स्वास्थ्य

क्या फोलिक एसिड-फोर्टिफाइड नमक की मदद से जन्म संबंधी घातक विकारों को किया जा सकता है दूर

दक्षिण भारत के गांवों में किए एक क्षेत्रीय अध्ययन से पता चला है कि फोलिक एसिड-फोर्टिफाइड आयोडीन युक्त नमक की मदद से जन्म संबंधी कई गंभीर विकारों को रोका जा सकता है

Lalit Maurya

दक्षिण भारत के गांवों में किए एक क्षेत्रीय अध्ययन में सामने आया है कि फोलिक एसिड-फोर्टिफाइड आयोडीन युक्त नमक की मदद से जन्म संबंधी कई गंभीर विकारों को रोका जा सकता है। यह अध्ययन सेंट्रल फ्लोरिडा विश्वविद्यालय और एमोरी विश्वविद्यालय से जुड़े विशेषज्ञों सहित अंतर्राष्ट्रीय शोधकर्ताओं के एक दल द्वारा किया गया है। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल जामा नेटवर्क ओपन में प्रकाशित हुए हैं।

गौरतलब है कि यह लंबे समय से माना जाता रहा है कि गर्भावस्था से पहले और गर्भावस्था के दौरान पर्याप्त मात्रा में फोलिक एसिड का सेवन स्पाइना बिफिडा और एनेनसेफली जैसे स्थाई और जीवन-घातक जन्म दोषों से बचने में मददगार हो सकता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) भी सभी महिलाओं को गर्भधारण की शुरुआत से लेकर गर्भावस्था के पहले तीन महीनों तक रोजाना 400 माइक्रोग्राम फोलिक एसिड की खुराक लेने की सलाह देता है।

शोध के मुताबिक मुख्य खाद्य पदार्थों में फोलिक एसिड को शामिल करना इस समस्या से निपटने का एक प्रभावी, सुरक्षित और उचित समाधान है। मई 2023 में वर्ल्ड हेल्थ असेंबली ने भी स्पाइना बिफिडा जैसे जन्मजात दोषों की रोकथाम में तेजी लाने के लिए फोलिक एसिड युक्त पौष्टिक खाद्य पदार्थों का समर्थन किया था। 

स्पाइना बिफिडा और एनेनसेफली से ग्रस्त होते हैं पैदा होने वाले 260,000 नवजात

हालांकि इन प्रयासों के बावजूद, दुनिया भर में करीब 260,000 बच्चे, जन्म के समय स्पाइना बिफिडा और एनेनसेफली से ग्रस्त होते हैं। मतलब की हर 10,000 जन्म पर करीब 20 शिशु इन विकारों से पीड़ित होते हैं। इनमें से कई बच्चे मृत जन्म लेते हैं, जबकि कई का गर्भपात करा दिया जाता है। वहीं जो जीवित जन्म लेते हैं वो जन्मभर इससे जुड़ी समस्याओं से पीड़ित रहते हैं।

वैश्विक स्तर पर देखें तो अमेरिका सहित करीब 65 देशों ने मुख्य अनाजों में फोलिक एसिड को शामिल किया है। हालांकि अभी भी 100 से अधिक देशों ने अभी भी इसकी राह में सामने आने वाली चुनौतियों और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के चलते फोलिक एसिड फोर्टिफिकेशन को नहीं अपनाया है।

ऐसे में इस अध्ययन का कहना है कि इसका न केवल समाधान संभव है, बल्कि वो पहले ही रसोई में मौजूद है। इस बारे में शोधकर्ताओं ने जो क्लीनिकल ट्रायल किए हैं उसके नतीजे दर्शाते हैं कि नमक की औसत दैनिक खपत के आधार पर, व्यावसायिक रूप से उपलब्ध आयोडीन युक्त नमक में फोलिक एसिड मिलाने से प्रतिभागियों के सीरम फोलेट आवश्यक स्तर तक बढ़ गया।

यह वृद्धि स्पाइना बिफिडा और एनेनसेफली की रोकथाम के लिए पर्याप्त थी। रिसर्च में यह भी सामने आया है कि चार महीनों तक आयोडीन और फोलिक एसिड युक्त नमक का सेवन करने से प्रतिभागियों के सीरम फोलेट में 3.7 गुना सुधार देखा गया।

इस बारे में यूसीएफ कॉलेज ऑफ मेडिसिन के न्यूरोसर्जन, और अध्ययन से जुड़े मुख्य शोधकर्ता जोगी पट्टीसापू ने प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी देते हुए कहा है कि, "हमने साबित कर दिया है कि फोलिक एसिड नमक के माध्यम से रक्त में प्रवेश कर सकता है।"

उनके मुताबिक जिन देशों ने अभी फोर्टिफिकेशन कार्यक्रम लागू नहीं किया है, वे अपने बुनियादी ढांचे पर विचार कर सकते हैं। नमक में फोलिक एसिड की आवश्यक मात्रा को जोड़ना प्रभावी और सरल है। इससे नमक का रंग थोड़ा पीला हो सकता है, लेकिन अध्ययन के दौरान प्रतिभागियों को इससे कोई नहीं पड़ा। उनका आगे कहना है कि जब हम जानते हैं कि यह काम करता है तो हमें कार्रवाई की जरूरत है।

गौरतलब है कि यह अध्ययन अंतराष्ट्रीय शोधकर्ताओं के साथ-साथ भारत के विभिन्न संस्थानों के शोधकर्ताओं की मदद से किया गया है। इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने दक्षिणी भारत के चार गांवों की 18 से 45 साल की 83 महिलाओं को शामिल किया गया था, जो गर्भवती नहीं थी।

अध्ययन के दौरान उन महिलाओं ने 2022 में चार महीनों के लिए अपने आहार में फोलिक एसिड-फोर्टिफाइड नमक को शामिल किया था। बता दें कि भारत विशेष रूप से स्पाइना बिफिडा और एनेनसेफली के प्रसार से जूझ रहा है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि इन जन्म सम्बन्धी दोषों को रोका जा सकता है। लेकिन एक बार इनका शिकार बनने के बाद इन्हें पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सकता। इनकी सर्जरी और नैदानिक ​​​​देखभाल महंगी है और निम्न और मध्यम आय वाले देशों में काफी हद तक उपलब्ध नहीं है। यही वजह है कि वैश्विक स्तर पर स्पाइना बिफिडा से ग्रस्त अधिकांश बच्चे मर जाते हैं।

शोधकर्ताओं ने यह भी स्पष्ट किया है कि उनका अध्ययन नमक के अधिक सेवन को प्रोत्साहित नहीं करता। इसके बजाय, यह इन क्षेत्रों में पहले से ही उपभोग किए जा रहे नमक में फोलिक एसिड को शामिल करने का प्रस्ताव करता है। यदि इन क्षेत्रों में नमक की दैनिक औसत खपत कम हो जाती है, तो आवश्यकता को पूरा करने के लिए फोलिक एसिड की मात्रा स्वाभाविक रूप से बढ़ जाएगी। यह दृष्टिकोण पहले ही अनाज सुदृढ़ीकरण कार्यक्रमों में उपयोग किया जा रहा है।

शोधकर्ताओं ने इस बात पर भी जोर दिया कि यदि मौजूदा आयोडीन युक्त नमक कार्यक्रमों में फोलिक एसिड को शामिल कर लिया जाए, तो वैश्विक स्तर पर स्पाइना बिफिडा के कम से कम 50 फीसदी मामलों को रोका जा सकता है।