दुनियाभर में कैंसर एक महामारी की शक्ल लेता जा रहा है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। अकेले पंजाब के एक गांव में कैंसर से साल में औसतन 45 लोग मर जाते हैं। पंजाब से चलने वाली एक ट्रेन का नाम ही कैंसर ट्रेन पड़ गया है। पूछताछ खिड़की पर अक्सर लोग इस ट्रेन की इनक्वायरी कैंसर ट्रेन बोलकर ही करते हैं। अब तो रेलवे कर्मचारी भी इस नाम के आदी हो गए हैं और उन्हें कोई आपत्ति नहीं होती।
आप सोच रहें होंगे कि इस ट्रेन को लोग कैंसर ट्रेन क्यों कहते हैं। दरअसल, रोजाना रात 9 बजकर 25 मिनट पर बठिंडा से बीकानेर तक जाने वाली इस ट्रेन में लगभग 200 से ज्यादा कैंसर मरीज इसमें सवार होते हैं। सबकी मंजिल होती है बीकानेर का आचार्य तुलसी रीजनल कैंसर ट्रीटमेंट और रिसर्च सेंटर। पंजाब के सबसे करीब इस कैंसर अस्पताल के होने से ही पंजाब के लोग कैंसर ट्रेन से बीकानेर आते हैं।
पंजाब के स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी आंकड़ों पर नजर दौड़ाई जाए तो पता चलता है कि साल 2017 में पंजाब में कुल 8,799 कैंसर के मरीज रिपोर्ट हुए थे, वहीं साल 2018 के पहले चार महीनों जनवरी से अप्रैल में ही पंजाब में कैंसर के 3,089 मरीज रिपोर्ट हुए हैं। विभाग मई से दिसंबर तक का आंकड़ा भी जुटा रहा है।
विशेषज्ञों की मानें तो राज्य में ज्यादातर केस हड्डी और ब्लड कैंसर के हैं। इनमें से अधिकांशत: जेनेटिक हैं। पुरुषों में कैंसर की सबसे बड़ी वजह तंबाकू सेवन है, जबकि महिलाओं में ब्रेस्ट और सर्विकल कैंसर के मामले सामने आ रहे हैं। चिकित्सा विशेषज्ञों का मानना है कि पंजाब में कैंसर के केसेज में बढ़ोतरी की वजह पानी में यूरेनियम के साथ-साथ आधुनिक जीवनशैली भी है।
कैंसर एक ऐसी बीमारी होती है, जिसमें शरीर के अंदर बड़ी संख्या में असामान्य कोशिकाएं (सेल्स) बनने लगती हैं। इस बीमारी को हम सामान्य भाषा में इस तरह समझ सकते हैं, जैसे शरीर में कुछ कोशिकाओं का गैर जरूरी तरीके से बनना और लगातार बढ़ते रहना। इस कारण शरीर के अंदर एक और कुछ मामलों में एक से अधिक गांठ बन सकती हैं। ये गांठ उन गैरजरूरी कोशिकाओं का गुच्छा या झुंड होती हैं, जो लगातार बढ़ती रहती हैं और हमारे शरीर के ऊतकों को नुकसान पहुंचाती रहती हैं।
क्यों होता है कैंसर?
