संभव है कि पश्चिम बंगाल में रह रहे लोग ऐसी दवाएं खा रहे हैं, जिसकी वैधता खत्म (एक्सपायरी) हो चुकी है या वे दवाएं नकली हों, क्योंकि इस राज्य में दवा की गुणवत्ता पर नजर रखने वाले विभाग में केवल 23 फीसदी कर्मचारी ही काम कर रहे हैं।
भारत के नियंत्रक एवं महा लेखा परीक्षक (कैग) की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि 20 में से 5 जिलों में राज्य के दवा नियंत्रक निदेशालय, राज्य दवा नियंत्रक एवं अनुसंधान प्रयोगशाला, केंद्रीय दवा स्टोर, कोलकाता और दवा नियंत्रक के सहायक निदेशालय में स्थिति ठीक नहीं है।
यह रिपोर्ट राज्य विधानसभा में पेश की गई, जिसमें 2012-17 का ऑडिट किया गया है।
रिर्पोट में कहा गया है कि राज्य को दवा कंपनियों और दुकानों पर जांच के लिए पर्याप्त संख्या में दवा निरीक्षकों की सख्त जरूरत है। इससे राज्य में बिकने वाली नकली दवाओं की निगरानी नहीं की जा पा रही है। नकली दवाओं को “मानक गुणवत्ता के अनुरूप नहीं” भी कहा जाता है।
ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य में प्रयोगशालाओं द्वारा जारी की जांच रिपोर्ट भी संदेह के घेरे में है।
इतना ही नहीं, इन प्रयोगशालाओं में जांच रिपोर्ट में आने में देरी भी होती है, तब तक रोगी नकली दवाओं का इस्तेमाल कर चुका होता है।
यह हाल तब है, जबकि राज्य में दवा बनाने वाली कंपनियों और दवा की दुकानों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। लेकिन राज्य में दवा निरीक्षकों की संख्या उतनी ही है, जितनी वर्ष 2000 में थी। इसके बाद जो पद सृजित भी किए गए, लेकिन पदों को भरा नहीं गया।
कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि लगभग 77 फीसदी पद खाली पड़े हैं। इनमें दवा निरीक्षक, वरिष्ठ दवा निरीक्षक की बड़ी संख्या है, जिससे दवा कंपनियों और दवा दुकानों के लाइसेंस रिन्यूअल, निरीक्षण, सैंपलिंग के साथ-साथ दवाओं की जांच जैसे कार्य प्रभावित हो रहे हैं।
कर्मचारियों की कमी से स्वास्थ्य सेवाओं पर भी असर पड़ रहा है। कई दवा बनाने वाली कंपनियां और विक्रेताओं ने लाइसेंस रिन्यू करने के लिए आवेदन तक नहीं किया। आश्चर्य की बात यह है कि इस तरह के लगभग 5191 ऑपरेटर्स के लाइसेंस का रिकॉर्ड तक कैग को नहीं मिला।
कैग ने कहा कि जिस तरह से दवा निर्माता और विक्रेता लाइसेंस रिन्यूअल के लिए आवेदन नहीं कर रहे हैं, उससे साफ है कि राज्य के दवा नियंत्रक निदेशालय द्वारा लाइसेंस समाप्त होने की प्रक्रिया की निगरानी तक नहीं की जा रही है।
कैग के मुताबिक, पश्चिम बंगाल में केवल दवा बनाने वाली लगभग 24 फीसदी कंपनियों और 3 फीसदी दवा नियंत्रकों ने लाइसेंस रिन्यूअल के लिए आवेदन किया है।
सीएजी ने जब 180 में से 13 उन फर्मों का ऑडिट किया, जिन्होंने लाइसेंस रिन्यूअल के लिए आवेदन किया था तो कई सारी खामियां पकड़ में आई, जो दवाओं की गुणवत्ता से संबंधित थी।
लेकिन इतनी खामियों के बावजूद राज्य के दवा नियंत्रक विभाग ने उन्हें रिन्यूअल सर्टिफिकेट जारी कर दिया। कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि अलग-अलग दवा जांच प्रयोगशालाओं में जांच के बाद दवा बनाने वाली 13 में से 12 कंपनियों के उत्पादों को “मानक गुणवत्ता के अनुरूप नहीं” पाया गया। कर्मचारियों की कमी की वजह से जो दूसरा संवेदनशील मामला यह है कि कई ब्लड बैंक लाइसेंस के बिना चल रहे हैं या उनके पास वैध लाइसेंस नहीं है। कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य में कुल 125 ब्लड बैंक है, इसमें 48 (38 फीसदी) वैध लाइसेंस के बिना चल रहे हैं। ऐसा 2017 से चल रहा है। इनमें से 36 ब्लड बैंक तो ऐसे हैं, जो 15-20 साल से वैध लाइसेंस के बिना चल रहे हैं।