जलवायु परिवर्तन के कारण हाल के वर्षों में महासागरीय और तटीय पारिस्थितिक तंत्र में जटिल पर्यावरणीय परिवर्तन हुए हैं। ये परिवर्तन पानी से फैलने वाले अथवा जलजनित रोगों में भी बदलाव ला रहे हैं। इनकी जीवित रहने की दर जलवायु परिवर्तन से प्रभावित होती है। इनमें से एक हैजा है जो प्रदूषित पानी से होने वाला रोग है, यह जीवाणु विब्रियो कॉलेरी से दूषित पानी या दूषित भोजन करने के कारण होता है। यह बीमारी अक्सर दुनिया भर के कई तटीय क्षेत्रों में होती है, विशेष रूप से घनी आबादी वाले उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में। रोग फैलाने वाला यह जीवाणु आम तौर पर गर्म तापमान, कम खारे पानी और जहां गंदगी होती है वहां पाया जाता है। यह पानी में अति-सूक्ष्म जीव (प्लवक) और कचरे में रहते हैं।
पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले उपग्रहों से लिए गए जलवायु आंकड़े, मशीन लर्निंग तकनीक के साथ मिलकर, हैजा के प्रकोप के बारे में अनुमान लगा सकते हैं। एक बार प्रकोप के बारे में पता लगने पर लोगों की जान बचाने में यह कारगर सिद्ध हो सकता है।
ग्लोबल वार्मिंग और चरम मौसम की घटनाओं में वृद्धि से हैजा का प्रकोप बढ़ रहा है। एक ऐसी बीमारी जो दुनिया भर में हर साल 13 लाख से 40 लाख लोगों को प्रभावित करती है और इसके कारण लगभग 1.5 लाख लोगों की मृत्यु तक हो जाती है। एक नए अध्ययन के अनुसार भारत के तटीय क्षेत्रों में हैजा का पूर्वानुमान लगाने के लिए समुद्री सतह के खारेपन का उपयोग किया गया। प्रकोप का पता लगाने की सफलता दर 89 फीसदी तक थी।
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एनवायरनमेंटल रिसर्च एंड पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित शोध उत्तरी हिंद महासागर के आसपास हैजा के प्रकोप का पूर्वानुमान लगाने पर केंद्रित है। जहां 2010-16 की अवधि में दुनिया भर में हैजे की बीमारी के मामलों में से आधे से अधिक मामले सामने आए थे।
हैजे की बीमारी की घटना और पर्यावरण के बीच जटिल संबंध हैं और मौसमी आधार पर इसके रूप अलग-अलग होते हैं। मशीन लर्निंग एल्गोरिदम इन आंकड़ों की मदद से परीक्षण योग्य अनुमान लगाने के लिए बड़े डेटासेट में पैटर्न की पहचान कर सकते हैं।
इस अध्ययन का नेतृत्व एमी कैंपबेल द्वारा किया गया था। कैंपबेल यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) जलवायु कार्यालय के साथ एक साल तक स्नातक प्रशिक्षु रहे। एमी ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर प्लायमाउथ मरीन लेबोरेटरी (पीएमएल) में पर्यावरण विज्ञान के प्रयोगों में मशीन लर्निंग एल्गोरिदम का उपयोग किया। यह एल्गोरिदम लंबे डेटासेट में पैटर्न को पहचान सकता है और परीक्षण योग्य अनुमान लगा सकता है।
एल्गोरिदम को 2010 और 2018 के बीच भारत के तटीय जिलों में दर्ज किए गए रोग के प्रकोपों के आधार पर प्रशिक्षित किया गया था और ईएसए के जलवायु परिवर्तन पहल (सीसीआई) द्वारा उत्पन्न छह उपग्रह-आधारित जलवायु रिकॉर्ड के साथ संबंधों की पहचान की।
पर्यावरण को प्रभावित करने वाली चीजों को शामिल कर तथा हटाकर अलग-अलग मौसमों के अनुसार इसमें छोटे-छोटे बदलाव किए गए। एल्गोरिथ्म ने हैजा के प्रकोप को भूमि की सतह के तापमान, समुद्र की सतह के खारेपन, क्लोरोफिल की एकाग्रता और समुद्र स्तर में औसत अंतर के रूप में पूर्वानुमान लगाने के लिए महत्वपूर्ण बदलाव की पहचान की।
एमी कैंपबेल ने कहा कि मॉडल ने आशाजनक परिणाम दिखाए और विभिन्न हैजा निगरानी के डेटासेट या अलग-अलग स्थानों का उपयोग करके इस काम को और सुधार करने की गुंजाइश है। हमारे अध्ययन में, हमने विभिन्न मशीन लर्निंग तकनीकों का परीक्षण किया। यह सबसे अच्छा है, लेकिन अभी और तकनीकें हैं जिनकी जांच की जा सकती है।
सामाजिक-आर्थिक डेटासेट सहित इन पर पड़ने वाले प्रभावों का परीक्षण करना दिलचस्प होगा। रिमोट सेंसिंग डेटा के उपयोग से रिकॉर्ड तैयार किए जा सकते है, जो हैजा की घटनाओं के लिए महत्वपूर्ण हैं, जैसे कि इसके जल संसाधनों तक पहुंच जाना, इसमें लोग किस तरह की भूमिका निभाते है इस पर भी जानकारी मिल सकती है।
अध्ययन और इसकी नई जानकारियों ने पीएमएल के शोधकर्ता मैरी-फैनी रौल्ट की अगुवाई में कोलरा एंड सॉल्यूशन टूल्स प्रोजेक्ट के लिए यूकेआरआई-एनईआरसी में योगदान दिया है, जो आवासों पर जलवायु की चरम सीमाओं के प्रभाव का आकलन कर रहा है, जो हैजे का पूर्वानुमान लगाने के लिए उपयुक्त है।