स्वास्थ्य

चिकनगुनिया के टीके में बीमारी के खिलाफ 99 प्रतिशत की प्रतिरोधक क्षमता : अध्ययन

Dayanidhi

चिकनगुनिया मच्छरों से होने वाली एक संक्रामक बीमारी है। यह बीमारी अक्सर अफ्रीका, एशिया और अमेरिका के कुछ क्षेत्रों में होती है। शरीर को कमजोर करने वाली इस बीमारी में रोगियों को मच्छर के उनके काटने के चार से आठ दिन बाद बुखार आता है, साथ में सिरदर्द, थकान, मतली और मांसपेशियों और जोड़ों में भयानक दर्द होता है। जोड़ों का यह दर्द लंबे समय तक बना रह सकता है, जो हफ्तों, महीनों या सालों तक बना रह सकता है।

एक नए शोध में कहा गया है कि, चिकनगुनिया की बीमारी के लिए वीएलए1553 वैक्सीन से प्रतिभागियों में 99 फीसदी में प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया उत्पन्न हुई।

प्रमुख शोधकर्ता डॉ मार्टिना श्नाइडर ने कहा, चिकनगुनिया का यह पहला टीका उन क्षेत्रों के लिए अहम है जहां यह बीमारी व्याप्त है, साथ ही यात्रियों और स्थानीय इलाकों या आगामी प्रकोप के खतरे वाले क्षेत्रों के लिए भी महत्वपूर्ण हो सकता है।

डॉ श्नाइडर ने कहा, हमारे आशाजनक परिणामों ने टीकाकरण के बाद एंटीबॉडी के स्तरों में बढ़ोतरी दिखाई है, जो महत्वपूर्ण है कि चिकनगुनिया का प्रकोप अचानक फिर से शुरू हो सकता है। चिकनगुनिया रोग की गंभीरता और मृत्यु दर के लिए उम्र बहुत अहम है, पुराने प्रतिभागियों में देखी गई मजबूत प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया विशेष रूप से फायदेमंद हो सकती है।

वर्तमान में चिकनगुनिया के लिए कोई टीका नहीं है, न ही इस बीमारी के लिए कोई प्रभावी एंटीवायरल उपचार है जो भारत और दुनिया में हर साल लाखों लोगों को बीमार करता है।

शोधकर्ताओं ने कहा कि चूंकि अध्ययन उन क्षेत्रों में नहीं किया गया था जहां चिकनगुनिया होता है, वे यह जांच करने में असमर्थ थे कि क्या टीका बाद की बीमारी से बचाता है। इसके बजाय, अध्ययन ने उन स्तरों पर एक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया का परीक्षण किया जो वायरस से संक्रमित होने पर बीमारी से बचाने के लिए सोचा जाता है।

चिकनगुनिया को वर्तमान में विश्व स्तर पर फैलने वाले सबसे अधिक वायरसों में से एक माना जाता है और अध्ययनों से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन मच्छरों के फैलने को बढ़ा रहा है जो इसे दुनिया के नए इलाकों में ले जाते हैं। इसलिए, भविष्य के प्रकोपों को देखते हुए इनकी तैयारियों के लिए एक प्रभावी टीका होना महत्वपूर्ण है।

अध्ययन में अमेरिका के 43 जगहों पर 4,115 स्वस्थ वयस्कों को शामिल किया गया। इनमें से 3,082 प्रतिभागियों को हाथ में एक इंजेक्शन के माध्यम से वीएलए1553 की एक खुराक दी गई और 1,033 को प्लेसबो दिया गया। सभी प्रतिभागियों को सुरक्षा विश्लेषण में शामिल किया गया था, लेकिन प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया का परीक्षण केवल 362 प्रतिभागियों के समूह में किया गया था। इन 362 में से 266 को वैक्सीन और 96 को प्लेसिबो दिया गया।

टीकाकरण के बाद एक सप्ताह, 28 दिन, तीन महीने और छह महीने तक प्रतिभागियों की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया का आकलन किया गया। उन्होंने टीकाकरण के बाद 11 दिनों तक प्रतिकूल घटनाओं को एक इलेक्ट्रॉनिक डायरी में भी दर्ज किया। जिन लोगों ने टीकाकरण के 21 दिनों के भीतर प्रतिकूल घटनाओं का अनुभव किया जैसे बुखार और जोड़ों में दर्द, पीठ दर्द, न्यूरोलॉजिकल लक्षण, हृदय की समस्याएं, दाने या सूजन आदि, पर अधिक बारीकी से नजर रखी गई।

अध्ययन में कहा गया है कि एक बार टीकाकरण के बाद, बीमारी से बचाव के लिए माने जाने वाले स्तरों पर वीएलए1553 से एंटीबॉडी 99 फीसदी यानी 263 प्रतिभागियों में से 266 में इनकी बढ़ोतरी देखी गई। आयु के संबंध में प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया में कोई अंतर नहीं था।

वीएलए1553 आम तौर पर सभी आयु समूहों में अच्छी तरह से सहन किया गया था, जिसमें अधिकांश प्रतिकूल घटनाएं हल्की या मध्यम थीं। जिन लोगों को टीका दिया गया, उनमें सबसे आम प्रतिकूल घटनाएं सिरदर्द वाले 32 फीसदी, थकान वाले 29 फीसदी, मांसपेशियों में दर्द वाले 24 फीसदी, जोड़ों में दर्द वाले 18 फीसदी और इंजेक्शन लगाने वाली जगह पर दर्द वालों का आंकड़ा तीन फीसदी रहा।

छह महीने के बाद, वीएलए1553 दिए गए लोगों के लिए प्लेसीबो दिए गए लोगों की तुलना में अधिक प्रतिकूल घटनाएं दर्ज की गईं। कुल मिलाकर, प्रतिभागियों के 51 फीसदी जिन्हें वीएलए1553 दिया गया था और 31 फीसदी जिन्हें प्लेसीबो दिया गया था, उन्होंने कम से कम एक प्रतिकूल घटना का अनुभव किया जिसे टीकाकरण से संबंधित माना गया था। वृद्ध वयस्कों में सुरक्षा अन्य वयस्कों के समान थी।

वीएलए1553 के संपर्क में आने वाले प्रतिभागियों के दो फीसदी और प्लेसीबो आर्म में एक फीसदी प्रतिभागियों में गंभीर प्रतिकूल घटनाएं दर्ज की गईं। इनमें से दो को वैक्सीन से संबंधित के रूप में वर्गीकृत किया गया था। एक महिला में हल्के मांसपेशियों में दर्द का मामला था, जिसमें फ़िब्रोमाइल्गिया का मेडिकल इतिहास था और दूसरा बुखार था, जिसके कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। इनमें से किसी भी मामले में किसी की मौत नहीं हुई। यह अध्ययन मेडिकल जर्नल में प्रकाशित किया गया है।