"हमारे गांव के वार्ड नंबर 1, 7, 8 और 11 में लगभग 14-15 दिन पहले कुछ मुर्गे-मुर्गियों और बत्तख की अचानक छटपटा कर मौत होने लगी थी। जिसके बाद गांव के लोगों ने कई कौवों को भी मरा हुआ पाया था। इस बात की सूचना वन विभाग को दी गई थी। लेकिन उस वक्त जिला वन पदाधिकारी सुनील कुमार शरण पक्षियों में बर्ड फ्लू से स्पष्ट इंकार कर दिया था। अब हमारा डर सच निकला। पक्षियों में बर्ड फ्लू की पुष्टि की गई"। सदर अस्पताल में पदस्थापित चिकित्सक डॉ दुर्गेश कुमार बताते है।
बिहार के सुपौल मुख्य शहर से लगभग 4 किलोमीटर दूर पिपरा खुर्द पंचायत में स्थित छपकाही गांव के कुछ वार्डों से लिये गये सैंपलों में बर्ड फ्लू की पुष्टि हुई है। पटना से आयी टीम ने मरे पक्षियों के सैंपल इकट्ठा कर उसे जांच के लिए भेजा था। बर्ड फ्लू की पुष्टि के बाद पक्षियों को मारने के साथ ही गांव से सटे आसपास के सभी गांवों को चिन्हित करने के लिए टीम बना दी गयी है ताकि समय रहते बर्ड फ्लू को सीमित दायरे में रोका जा सके।
जिला पशुपालन पदाधिकारी राम शंकर झा बताते हैं कि, "बर्ड फ्लू की पुष्टि की रिपोर्ट आने के बाद प्रशासन की तरफ से छपकाही गांव के आसपास सभी गांवों में मुर्गे-मुर्गियों को मारने के लिए चार टीम बनायी गई है। छपकाही गांव को केंन्द्र मानते हुए 1 किमी परिधि के सभी गांवों के मुर्गें-मुर्गियों को पहले नष्ट किया जाएगा। जिस भी पक्षी पालक का जो नुकसान होगा उसे प्रशासन के द्वारा मुआवजा भी दिया जाएगा।"
"लेयर मुर्गी के चूजों के ₹20, बड़ी मुर्गियों के लिए ₹90, ब्रायलर मुर्गियों के चूजों के ₹20, बतख के चूजों के ₹35 और बड़ी बतख के ₹135, बटेर के चूजों के ₹5 और बड़े बटेर के 10₹, गिनी फाउल के चूजों के 20₹ और बड़ी गिनी फाउल के 90₹ के अलावा अंडों को नष्ट करने पर प्रति अंडा ₹3 और पोल्ट्री फीड को नष्ट करने पर ₹12 प्रति किलो मुआवजा पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय द्वारा निर्धारित किए गए हैं।" आगे राम शंकर झा बताते है।
पटना से सुपौल पहुंची पशुपालन विभाग की टीम के सदस्य आशीष बताते हैं कि, "पिछले 24 घंटे यानी 14 अप्रैल के दिन 258 मुर्गे, मुर्गियों, 37 बत्तख और 2 हंसों को मार दिया गया था। वहीं पिछले एक सप्ताह के दौरान कहीं से मुर्गा, मुर्गी मरने की खबर नहीं आया है। इस इलाके यानी छपकाही गांव में कहीं भी मुर्गा फार्म नहीं है, जो राहत की बात है।"
जिला प्रशासन के द्वारा एक पक्षियों को दफनाने के लिए एक निश्चित स्थानों की पहचान कर ली गई है। जो स्थान निचले इलाकों और जल निकायों से दूर हैं। ताकि भूजल प्रभावित ना हो जाए। टीम पक्षियों को जूट के थैलों में डालने और दफनाने से पहले कैल्शियम कार्बोनेट पाउडर का छिड़काव कर रही है। साथ ही प्रभावित क्षेत्रों में चूना और ब्लीचिंग पाउडर के छिड़काव के अलावा फागिंग भी कराई गई है।
पशुपालन विभाग ने प्रभावित इलाके में तीन महीने तक मुर्गापालन पर प्रतिबंध लगाया है। जिला पशुपालन पदाधिकारी राम शंकर झा बताते हैं कि पशुपालन विभाग ने प्रभावित इलाके में तीन महीने तक मुर्गापालन पर प्रतिबंध लगाया है। इसके बावजूद भी लोगों को एहतियात बरतना चाहिए। चिकन खाने से परहेज करना चाहिए, क्योंकि पक्षियों के मल, लार और आंख से स्राव के माध्यम से भी ये बीमारी इंसानों में फैल सकती है। कुछ दिन के बाद भी अगर दुकान से चिकन खरीदते हैं तो उसे धोते वक्त हाथों पर ग्लव्स और मुंह पर मास्क जरूर पहनिए।"
बातचीत के दौरान स्थानीय निवासी मुकेश पासवान और मोहम्मद अख्तर बताते हैं कि कोरोना के संक्रमण से लोग पहले ही सहमे हुए हैं, अब बर्ड फ्लू का डर पैदा हो गया है। हम लोग शायद ही सालभर चिकन खा पाएंगे। प्रशासन पूरी तरह जागरूक है उम्मीद है कोई बुरी खबर नहीं आएगी।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार एवियन इन्फ्लूएंजा, जिसे आमतौर पर बर्ड फ्लू के रूप में जाना जाता है। ये एक पक्षी से दूसरे पक्षियों में फैलता है।बर्ड फ्लू का सबसे जानलेवा स्ट्रेन H5N1 होता है। ये वायरस संक्रमित पक्षियों से अन्य जानवरों और इंसानों में भी फैल सकता है।