ऐसी महामारी जिसने देखते ही देखते न केवल पूरी दुनिया को अपनी गिरफ्त में ले लिया, साथ ही यह भी साबित कर दिया की इस तरह की महामारियों के सामने हमारी स्वास्थ्य व्यवस्थाएं कितनी लाचार हैं। इसने विशेष रूप से कमजोर देशों में स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल दी थी, जो आज भी इस महामारी से उबरने के लिए संघर्षरत हैं। इसने यह साबित कर दिया कि आज भी दुनिया इस तरह की महामारियों से निपटने के लिए तैयार नहीं हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा इस महामारी की तैयारी और प्रतिक्रिया के लिए बनाए गए एक स्वतंत्र पैनल ने 22 नवंबर को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की है जिसमें यह खुलासा किया है कि इस महामारी को लेकर की जा रही वैश्विक तैयारियों और प्रतिक्रिया में सुधार के जो प्रयास किए जा रहे हैं वो अभी भी बहुत सुस्त रफ्तार से आगे बढ़ रहे हैं, जबकि समय बहुत तेजी से हमारे हाथों से निकला जा रहा है।
गौरतलब है कि मई में जब पैनल ने इस बात का मूल्यांकन किया था कि डब्लूएचओ और उसके सदस्य देश इस महामारी का सामना कैसे कर रहे हैं तो उसने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि इस तरह की महामारियों से निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर एक प्रतिक्रिया प्रणाली स्थापित करने की जरुरत है जिससे फिर कोई वायरस एक विनाशकारी महामारी का रूप न ले पाए। पर अफसोस की बात है कि उस रिपोर्ट के छह महीने बाद भी इस दिशा में कोई खास प्रगति नहीं हुई है।
ऐसे में इस पैनल द्वारा जारी हालिया रिपोर्ट "लूसिंग टाइम: एन्ड दिस पेंडेमिक एंड सिक्योर द फ्यूचर" ने कहा है कि इस दिशा में प्रगति बड़ी सुस्त रफ्तार से हो रही है ऐसे में इस महामारी के निकट भविष्य में दूर होने की संभावनाएं बहुत कम हैं, साथ ही हम भविष्य में इस तरह की महामारियों से निपटने के लिए तैयार नहीं हैं।
कैसे भरेगी अमीर-गरीब के बीच की खाई
रिपोर्ट की मानें तो अमीर और गरीब के बीच की जो खाई है उससे स्वास्थ्य व्यवस्था भी अलग नहीं है, जहां एक तरफ उच्च आय वाले देश हैं जहां की 67 फीसदी से ज्यादा आबादी का टीकाकरण पूरा हो चुका है। वहीं दूसरी तरफ पिछड़े देश हैं जिनकी 5 फीसदी से भी कम आबादी को मुश्किल से दवा की एक खुराक नसीब हो पाई है। रिपोर्ट की मानें तो युगांडा में 0.88 फीसदी, गिनी-बिसाऊ में 0.72 फीसदी, यमन में 0.71 फीसदी, मेडागास्कर में 0.65 फीसदी, दक्षिण सूडान में 0.58 फीसदी, चाड में 0.36 फीसदी और कांगो में केवल 0.04 फीसदी आबादी को दवा की दोनों खुराक मिल पाई हैं।
हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जो टीकाकरण के लिए लक्ष्य निर्धारित किए हैं उसके अनुसार 2021 के अंत तक दुनिया की 40 फीसदी आबादी के टीकाकरण का लक्ष्य रखा गया है जबकि 2022 के मध्य तक दुनिया की करीब 70 फीसदी आबादी को दवा की पूरी खुराक देने का लक्ष्य तय किया है। हालांकि वर्तमान में जो टीकाकरण की दर है उसके इस लक्ष्य को हासिल करने की सम्भावना न के बराबर है। अनुमान है कि इस रफ्तार से दुनिया के 75 देश 40 फीसदी टीकाकरण के लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाएंगे।
पैनल ने इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए अमीर देशों से अपील की थी कि वो कमजोर देशों को वैक्सीन की 100 करोड़ खुराक 1 सितंबर 2021 तक प्रदान करें। हालांकि उन्होंने इस लक्ष्य को पूरा नहीं किया है। वहीं 16 नवंबर तक कोवेक्स के तहत केवल 25.7 करोड़ डोज की डिलीवरी दी जा चुकी है।
वहीं दूसरी तरफ इस महामारी के प्रसार की बात करें तो 12 मई से 12 नवंबर 2021 के बीच और 9.2 करोड़ लोग इस महामारी से संक्रमित हो चुके हैं, जोकि अब तक सामने आए कुल मामलों का करीब 36 फीसदी है। गौरतलब है कि अब तक इस महामारी के 25.3 करोड़ मामले सामने आ चुके हैं।
अब तक 50 लाख से ज्यादा जिंदगियां लील चुकी है यह महामारी
इसी तरह अब तक इस महामारी से करीब 50.9 लाख लोगों की जान जा चुकी है। वहीं यदि पिछले छह महीनों की बात करें तो इस बीच करीब 16.5 लाख लोगों की जान गई है जोकि कुल मौतों का करीब 32 फीसदी है। यह आंकड़ें स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि इस महामारी का कहर अभी भी जारी है। हाल ही में पिछले कुछ यूरोपियन देशों में कोरोना के मामलों में एक बार फिर उछाल आया है।
रिपोर्ट के मुताबिक यदि 2 दिसंबर से बाद के आंकड़ों को देखें तो पिछड़े देशों में जहां 100 में से औसतन 3.94 वैक्सीन दी गई हैं वहां मौतों में 338.8 फीसदी की वृद्धि हुई है, जबकि उच्च आय वाले देशों में जहां टीकाकरण का औसत प्रति 100 लोगों पर 130.97 डोज हैं वहां मौतों के मामलों में 166.7 फीसदी का इजाफा हुआ है जो स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि इस महामारी से बचने में टीकाकरण कितना सहायक है।
सिर्फ स्वास्थ्य ही नहीं महामारी के चलते अब तक और 10 करोड़ लोग गरीबी के भंवर जाल में फंस चुके हैं। यही नहीं यह महामारी लाखो लोगों की नौकरियों को छीन चुकी है जबकि पहले की तुलना में कहीं ज्यादा लोग इसकी वजह से भुखमरी का सामना करने को मजबूर हैं।
इस रिपोर्ट पर प्रकाश डालते हुए इस पैनल से जुड़ी और लाइबेरिया की भूतपूर्व राष्ट्रपति एलेन जॉनसन सरलीफ का कहना है कि वर्तमान स्वास्थ्य तंत्र इस महामारी से निपटने में पूरी तरह विफल रहा है और यदि हम इसपर अभी काम नहीं करते तो हमारा आने वाली महामारियों से बचना मुश्किल हो जाएगा जो कभी भी हमें अपना निशाना बना सकती हैं।
पैनल ने ग्लोबल हेल्थ थ्रेट्स काउंसिल से महामारी की तैयारी और प्रतिक्रियाओं के लिए मदद करने की बात कही है। जिसके लिए हर वर्ष 74,422 करोड़ रुपए और भविष्य में महामारी के खतरों से निपटने के लिए 7.4 लाख करोड़ रुपए का वित्त देने की अपील की है।