एक नए अध्ययन में टीबी या तपेदिक में उपयोग होने वाली दवा लाइनजोलिड के दुष्प्रभावों के बारे में आगाह किया गया है। इसमें दवा प्रतिरोधी तपेदिक के प्रबंधन पर प्रकाश डाला गया है। यह अध्ययन नागपुर के इंदिरा गांधी गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज (आईजीजीएमसी) के श्वसन चिकित्सा विभाग और शहर के मेयो अस्पताल द्वारा किया गया है।
अध्ययन में मार्च 2020 से अप्रैल 2022 तक मल्टीड्रग-रेसिस्टेंट और रिफैम्पिसिन-प्रतिरोधी तपेदिक (आरआर-टीबी) वाले 106 रोगियों पर लाइनजोलिड नामक दवा और इसका असर न पड़ने या प्रतिरोधी होने और बुरे असर को लेकर एक अध्ययन किया गया।
अध्ययन के मुताबिक लाइनजोलिड प्रतिकूल दवा प्रतिक्रियाएं (एडीआर) एमडीआर या आरआर-टीबी का उपयोग भारत में आम है। महिला और युवा टीबी रोगियों को लाइनजोलिड एडीआर का अधिक खतरा होता है।
अध्ययन में पाया गया कि 42.45 फीसदी रोगियों ने लाइनजोलिड से होने वाले दुष्प्रभाव का अनुभव किया, जिसमें पेरिफेरल न्यूरोपैथी या परिधीय तंत्रिका विकृति सबसे आम दुष्प्रभाव है, इन रोगियों में इसका असर 93.33 फीसदी तक देखा गया। अन्य लाइनजोलिड संबंधी दुष्प्रभावों में देखने में कठिनाई या ऑप्टिक न्यूरिटिस, थकान, कमजोरी, और खून की कमी या एनीमिया और पेट में दर्द, उल्टी आदि थे।
लाइनजोलिड से संबंधित प्रतिकूल दवा प्रतिक्रियाएं (एडीआर) पेरिफेरल न्यूरोपैथी या परिधीय तंत्रिका विकृति सबसे आम है।
अध्ययनकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि इसके गंभीर या कोई असर न होने पर लाइनजोलिड का उपयोग तुरंत बंद कर देना चाहिए। 42.22 फीसदी टीबी रोगियों में, लाइनजोलिड एडीआर के बुरे असर के कारण, लाइनज़ोलिड का उपयोग बंद कर दिया गया है।
अध्ययन की अगुवाई, नागपुर के इंदिरा गांधी गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज में रेस्पिरेटरी मेडिसिन के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. ज्ञानशंकर मिश्रा द्वारा की गई। जिन्हें ऑस्ट्रेलिया के सिडनी विश्वविद्यालय में सिडनी इंस्टीट्यूट ऑफ इनफेक्शियस डिजीज के जन-विलियम अल्फेनर सहित कई अध्ययनकर्ताओं का साथ मिला।
आईजीजीएमसी नागपुर में प्रोफेसर और रेस्पिरेटरी मेडिसिन की प्रमुख डॉ. राधा मुंजे और डॉ सदफ खतीब, चिकित्सा अधिकारी, एनटीईपी, आईजीजीएमसी-टीबी इकाई भी इस अध्ययन में शामिल थे।
डॉ मिश्रा ने बताया कि, अध्ययन से पता चला कि महिलाओं और युवा टीबी रोगियों को लाइनजोलिड -एट्रिब्यूटेबल दवा के बुरे असर का भारी खतरा है। इसलिए, दवा प्रतिरोधी टीबी वाले लोगों के लिए इन दुष्प्रभावों के बारे में जागरूक होना जरूरी है।
उन्होंने मरीजों से अपील की, कि वे किसी भी लक्षण, विशेष रूप से हाथों या पैरों में झुनझुनी या जलन की सूचना तुरंत अपने डॉक्टर को दें, ताकि लक्षणों का प्रभावी ढंग से मूल्यांकन और प्रबंधन किया जा सके।
डॉक्टरों ने कहा कि शरीर पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रतिक्रियाओं के बावजूद, एमडीआर-टीबी के लिए नई उपचार व्यवस्था, टीबी के इलाज की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यही कारण है कि उन्होंने हल्के से मध्यम लाइनजोलिड-संबंधित रोगसूचक पेरिफेरल न्यूरोपैथी के लिए एक प्रभावी रणनीति के रूप में या बिना खुराक में कमी के लक्षण प्रबंधन का सुझाव दिया है।
डॉ. मिश्रा ने कहा कि, गंभीर या जीवन के लिए खतरा पैदा करने वाले पेरिफेरल न्यूरोपैथी में, हमें तुरंत लाइनजोलिड के उपयोग को पूरी तरह से बंद कर देना चाहिए। लेकिन, अध्ययनकर्ताओं ने जो सिफारिश की है वह यह है कि लाइनजोलिड एडीआर का प्रबंधन एडीआर की गंभीरता पर आधारित होना चाहिए।
डॉ. मिश्रा ने यह भी कहा कि ये एडीआर अक्सर लाइनजोलिड खुराक को प्रभावित करते हैं, इसलिए उन्हें जल्दी पहचानना और उपचार करना महत्वपूर्ण है। यह अध्ययन इंडियन जर्नल ऑफ ट्यूबरकुलोसिस में प्रकाशित हुआ है।