स्वास्थ्य

कोविड-19: क्या विटामिन-डी की पूर्ति के लिए सूती कपड़े पहनना ज्यादा बेहतर विकल्प है?

Vibha Varshney

लीजिए, अब अच्छे खाने पर एक और खतरा मंडराने लगा है। पहले ही उद्योग और सरकार फूड फॉर्टिफिकेशन से विटामिन-डी बढ़ाने में लगी थी और अब उनकी कोशिश को समर्थन मिल गया है। ये देखा जा रहा है कि विटामिन-डी से नोवल कोरोनावायरस से होने वाली बीमारी (कोविड-19) से बचा जा सकता है। यह देखा गया है कि जिन लोगों को विटामिन डी की कमी होती है, वे कोविड-19 के शिकार हो रहे हैं और उनमें मौत की दर भी ज्यादा देखी जा रही है।

उदाहरण के लिए, स्पेन और इटली में लोगों में विटामिन डी की कमी अधिक पाई जाती है और यहां कोविड-19 की वजह से मौतें भी अधिक दर्ज की गई हैं। जबकि स्वीडन, नॉर्वे और फिनलैंड में लोगों के खाने में विटामिन डी की मात्रा अधिक होती हैं, वहां कोविड-19 के मामले कम दर्ज किए गए हैं।

3 सितंबर 2020 को जामा नेटवर्क ओपन में एक अध्ययन प्रकाशित हआ, जिसमें पाया गया कि विटामिन डी की कमी के शिकार मरीजों में कोविड होने की 77 फीसदी अधिक आशंका रहती है।

इसके चलते, कोविड-19 से बचने के लिए डॉक्टर विटामिन-डी की मात्रा बढ़ाने के लिए सलाह दे रहे हैं। साथ ही, लोग खुद ही ऐसे भोजन और सप्लीमेंट्स को प्राथमिकता दे रहे हैं, जिससे कि विटामिन डी की कमी दूर हो जाए।

विटामिन डी ऐसा आहार है, जिसे जानवर खुद ही अपने लिए पैदा करते हैं जैसे कि पौधे अपने लिए प्रकाश संश्लेषण करते हैं। सूरज की रोशनी की अल्ट्रावायलेट किरणें जब जानवरों की त्वचा पर पड़ती हैं तो उसमें विटामिन डी विकसित होता है। यही प्रक्रिया इंसानों में भी होती है।

साथ ही, इंसान द्वारा खाए जाने वाले सभी जानवरों के मांस में विटामिन डी की मात्रा होती है। इसलिए अगर इंसान इन जानवरों का मांस खाता है तो उसे एक साथ बड़ी मात्रा में विटामिन मिल सकता है।

हालांकि विटामिन डी का सबसे बड़ा फायदा यह माना जाता है कि यह हड्डियों को मजबूती प्रदान करता है और सूखा रोग व हड्डियों की कमजोरी से बचाता है। पर इसके और भी फायदे हैं, जैसे कि इससे मांसपेशी मजबूत होती हैं और इम्यून (रोगों से लड़ने की प्रतिक्रिया) क्रिया भी मजबूत होती है।

लॉकडाउन के दौरान न तो लोग बाहर खुले में निकल कर सूरज की रोशनी ले पाए और ना ही उन्होंने मांस खाया। बल्कि लॉकडाउन खुलने के बावजूद लोगों ने खुद को ज्यादा-ज्यादा ढके रखा। इन वजहों से विटामिन डी की मात्रा कम होने का अंदेशा जताया जा रहा है।

परंतु विटामिन डी की मात्रा बढ़ाने के कृत्रिम तरीकों को अपनाने से पहले यह अच्छा होगा कि हम ये समझें कि विटामिन-डी और कोविड-19 का संबंध हर जगह एक सा नहीं है। ग्रीस, ऐसा देश है, जहां लोगों में विटामिन डी की कमी काफी ज्यादा है, लेकिन कोविड-19 के मरीज और मौतें फिर भी कम हैं। जबकि ब्राजील जहां सूरज की रोशनी प्रचुर मात्रा में है, वहां कोविड-19 के केस बहुत ज्यादा हैं। भारत में भी विटामिन डी की कमी काफी मात्रा में है, लेकिन फिर भी यहां कोविड-19 के कारण होने वाली मौतें के आंकड़े कम हैं।

बिना समझे विटामिन डी को बढ़ावा देने में खतरा है कि इंडस्ट्री इसका फायदा उठा सकती है। भारत में विटामिन डी की कमी को दूर करने के लिए पहले ही दूध और तेल में इस विटामिन का इजाफा करने पर जोर दिया जाता है। कई कंपनियां भी विटामिन डी फोर्टिफिकेशन के फायदों का दावा करती हैं, हालांकि यह काफी विवादित भी है।

लेकिन भारत में एक और विकल्प है। भारत में बड़ी तादात में कपास की खेती की जाती है, जिसके कपड़े बनाए जाते हैं। 2014 में जर्नल ऑफ फोटोकैमेस्ट्री एंड फोटोबायोलॉजी बी में प्रकाशित अध्ययन बताता है कि 100 फीसदी सूती कपड़े पहनने पर लगभग 15 फीसदी सौर अल्ट्रावायलेट किरणें शरीर तक पहुंचती हैं, जो शरीर में विटामिन डी3 पहुंचाती हैं और इससे त्वचा कैंसर का खतरा भी नहीं रहता।

हाल के वर्षों में डेनिम के रूप में सिंथेटिक्स और मोटे कपड़ों का चलन बढ़ा है। इन कपड़ों की वजह से सूर्य का प्रकाश शरीर तक नहीं पहुंच पाता, जिस कारण विटामिन-डी पैदा होने में रुकावट आती है।

सूती कपड़े के इस लाभकारी असर का विस्तार से अध्ययन नहीं किया गया है, अब तक जो अध्ययन किए भी गए हैं, वो कैंसर से संबंधित हैं। यह माना जाता है कि कपड़ों के द्वारा त्वचा कैंसर से बचा जा सकता है। यहां हमें अपनी समझ का इस्तेमाल करना पड़ेगा। जैसा कि एक शोध बताता है कि एक सूती टी शर्ट सूरज की रोशनी से पर्याप्त बचाव नहीं करती है। तो क्यों न उसी टी शर्ट को पहन का विटामिन डी को बढ़ाया जाए और साथ ही कोविड-19 से भी बचा जाए।