स्वास्थ्य

आवरण कथा: कोविड वैक्सीन से मुनाफा कमाने वाली कंपनियों के पास तैयार हैं सारे जवाब

कोविड-19 वैक्सीन को लेकर अमीर देश अपने राष्ट्रवाद पर कायम है और कंपनियां मुनाफा कमा रही हैं। इस खेल को समझाती डाउन टू अर्थ, हिंदी की आवरण कथा की अंतिम कड़ी

Latha Jishnu

कोविड-19 महामारी का पूर्वानुमान निराशाजनक और अधिक चिंताजनक होता जा रहा है। महामारी विज्ञानियों, प्रतिरक्षा विज्ञानी और जो इन्फ्लूएंजा, सार्वजनिक स्वास्थ्य और इस तरह का अध्ययन करते हैं, उनके जरिए कहा है कि किसी भी समय सामान्य स्थिति में लौटने की संभावनाएं अभी काफी दूर हैं।

वह भविष्यवाणी करते हैं कि दुनिया के कई हिस्सों में नए प्रकोप होंगे। स्कूलों और व्यवसायों को फिर से बंद कर दिया जाएगा, मौतें होंगी लेकिन भारत को बहुत मुश्किल से डालने वाली दूसरी लहर से शायद कम। विशेषज्ञ बार-बार चेतावनी दे रहे हैं कि महामारी को नियंत्रित करने का एकमात्र तरीका अधिकांश आबादी का टीकाकरण है। कम से कम 90 प्रतिशत लोगों का टीकाकरण होना चाहिए।

फिर भी हम कभी वायरस मिटाने में सक्षम नहीं होंगे क्योंकि वायरस यहां किसी न किसी रूप में रहने के लिए ही है। टीकाकरण कुछ प्रकार की प्रतिरक्षा प्रदान करता है, यही वजह है कि देश अपने लोगों की सुरक्षा के मद्देनजर खुराक हासिल करने के लिए हाथ-पांव मार रहे हैं।

अंतिम गणना (22 सितंबर) में 184 देशों में लोगों को छह अरब से अधिक खुराक दी गई थी। यूरोप और अन्य जगहों के अमीर देशों ने अपनी आबादी के 70 प्रतिशत से अधिक का टीकाकरण किया है। 52 सबसे गरीब स्थानों में मुख्य रूप से अफ्रीका में मुश्किल से 3.5 प्रतिशत आबादी को ही कवर किया है। इसके अलावा, कुछ देशों ने अपने नागरिकों को पांच गुना अधिक टीकाकरण करने के लिए पर्याप्त खुराक का स्टॉक एकत्र किया है। संयुक्त राज्य अमेरिका के स्वास्थ्य अधिकारी कहते हैं कि यह अब बिना टीकाकरण की महामारी है।

सुरक्षाओं को पार कर संक्रमण का अत्यधिक जोखिम रखने वाले डेल्टा संस्करण के ताजा कहर के साथ अमेरिका, कनाडा और अधिकांश यूरोपीय संघ में भी दृष्टिकोण चिंताजनक है। अगस्त के अंत में मैकेंजी के विश्लेषण ने निम्न-आय और कई मध्यम-आय वाले देशों को सबसे कमजोर के रूप में सूचीबद्ध किया। ये जोखिम वाले देश अपनी अधिकांश आबादी को कवर करने के लिए पर्याप्त खुराक की खरीद करने में सक्षम नहीं हैं।

अनुमान है कि उन्हें 2022 के अंत या 2023 की शुरुआत तक टीका लग पाएगा। एक स्थानिक बीमारी के रूप में कोविड-19 के बोझ को प्रबंधित करने में उन्हें कितना समय लगेगा, इसका कोई अनुमान नहीं है। मैकेंजी का कहना है कि डेल्टा संस्करण ने कुछ समय के लिए अधिकांश देशों को हर्ड इम्यूनिटी से दूर कर दिया है। सबसे बड़ा जोखिम नए वेरिएंट के उदय का है जो अधिक संक्रामक हैं और मृत्यु का कारण बनने के लिए अधिक उत्तरदायी हैं। साथ ही टीकाकरण वाले लोगों को संक्रमित करने में सक्षम है।