एक्सपर्ट्स का कहना है कि क्योंकि कोशिका के अंदर मौजूद जीन उसे अलग-अलग कार्य से संबंधित निर्देश देते हैं, जिस अनुसार वह काम करती है। अगर जीन द्वारा दिए जा रहे निर्देशों और कोशिका द्वारा उन निर्देशों को समझकर काम करने के तरीके में कहीं कोई भी एरर या गलती होती है तो यह एरर कोशिका को सामान्य रूप से काम करने से रोकती है। यही दिक्कत किसी कोशिका को कैंसर सेल में परिवर्तित करने का काम कर सकती है।
जीन म्यूटेशन कोशिका को यह भी बताता है कि उसे अपनी ग्रोथ कब रोकनी है, कितनी तेजी से बढ़ना और कब तक बढ़ना है। इसी म्यूटेशन के आधार पर कई नई सेल्स बनती रहती हैं। लेकिन जिन कोशिकाओं की कार्यप्रणाली में गड़बड़ी आ जाती है, वे अनियंत्रित होकर कैंसर का कारण बनती हैं। इनके अंदर मौजूद ट्यूमर को दबाने वाला (ट्यूमर ना बनने देने वाला) जीन इन कोशिकाओं के ऊपर नियंत्रण खो देता है। इस कारण ये लगातार बढ़ती रहती हैं, बंटती रहती हैं और फैलती रहती हैं।
जर्नल ऑफ कैंसर इंस्टीट्यूट में प्रकाशित अध्ययन रपट के अनुसार घर और घर के बगीचे में उपयोग में लिए गए कीटनाशकों से बच्चों में रक्त कैंसर की संभावना सात गुना बढ़ जाती है। साथ ही यह भी उजागर हुआ है कि जिन घरों में कीटनाशकों का प्रयोग होता है उनके बच्चों में रक्त कैंसर, ब्रेन कैंसर और सॉफ्ट टिश्यू सरकोमा नामक कैंसर की दर अधिक होती है।
प्रतिरोधात्मक शक्ति के क्षीण होने से भी कैंसर की आशंका बढ़ जाती है। कीटनाशक प्रतिरोधात्मक शक्ति को क्षीण करते हैं। बच्चों बुजुर्गों और लंबे समय से बीमार लोगों में यह संभावना अधिक होती है, वे अधिक संवेदनशील होते हैं। अमेरिकन कैंसर सोसाइटी द्वारा प्रकाशित अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि आम उपयोग में लिए हार्बीसाइड (खरपतवार नाशक) और फंगीसाइड, विशेषकर मेकोप्रोप (एमसीपीपी) में नॉन हॉजकिन्स लिम्फोना नामक लिम्फ कैंसर अधिक होता है। ग्लायोफासेट (राउंड अप) नामक कीटनाशक से ऐसे कैंसर के होने की आशंका 27 गुणा अधिक पाई गई।
कुछ प्रमुख पेस्टिसाइड व उनसे होने वाले दुष्प्रभाव
पेस्टिसाइड एक कूट चक्र है जिसमें आप एक बार फसल लें तो फंसते चले जाएंगे और फसना ही पड़ेगा क्योंकि हम प्रकृति की अपनी कीटाणुओं से लड़ने की व्यवस्था को बिगाड़ रहे हैं। जब गेहूं के साथ खेती होती थी तो नाइट्रोजन आराम से मिल जाता था लेकिन मोनोक्रॉपिंग की वजह यह संभव नहीं हो पाता।
आइए नजर डालते हैं हमारे घर और आसपास मिलने वाले कुछ पेस्टिसाइड पर जिससे कैंसर का खतरा होता है।
डिकामबा
उपयोग – घरेलू बगीचे में
कुप्रभाव– प्रजनन स्वास्थ्य न्यूरोटोक्सिसिटी, किडनी व लिवर की क्षति, जन्मजात विकृतियां
2,4-डी
उपयोग– घर के आसपास, बगीचे में
दुषप्रभाव- कैंसर, एन्डोक्राइन, डिसरप्शन, प्रजनन, स्वास्थ्य, न्यूरोटोक्सिसिटी, किडनी व लिवर की क्षति, जन्मजात विकृतियां।
फिप्रोनिल
उपयोग- घर और बाहर बेट्स (गोलियां) और जानवरों पर।
दुष्प्रभाव- कैंसर, एन्डोक्राइन डिसरप्शन, न्यूरोटोक्सिसिटी, किडनी व लिवर की क्षति।
ग्लायोफासेट
उपयोग- घर के बगीचों में
कुप्रभाव – कैंसर, प्रजनन स्वास्थ, न्यूरोटोक्सिसिटी, किडनी व लिवर की क्षति।
(लेखिका रिसर्चर हैं और फार्मर प्राइड से जुड़ी हुई हैं)