स्वास्थ्य

लाखों बच्चों को मजदूर बना देगा कोरोनावायरस

अनुमान है कि कोरोनावायरस से आया आर्थिक संकट बाल मजदूरों की संख्या में इजाफे का कारण बनेगा| इससे पहले 2000 से लेकर अब तक बाल मजदूरों की संख्या में लगातार कमी

Lalit Maurya

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन और यूनिसेफ द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार कोरोनावायरस लाखों बच्चों को बाल मजदूरी के दलदल में धकेल देगा| जिससे उनका भविष्य अंधकारमय हो सकता है| रिपोर्ट में इसके लिए इस वायरस के कारण आये आर्थिक संकट को वजह माना गया है| जिसके कारण बच्चों को जबरन बाल मजदूरी करनी पड़ेगी| कोविड-19 एंड चाइल्ड लेबर: अ टाइम ऑफ क्राइसिस नामक यह रिपोर्ट 12 जून को विश्व बाल श्रम निषेध दिवस के मौके पर जारी की गई है|

रिपोर्ट के अनुसार 2000 के बाद यह पहला मौका है कि बाल मजदूरों की संख्या में इजाफा हो रहा है| पिछले 20 वर्षों से दुनिया भर में किये जा रहे अथक प्रयासों के चलते बाल मजदूरों की संख्या में लगातार कमी आ रही थी| पर कोरोनावायरस के चलते यह जो आर्थिक संकट आया है उससे बदलाव की इस दिशा में परिवर्तन हो सकता है| यदि अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आइएलओ) द्वारा जारी आंकड़ों पर गौर करें तो 2000 में करीब 24.6 करोड़ बच्चे बाल मजदूरी कर रहे थे| यह संख्या 2017 में घटकर 15.2 करोड़ रह गई थी| पर इसके बावजूद इनमें से करीब आधे 7.3 करोड़ बच्चे उन कामों को कर रहे थे जिनमें खतरा ज्यादा है| 17 सालों की इस अवधि में करीब 9.4 करोड़ बच्चे बाल मजदूरी से मुक्त हो गए थे| पर इस नई रिपोर्ट में बाल मजदूरों के फिर से बढ़ने का अंदेशा जताया गया है|

पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा बच्चे अफ्रीका में करीब 7.21 करोड़ बाल मजदूरी कर रहे हैं| इसके बाद 6.21 करोड़ एशिया पैसिफिक में, 1.07 करोड़ अमेरिका में, 55 लाख यूरोप और सेंट्रल एशिया में, और करीब 12 लाख बच्चे अरब देशों में मजदूरी कर रहे हैं| यदि बाल मजदूरों की आयु को देखें तो कुल बाल मजदूरों में से करीब 48 फीसदी बच्चे 5 से 11 साल की आयु के हैं| जबकि 28 फीसदी 12 से 14 साल और 24 फीसदी बच्चे 15 से 17 वर्ष की आयु के हैं| रिपोर्ट के अनुसार जो बच्चे बाल मजदूरी कर रहे हैं वो ज्यादा लम्बे समय तक मजदूरी करने को मजबूर हैं| इसके साथ ही उन्हें विषम परिस्थितियों में काम करना पड़ता है| जो उनके स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रहा है|

परिवार की घटती आय का बच्चों को भुगतना पड़ रहा है खामियाजा

रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के 55 फीसदी करीब 400 करोड़ लोगों के पास इस आर्थिक संकट से निपटने का कोई विकल्प नहीं है| यदि यह संकट लम्बे समय तक बना रहता है तो यह लोग इस संकट का सामना नहीं कर पाएंगे| एडीबी का अनुमान है कि कोरोनावायरस के चलते 24.2 करोड़ नौकरियां खत्म हो जाएंगी| यदि आम मजदूरों और कामगारों को देखा जाये तो उनको होने वाला कुल नुकसान करीब  90,79,800 – 1,36,19,700 करोड़ रुपए के बीच होगा| ऐसे में वो परिवार अपना गुजर बसर कैसे करेंगे यह एक बड़ी समस्या होगी|