टीकों को लेकर संशय की स्थिति तब और बढ़ गई, जब सितंबर में हुई एक ऑनलाइन प्रेस ब्रीफिंग में प्रमुख टीका निर्माताओं-फाइजर और जॉनसन एंड जॉनसन ने दावा किया कि जल्द ही सभी को प्रतिरक्षित करने के लिए पर्याप्त टीके होंगे। उन्होंने कहा कि अगले साल की शुरुआत तक, आपूर्ति मांग से अधिक होने की संभावना है। यानी दुनिया के पास जरूरत से ज्यादा टीके होंगे।

ब्रीफिंग का आयोजन इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ फार्मास्युटिकल मैन्युफैक्चरर्स एंड एसोसिएशंस (आईएफपीएमए) द्वारा किया गया था। इसमें मुख्य बिंदु यह था कि कोविड-19 टीकों का प्रबंधन मुट्ठी भर कंपनियों के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए। इसका संदेश स्पष्ट था कि लोगों को आईपीआर की छूट के बारे में हो हल्ला मचाना बंद कर देना चाहिए और इस समूह को काम करने देना चाहिए। ब्रीफिंग में कहा गया कि कच्चे माल की आपूर्ति और उत्पादन बढ़ाने के लिए भागीदारों के वैश्विक नेटवर्क स्थापित किया चुका है, इसलिए नए खिलाड़ियों को इस काम में लगाना समय की बर्बादी होगी। इस समय उन लोगों की जरूरत है जो जानते हों कि टीके का उत्पादन कैसे किया जाता है।

विश्व व्यापार संगठन में लगभग एक साल पहले आईपीआर में छूट का प्रस्ताव पेश किया गया था और इसने कोई प्रगति नहीं की है। भले ही अमेरिका ने इसका समर्थन किया हो लेकिन जो बाइडन प्रशासन ने प्रस्ताव को आगे बढ़ाने में किसी प्रकार का सहयोग नहीं किया है।

आईएफपीएमए ब्रीफिंग कई खुलासे कर रही थी। इसमें खुद की पीठ थपथपाई जा रही थी जो कुछ हद तक ठीक भी था क्योंकि रिकॉर्ड समय में टीके विकसित किए गए थे। साथ ही उनका उत्पादन बढ़ाया गया था। आईएफपीएमए बार-बार दावा करता है कि केवल नौ महीनों में उत्पादन शून्य से बढ़कर 7.5 बिलियन खुराक हो गया। उसका दावा है कि जनवरी 2022 तक प्रत्येक महाद्वीप में प्रत्येक वयस्क को टीका लगाने के लिए पर्याप्त खुराक होगी।

लेकिन प्रमुख टीका कंपनियां जो भारी मुनाफा कमा रही हैं, उसका क्या? टीकों को गरीब देशों तक पहुंचाने की निष्पक्षता का क्या? इसका रटा रटाया जवाब भी कंपनियों के पास है। फाइजर के अल्बर्ट बोरला का कहना है कि टीकों की कीमत तर्कसंगत है। इसकी कीमत उच्च आय वाले देशों में भोजन की एक थाली के बराबर, मध्यम आय वाले देशों में भोजन की आधी थाली के बराबर और निम्न आय वाले देशों में टीके की लागत के बराबर है। जहां तक टीका निष्पक्षता का सवाल है तो इसमें संदेह न करें। कंपनियां इसके लिए प्रतिबद्ध हैं।

जॉनसन एंड जॉनसन कहता है कि उसने एक बिलियन खुराक गरीब देशों के लिए रखी हैं। वहीं फाइजर का दावा है कि उसकी 41 प्रतिशत टीके की खुराक मध्यम और निम्न आय वाले देशों के लिए हैं। दोनों टीका निर्माता इसके असमान वितरण के लिए अमीर देशों को दोष देते हैं। वह इशारा करते हैं कि अगर जी7 देश की सरकार किशोरों और वयस्कों का टीका लगाती है और बूस्टर डोज देने का फैसला करती है, तब भी 2021 में 1.2 बिलियन खुराक पुनर्वितरण के लिए उपलब्ध रहेगी।