स्वास्थ्य

रंग आधारित पोषण सम्बन्धी लेबल और चेतावनियां स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से बेहतर खरीदारी को दे सकती हैं बढ़ावा

Lalit Maurya

हाल ही में जर्नल प्लोस मेडिसिन में प्रकाशित एक शोध से पता चला है कि वस्तुओं पर पोषण सम्बन्धी रंग आधारित लेबल और चेतावनियां स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से बेहतर खरीदारी को बढ़ावा दे सकती हैं।

यह विश्लेषण पोषण सम्बन्धी रंग आधारित लेबल और उनके प्रभाव को लेकर जनवरी 1990 से मई 2021 के बीच किए गए 134 अध्ययनों और खाद्य पैकेजिंग को लेकर दिखाई चेतावनियों के निष्कर्षों पर आधारित है। जो दर्शाता है कि रंग आधारित यह लेबल स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से बेहतर खरीदारी को प्रोत्साहित कर सकता है। इस अध्ययन में चार अलग-अलग लेबलिंग प्रणालियों के प्रभाव का मूल्यांकन किया गया है, जिसमें दो रंग आधारित जानकारी और अन्य दो चेतावनियों को दर्शाती हैं। 

इस मेटा-विश्लेषण से पता चला है कि यह सभी चार लेबलिंग प्रणालियां उपभोक्ताओं को अधिक पौष्टिक उत्पादों को खरीदने के लिए प्रोत्साहित कर सकती हैं। पोषण सम्बन्धी विशिष्ट गुणों के मूल्यांकन से पता चला है कि यह लेबल उपभोक्ताओं को ऐसे खाद्य और पेय पदार्थों को खरीदने के लिए प्रेरित कर सकते हैं जिनमें ऊर्जा, सोडियम, वसा और सैचुरेटेड फैट कम मात्रा में होते हैं। 

गौरतलब है कि कुछ देशों ने लोगों के आहार में सुधार और उनसे जुड़ी बीमारियों के बोझ को कम करने की उम्मीद से उत्पादों में अनिवार्य तौर पर फ्रंट-ऑफ-पैकेज लेबलिंग की शुरुआत की है। यह लेबल पोषण को दर्शाने के लिए रंग आधारित कोडिंग का इस्तेमाल करते हैं। साथ ही इनमें यदि स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से कोई नुकसान पहुंचाने वाले घटक होते हैं तो उसके बारे में चेतावनी दे सकते हैं। हालांकि इस तरह के लेबल के प्रभावों को लेकर जो अध्ययन किए गए हैं उनमें मिश्रित निष्कर्ष सामने आए हैं।     

खाद्य उत्पादों पर क्यों जरुरी है यह कलर कोडेड लेबल

विश्लेषण में इस बात को भी स्पष्ट किया गया है कि यह लेबल किसी उत्पादों को लेकर उपभोक्ता की मानसिकता को कैसे प्रभावित करते हैं। यह लेबल उन्हें स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से कहीं बेहतर विकल्प के चुनाव के लिए प्रोत्साहित करते हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार एक तरफ जहां रंग आधारित लेबल स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से बेहतर उत्पादों की खरीदारी को बढ़ावा देते हैं वहीं इनपर लिखी चेतावनियां उन्हें स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से हानिकारक उत्पादों को न खरीदने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। 

शोधकर्ताओं का मत है कि यह निष्कर्ष सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार ला सकते हैं। साथ ही पैकेज के सामने लिखी लेबलिंग और उससे जुड़ी नीतियों के निर्माण और बदलाव में मददगार हो सकते हैं। 

गौरतलब है कि भारत में भी अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के डॉक्टरों ने जंक फूड पैकेटों के लेबल पर शुगर, साल्ट और फैट की वैज्ञानिक सीमा से सम्बंधित जानकारी को दर्शाए जाने की मांग की थी। जिससे ग्राहकों को इनके बारे में सही जानकारी मिल सकें और वो जंक फूड को खरीदने के बारे में सही फैसला ले सकें।

काफी समय से सीएसई जंक फूड के खतरों के बारे में लोगों को जागरूक करता रहा है। इसपर सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) ने एक व्यापक अध्ययन भी किया था जिसमें जंक फ़ूड से जुड़े खतरों के बारे में चेताया गया था। इस अध्ययन के अनुसार भारत में बेचे जा रहे अधिकांश पैकेज्ड और फास्ट फूड आइटम में खतरनाक रूप से नमक और वसा की उच्च मात्रा मौजूद है, जो भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) द्वारा निर्धारित तय सीमा से बहुत ज्यादा है।

सीएसई ने भी इस खतरे से लोगों को आगाह किया था। साथ ही लेबलिंग से जुड़े कानूनों को तत्काल लागु करने की मांग की थी। वहीं जो खाद्य पदार्थ स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं उनपर अलग से लाल चेतावनी लेबल लगाने की मांग की थी।