वहीं दुनिया भर के करोड़ो लोग आज भी झुग्गी-झोपड़ियों और मलिन बस्तियों में रहते हैं| जहां न पानी की सुविधा है| और न ही साफ सफाई की कोई व्यवस्था| ऐसे में इन लोगों पर इस वायरस की दोहरी मार पड़ेगी| एक तरफ तो सुविधाओं का आभाव इनके स्वास्थ्य को खराब कर देगा| वहीं दूसरी ओर लॉकडाउन ने इनके काम-धंधों को भी ख़त्म कर दिया है| इसका सीधा असर उस परिवार के बच्चों पर भी पड़ेगा| ऐसे में जो बच्चे पहले से ही शिक्षा से दूर हैं और छोटा-मोटा काम करके अपने परिवार का हाथ बंटाते हैं, उनपर काम का दबाव और बढ़ जायेगा| जिससे उन्हें कहीं ज्यादा वक्त और कहीं अधिक जोखिम भरे कामों को भी करना पड़ सकता है|

सेव द चिल्ड्रन और यूनिसेफ द्वारा किये एक विश्लेषण के अनुसार साल के अंत तक करीब 8.6 करोड़ बच्चे कोरोनावायरस के चलते गरीबी के हालात झेलने को मजबूर हो जाएंगे| ऐसे में पहले से ही गरीबी में जी रहे बच्चों की संख्या बढ़कर 67.2 करोड़ पर पहुंच जाएगी| ऐसे में इन बच्चों के पास मजदूरी करने के अलावा कोई विकल्प नहीं रहेगा| अध्ययनों से पता चला है कि कुछ देशों में यदि गरीबी में 1 फीसदी की वृद्धि होती है तो उससे बाल श्रम में करीब 0.7 फीसदी की वृद्धि हो जाएगी|

स्कूलों के बंद होने का भी पड़ा है असर

रिपोर्ट से इस बात की भी जानकारी मिली है, कि लॉकडाउन के कारण स्कूलों बंद कर दिए गए हैं| जिसके कारण भी बाल मजदूरी बढ़ रही है| बच्चे अपने माता पिता का हाथ बंटाने के लिए अलग-अलग कामों में लग गए हैं| वहीं बच्चियों पर भी घरेलु कामों और कृषि जैसे कार्यों को करने का दबाव बढ़ गया है| इससे भी बड़ी चिंता की बात यह है कि एक बार जब लॉकडाउन ख़त्म होगा तो उस समय जो आर्थिक स्थिति रहेगी, उसके चलते अधिकांश गरीब माता-पिता अपने बच्चों को दोबारा स्कूल भेजने में सक्षम ही नहीं होंगे| ऐसे में काम करना उन बच्चों की मज़बूरी बन जाएगा| इस महामारी से आये आर्थिक संकट का सबसे ज्यादा असर अफ्रीका और एशिया पर पड़ेगा| जोकि पहले से ही गरीबी और आर्थिक परेशानियों से जूझ रहे हैं| 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में पांच से 14 वर्ष की उम्र के एक करोड़ से अधिक बच्चे बाल मजदूरी कर रहे हैं| जबकि पांच से 18 वर्ष की उम्र के 11 में से एक बच्चा काम कर रहा है।  ऐसे में इस महामारी से आया आर्थिक संकट भारत में भी बाल मजदूरों की संख्या में इजाफा कर देगा|

ऐसे में बच्चों पर पड़ रहे कोरोनावायरस के असर को सीमित करने के लिए सामाजिक सुरक्षा योजनाओं और कार्यक्रमों में तेजी लाने की जरुरत है| सेव द चिल्ड्रन और यूनिसेफ ने इससे निपटने के लिए इन योजनाओं में बड़े पैमाने पर विस्तार करने की सलाह दी है| इसके अंतर्गत सीधे तौर पर बच्चों को आर्थिक मदद, स्कूलों में भोजन का प्रावधान, और अन्य लाभ देने सम्बन्धी योजनाएं शामिल हैं| जिसकी मदद से वर्त्तमान में पड़ रही वित्तीय जरूरतों को पूरा किया जा सकता है| साथ ही भविष्य में इस तरह के खतरों से निपटने के लिए एक मजबूत आधारशिला रखी जा सकती है|