मोटापे का आकलन करने के लिए बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) की गणना पर भरोसा किया जाता रहा है। लेकिन अब प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल द लैंसेट डायबिटीज एंड एंडोक्रिनोलॉजी द्वारा गठित एक आयोग ने कहा है कि बीएमआई सही परिणाम नहीं देता है।
शोध पत्र में सुझाव दिया गया है कि डॉक्टरों को कम से कम एक अन्य शारीरिक माप, उदाहरण के लिए कमर की परिधि या शरीर की चर्बी को मापकर यह पुष्टि करनी चाहिए कि किसी व्यक्ति को मोटापा है या नहीं।
शोध के मुताबिक, बीएमआई एक मेडिकल स्क्रीनिंग टूल है जो किसी व्यक्ति के शरीर में वसा की मात्रा का अनुमान लगाने के लिए उसकी ऊंचाई और उसके वजन के अनुपात को मापता है। वर्तमान परिभाषा कहती है कि 30 किलोग्राम प्रति वर्ग मीटर और उससे अधिक बीएमआई वाले व्यक्ति को मोटा माना जा सकता है।
लैंसेट आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, अतिरिक्त शारीरिक चर्बी वाले लोगों का बीएमआई हमेशा 30 से ऊपर नहीं होता है, जिसका अर्थ है कि उनके स्वास्थ्य संबंधी खतरे पर किसी का ध्यान नहीं जा सकता है। इसी प्रकार, इसमें कहा गया है कि उच्च मांसपेशी द्रव्यमान वाले लोगों, जैसे एथलीट में सामान्य वसा द्रव्यमान के बावजूद उच्च बीएमआई होता है और उन्हें मोटापे या बीमारी से ग्रस्त बताना ठीक नहीं है।
शोध में कहा गया है कि मोटापे के निदान के लिए केवल बीएमआई पर निर्भर रहना समस्याजनक है, क्योंकि कुछ लोगों में कमर पर या उनके अंगों, जैसे कि लीवर, हृदय या मांसपेशियों के आस-पास अतिरिक्त चर्बी जमा हो जाती है और यह तब की तुलना में अधिक स्वास्थ्य के खतरे से जुड़ा है, जब अतिरिक्त चर्बी हाथों, पैरों या शरीर के अन्य हिस्सों में त्वचा के ठीक नीचे जमा होती है।
शोध के मुताबिक, शरीर में अतिरिक्त चर्बी वाले लोगों का हमेशा ऐसा बीएमआई नहीं होता जो इस ओर इशारा करें कि वे मोटापे से ग्रस्त हैं, जिसका मतलब है कि उनकी स्वास्थ्य समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया जा सकता। इसके अलावा, कुछ लोगों का बीएमआई और शरीर में चर्बी ज्यादा होती है, लेकिन उनके अंग और शरीर के कार्य सामान्य रहते हैं और बीमारी के कोई लक्षण या संकेत नहीं होते।
शोध पत्र में विशेषज्ञ समिति में शामिल शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि भारत में पेट का मोटापा बहुत आम है। बीएमआई माप पर आधारित मौजूदा मानदंड अक्सर उन्हें मोटापे के रूप में वर्गीकृत करने में विफल रहते हैं। नया वर्गीकरण इस समस्या को दूर करने में मदद करेगा।
शोध पत्र में लैंसेट आयोग का कहना है कि मोटापे से पीड़ित सभी लोगों को चिकित्सा या शल्य चिकित्सा की जरूरत नहीं पड़ती है। इसने पहली बार मोटापे को दो समूहों में विभाजित करने की सिफारिश की है, पहला क्लिनिकल या नैदानिक मोटापा और दूसरा प्रीक्लिनिकल या पूर्व-नैदानिक मोटापा, जो कि संकेत और लक्षण की उपस्थिति या अनुपस्थिति के आधार पर होता है। जिसमें अंग के कार्य में परिवर्तन या किसी व्यक्ति की रोजमर्रा की गतिविधियों को संचालित करने की क्षमता में कमी शामिल है।
शोध पत्र में आयोग ने सुझाव दिया है कि प्रीक्लिनिकल या पूर्व-नैदानिक मोटापे से पीड़ित लोगों को आमतौर पर दवाओं या सर्जरी के साथ उपचार की आवश्यकता नहीं होती है और उन्हें केवल समय के साथ स्वास्थ्य की निगरानी और स्वास्थ्य परामर्श की जरूरत पड़ सकती है।
यदि मनुष्य के नैदानिक मोटापे या अन्य बीमारियों के बढ़ने का खतरा पर्याप्त रूप से कम माना जाता है। हालांकि इसमें कहा गया है कि नैदानिक मोटापे से पीड़ित लोगों को चिकित्सा या शल्य चिकित्सा की आवश्यकता पड़ सकती है क्योंकि मोटापे को अगर बिना उपचार के छोड़ दिया जाए, तो यह दिल के दौरे और स्ट्रोक के बढ़ते खतरों सहित गंभीर समस्याओं को पैदा कर सकता है।