स्वास्थ्य

यूपी में कोरोना से घुटती सांसे :13 दिन में तीन गुना बढ़ी ऑक्सीजन की मांग, 82 फीसदी जोखिम पर घरों में आइसोलेट

Vivek Mishra

उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा है कि कोविड और गैर कोविड मृतकों की अत्येंष्टि निशुल्क और सम्मान के साथ किया जाए। सरकार का यह निर्देश तब आया है जब पंचायत त्रिस्तरीय चुनावों के बाद गांवों में कोविड संक्रमण के मामलों और मृत्यु में बढोत्तरी का अंदेशा पैदा हो गया है। उत्तर प्रदेश में मृतकों की संख्या और ऑक्सीजन की मांग दोनों में तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है।

प्रदेश में बीते 13 दिनों में तीन गुना ऑक्सीजन की मांग में बढोत्तरी हुई है। इस बीच प्रदेश में इस वक्त कुल 2.85 लाख कोरोना के सक्रिय मरीज हैं। इनमें 2.34 लाख यानी 82 फीसदी घरों में ही बिना आपात सुविधाओं के आइसोलेट हैं। कई जिलों में होम आइसोलेशन का यह आंकड़ा 90 या उससे ज्यादा फीसदी है। मसलन, श्रावस्ती में 3 मई को कुल 930 एक्टिव केस हैं और 812 लोग होम आइसोलेशन में रहे।  

ऐसे 18 फीसदी लोग जिन्हें अस्पतालों की व्यवस्था मिली है। उनमें 8673 लोग ऐसे हैं जो प्राइवेट अस्पतालों में इलाज करा रहे हैं। करीब 52 हजार लोग ही सरकारी अस्पतालों में इलाज करा रहे हैं। यदि कल को नए मरीजों की संख्या में वृद्धि होती है और होम आइसोलेशन के मरीज ही अस्पातलों की मांग करते हैं तो फिर से आफत खड़ी हो सकती है। 

सरकारी और निजी अस्पतालों में आपात सुविधाओं वाले बेडों को हासिल करना एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। जबकि घरों में आइसोलेट मरीजों के लिए आपात सुविधाओं की कोई ठोस व्यवस्था नहीं हो पाई है। 

उत्तर प्रदेश सरकार ने ऑक्सीजन की आपूर्ति के लिए कहा था कि ऐसे जिले जहां अधिक एक्टिव केस हैं वहां कम से कम एक रीफिलर नियुक्त किया जाए जो लोगों को घर तक ऑक्सीजन की आपूर्ति सुनिश्चित करेंगे। हालांकि यह व्यवस्था अभी तक लागू नहीं हो पाई है। 

सरकार पारदर्शी तरीके से आंकड़ों को जाहिर नहीं कर रही है। ऑक्सीजन को लेकर जब डाउन टू अर्थ ने इन आंकड़ों की तफ्तीश की और पाया कि प्रदेश में 20 अप्रैल को 400 टन मिट्रिक ऑक्सीजन आवंटन का केंद्रीय कोटा तय किया गया था जो कि 03 मई तक 1142 मिट्रिक टन तक पहुंच चुका है। 

डाउन टू अर्थ ने यूपी के कई जिलों से संपर्क किया लेकिन सभी ने पर्याप्त ऑक्सीजन की बात कही। हालांकि ऑक्सीजन की मांग और आपूर्ति के आंकड़े कुछ और गवाही दे रहे हैं। 

केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में 23 अप्रैल, 2021 को दिए गए हलफनामे में मेडिकल ऑक्सीजन के फोरकॉस्ट का ब्यौरा दिया गया था। इसके मुताबिक 20 अप्रैल को यूपी को 400 मिट्रिक टन ऑक्सीजन की जरुरत थी। वहीं 25 अप्रैल, 2021 को 650 मिट्रिक टन और 30 अप्रैल को 800 मिट्रिक टन की जरुरत थी।

उत्तर प्रदेश को केंद्रीय कोटे के तहत अब तक मांग 1142 के मुकाबले 857 टन ही ऑक्सीजन आवंटित हुआ है जबकि प्रदेश सरकार राज्य में रोजाना औसत 650 से 750 टन का ही आवंटन कर पा रही है। अकेले राजधानी लखनऊ में ही 100 टन ऑक्सीजन की जरुरत होती है। 

3 मई को यूपी सरकार ने रिकॉर्ड 788 टन ऑक्सीजन की आपूर्ति की है, करीब 400 टन की कमी अब भी है। वहीं, उत्तर प्रदेश सराकर की तरफ से एनसीआर और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिले टार्गेट पर हैं जबकि ग्रामीण जनपद जैसे बहराइच, बलिया, अमरोहा, अंबेडकर नगर आदि ऑक्सीजन की आपूर्ति लक्ष्य में कम तरजीह पर हैं। 

मसलन जमशेदपुर से 80 टन ऑक्सीजन की आपूर्ति हुई है और रिलायंस की तरफ से 18 हजार लीटर (18 टन) ऑक्सीजन की आपूर्ति 5 मई तक होना है।

ऑक्सीजन के ऑडिट की भी बात कही जा रही है और सरकार का दावा है कि इससे ऑक्सीजन की मांग में कमी हो जाएगी। बहरहाल यूपी कोरोना संक्रमण के ऐसे बम पर बैठा है जो अब या तब फूटने वाला है। टूटती और घुटती हुई सांसें इसका प्रमाण बन रही हैं।

राज्य में 3 मई को 352 लोगों की कोविड के कारण मौत हुई है जबकि अब तक कोविड से मरने वालों की संख्या 13798 हो चुकी है। मृत्यु की इन आंकड़ो पर सवाल उठ रहे हैं और आरोप है कि सरकार इन्हें सीमित करके दिखा रही है। 

वहीं, सरकार अपने ही कोरोना मृतक आंकड़ों पर अभी खुद ही संशकित है और इसके ऑडिट की बात कर रही है।

सरकार का कहना है कि कोरोना मृत्यु के दिए जा रहे आंकड़े ऑडिट किए जाएंगे और पता लगाया जाएगा कि वास्तविक कोविड मृत्यु है या नहीं।