स्वास्थ्य

बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित आधी आबादी, 200 करोड़ लोगों के लिए भारी पड़ रहा इलाज का बोझ

इलाज पर होता बेतहाशा खर्च करीब 130 करोड़ लोगों को गरीबी के भंवर में धकेल चुका है, वहीं जो लोग पहले ही इसमें फंसे थे, उनके लिए स्थिति और बदतर हो गई है

Lalit Maurya

कोविड-19 महामारी से जूझने के बाद भी दुनिया में स्वास्थ्य सुविधाओं और सेवाओं की स्थिति कोई खास अच्छी नहीं है और यह आंकड़ों में भी झलकता है। यदि 2021 के आंकड़ों पर गौर करें तो दुनिया की करीब आधी आबादी यानी 450 करोड़ लोग बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित हैं। गौरतलब है कि इसमें कोविड-19 महामारी के संभावित दीर्घकालिक प्रभावों को शामिल नहीं किया गया है।

इतना ही नहीं वैश्विक स्तर पर करीब 200 करोड़ लोगों को अपनी दवाओं और इलाज का खर्च खुद अपनी जेब से भरना पड़ा था, जो उनके लिए वित्तीय कठिनाइयां पैदा कर रहा है। रिपोर्ट की मानें तो इलाज पर होता यह बेतहाशा खर्च करीब 130 करोड़ लोगों को गरीबी के भंवर में धकेल चुका है, वहीं जो लोग पहले ही इसमें फंसे हैं उनके लिए स्थिति और बदतर हो गई है।

अनुमान है कि पहले ही इलाज के बढ़ते बोझ से करीब 34.4 करोड़ लोग बेहद गरीबी की मार झेल रहे हैं। बता दें कि यह आंकड़ा 2019 के दौरान अत्यधिक गरीबी का सामना करने वाली दुनिया की करीब आधी आबादी के बराबर है।

यह  जानकारी विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और वर्ल्ड बैंक द्वारा जारी नई रिपोर्ट "ट्रैकिंग यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज: 2023 ग्लोबल मॉनिटरिंग रिपोर्ट" में सामने आई है। इस रिपोर्ट को 78वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा में सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (यूएचसी) पर होने वाली उच्च-स्तरीय बैठक से पहले जारी किया गया है।

यह रिपोर्ट सबसे नवीनतम साक्ष्यों का उपयोग करके कड़वी सच्चाई का खुलासा करती है। ऐसे में रिपोर्ट में स्वास्थ्य से जुड़ी इन चुनौतियों का सामना करने के लिए राजनैतिक प्रतिबद्धता और अधिक सरकारी निवेश की बात कही है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉक्टर टैड्रॉस ऐडहेनॉम घेबरेयेसस का कहना है कि, "कोविड-19 महामारी ने यह साबित कर दिया है कि समाज और अर्थव्यवस्था की बेहतरी के लिए लोगों का स्वस्थ होना कितना जरूरी है।"

उनके मुताबिक जब बहुत से लोग किफायती और बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित रह जाते हैं तो इसका असर न केवल उनके स्वास्थ्य पर पड़ता है। साथ ही इसकी वजह से समाज और अर्थव्यवस्थाओं की स्थिरता भी खतरे में पड़ जाती है। ऐसे में उन्होंने राजनीतिक नेताओं से मजबूत प्रतिबद्धता और स्वास्थ्य देखभाल में निवेश बढ़ाने पर बल दिया है। साथ ही उन्होंने प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल पर आधारित स्वास्थ्य प्रणालियों के कायापलट के लिए एक निर्णायक बदलाव की आवश्यकता पर जोर दिया है।

स्वास्थ्य पर बढ़ता खर्च लोगों के लिए बन रहा परेशानी का सबब

इस सदी की शुरूआत के बाद से देखें तो स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में विस्तार हुआ है। लेकिन 2015 के बाद से इस दिशा में हो रही प्रगति धीमी पड़ गई है। हैरानी की बात है कि 2019 से 2021 के बीच इसमें कोई सुधार नहीं हुआ। हालांकि 2000 के बाद से संक्रामक बीमारियों के इलाज से जुड़ी सेवाओं में काफी सुधार हुआ है, लेकिन हाल के वर्षों में गैर-संचारी रोगों के साथ बाल, नवजात और मातृ स्वास्थ्य से जुड़ी सेवाओं में बहुत ज्यादा प्रगति नहीं हुई है।

गौरतलब है कि स्वास्थ्य से जुड़े जो सतत विकास के लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं, उनका मकसद 2030 तक सभी के लिए बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराना है। लेकिन यह आंकड़े कुछ और ही कहानी बयां करते हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक पिछले दो दशकों में एक तिहाई से भी कम देशों ने स्वास्थ्य देखभाल से जुड़ी सेवाओं को अधिक सुलभ बनाया है और इलाज के साथ-साथ स्वास्थ्य देखभाल पर लोगों की जेब से हो रहे खर्चों के वित्तीय बोझ को कम किया है।

इसके अलावा, अधिकांश देशों (138 में से 96) में जहां यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज (यूएचसी) के दोनों पहलुओं से जुड़े आंकड़े मौजूद हैं, वो स्वास्थ्य सेवाओं और वित्तीय सुरक्षा दोनों ही मामलों में पिछड़ रहे हैं।

विश्व बैंक में मानव विकास मामलों की उपाध्यक्ष ममता मूर्ति का इस बारे में कहना है कि, “हम जानते हैं कि सभी तक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच, लोगों को गरीबी से बचाने का एक महत्वपूर्ण तरीका है। लेकिन इसके बावजूद दुःख की बात है कि विशेष रूप से वो लोग जो सबसे गरीब और कमजोर तबके से जुड़े हैं, वो बहुत अधिक वित्तीय कठिनाइयों का सामना करने को मजबूर हैं।“

उनके मुताबिक यह रिपोर्ट एक चिंताजनक स्थिति को दर्शाती है, लेकिन साथी ही इस बात का भी सबूत देती है कि सरकारें अपने बजट में स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान कैसे दे सकती हैं और कैसे स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों में सुधार कर सकती हैं, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि सभी को बेहतर स्वास्थ्य देखभाल और वित्तीय सुरक्षा मिल सके।

रिपोर्ट में सरकारों और स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े भागीदारों से सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में त्वरित कार्रवाई और संसाधनों के निवेश की गुहार लगाई है, जिससे सतत विकास के इन महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को हासिल करने की राह में दोबारा पटरी पर लौटा जा सके।

इससे जुड़े महत्वपूर्ण कदमों में प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल पर अधिक ध्यान देने और इसके लिए स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों को नया आकार देने की बात कही है।  साथ ही यह भी सुनिश्चित करना कि सभी को स्वास्थ्य देखभाल और वित्तीय सुरक्षा तक समान पहुंच मिल सके जरूरी है। साथ ही इन कदमों में स्वास्थ्य सूचना प्रणालियों को मजबूत करना भी शामिल है।

रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में स्वास्थ्य प्रणालियों और स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े लोगों पर कोविड-19 के प्रभावों से निपटने के लिए यह बदलाव बेहद अहम हैं। यह परिवर्तन आर्थिक, जलवायु परिवर्तन, बढ़ती आबादी और राजनीतिक बदलाव के चलते उपजी नई चुनौतियों से निपटने में भी मददगार हो सकते हैं, जो दुनिया भर में स्वास्थ्य सेवाओं की दिशा में हुई प्रगति को कमजोर कर सकते हैं।