स्वास्थ्य

सुस्त होते जा रहे है बच्चे, स्वास्थ्य पर पड़ सकता है बुरा असर

Lalit Maurya

आज बदलता परिवेश और तकनीक के प्रति प्रेम बच्चों को सुस्त बना रहा है। बच्चे बाहर पार्क में खेलने की जगह अपने बिस्तर पर मोबाइल चलाना और टेलीविजन देखना ज्यादा पसंद करने लगे हैं। जिससे उनकी शारीरिक गतिविधियां कम होती जा रही हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े दर्शाते है कि दुनिया के किशोरों की 80 फीसदी से अधिक आबादी शारीरिक रूप से उतनी गतिविधि नहीं करती, जितनी उनके स्वास्थ्य के लिहाज से जरुरी है।

स्ट्रेथक्लाइड विश्वविद्यालय द्वारा किया गया नया अध्ययन भी इस बात पर प्रकाश डालता है। जिसके अनुसार वैश्विक स्तर पर बच्चों की शारीरिक गतिविधियों में गिरावट आ रही है, जोकि किसी विशिष्ट आयु वर्ग तक ही सीमित नहीं है। इससे उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ सकता है। अध्ययन के अनुसार विशिष्ट आयु वर्ग पर जोर देने से बच्चों में घट रही शारीरिक गतिविधियों की समस्या को हल करने में मदद मिलती है।

लड़कियों की गतिविधियों में भी गिरावट 

यह अध्ययन 50 से अधिक प्रकाशित शोधों पर आधारित है। जिसमें करीब 22,000 बच्चों का अध्ययन किया गया है। जिसमें पाया गया है कि वैश्विक स्तर पर हर आयु वर्ग के बच्चों की शारीरिक गतिविधियों में कमी आ रही है। इसके अनुसार गतिविधियों में आ रही यह गिरावट चार या पांच साल की उम्र से लेकर बड़ी आयु के बच्चों में लगातार बढ़ती जा रही है। जोकि बालक और बालिकाओं दोनों पर लागु होती है।

दैनिक गतिविधियों में हर साल तीन से चार मिनट की गिरावट दर्ज की गयी है। हालांकि यह सप्ताह के आखरी दिनों और छुट्टियों में अधिक देखने को मिली थी। यह शोध स्ट्रेथक्लाइड विश्वविद्यालय, यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन, ग्लासगो यूनिवर्सिटी और आसपेटार आर्थोपेडिक एंड स्पोर्ट्स मेडिसिन हॉस्पिटल, दोहा के शोधकर्ताओं ने मिलकर किया है। 

स्ट्रेथक्लाइड विश्वविद्यालय द्वारा इससे पहले किये शोध में पाया गया था कि शारीरिक गतिविधि में गिरावट किशोरावस्था की जगह सात साल की उम्र से ही शुरू हो जाती है। इसमें इंग्लैंड के उत्तर-पूर्वी इलाकों में बच्चों का अध्ययन किया गया था, लेकिन जर्नल ओबेसिटी रिव्यु में प्रकाशित इस नए शोध से पता चलता है कि शारीरिक गतिविधि में गिरावट एक वैश्विक समस्या बन चुका है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार स्वस्थ रहने के लिए दिन में कम से कम एक घंटे व्यायाम या अन्य शारीरिक गतिविधि करना जरुरी है।

स्ट्रेथक्लाइड के स्कूल ऑफ साइकोलॉजिकल साइंसेज एंड हेल्थ के प्रोफेसर जॉन रैली जोकि इसके लेखक भी है ने बताया कि "बच्चों में मध्यम से लेकर उच्च स्तर की शारीरिक गतिविधियां स्वास्थ्य के अन्य पहलुओं के साथ-साथ मस्तिष्क के विकास और सीखने की क्षमता को बढ़ाने, मोटापे को नियंत्रित करने, हृदय की सुरक्षा के साथ ही नींद में भी सुधार ला सकती हैं।

उनके अनुसार दुनिया भर के डॉक्टर और नीति निर्माता यही मानते रहे हैं कि बच्चे शारीरिक रूप से अधिक गतिविधियां करते हैं और यह स्थिति किशोरावस्था तक बनी रहती है। उनके अनुसार मुख्यतः बच्चियां शारीरिक रूप से कम गतिशील रहती हैं और खेलकूद में कम भाग लेती हैं। यही वजह है कि गतिविधियों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बनायी गयी नीतियों में किशोर लड़कियों पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जा रहा है, जिन्हें उच्च जोखिम वाले वर्ग में देखा जाता है।

माता-पिता और परिवार को भी समझनी होगी अपनी जिम्मेदारी

शोधकर्ताओं का मानना है कि हालांकि यह सच है कि बालिकाओं पर इसका खतरा ज्यादा है। पर इसका मतलब यह नहीं है कि अन्य बच्चों पर शारीरिक गतिविधियों के घटने का जोखिम कम है। इसलिए सभी बच्चों में शारीरिक गतिविधियों को बढ़ाने पर बल दिया जाना चाहिए। यह ने केवल नीति निर्माताओं, डॉक्टरों और विद्यालयों की जिम्मेदारी है, अपितु माता-पिता और परिवार के सदस्यों को भी इसके प्रति अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी और बच्चों को भी इसके प्रति जागरूक करना होगा।