बिहार के छह जिलों में स्तनदूध में यूरेनियम की उच्च मात्रा पाई गई है, जो शिशुओं के लिए स्वास्थ्य खतरा है।
अध्ययन में 40 माताओं के नमूनों में यूरेनियम की मात्रा 5.25 माइक्रोग्राम प्रति लीटर तक पाई गई।
विशेषज्ञों ने कहा कि यह शिशुओं में गैर-कैंसरकारी स्वास्थ्य प्रभाव उत्पन्न कर सकता है।
बिहार के छह जिलों की महिलाओं के स्तनदूध में यूरेनियम के उच्च स्तर पाए गए हैं, जो शिशुओं के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरे का संकेत है। यह जानकारी एक नयी रिपोर्ट में सामने आई है।
जांच में लिए गए नमूनों में यूरेनियम की मात्रा 5.25 माइक्रोग्राम प्रति लीटर तक पाई गई और हर नमूने में यूरेनियम पाया गया। स्तनदूध में यूरेनियम की कितनी मात्रा सुरक्षित मानी जाए, इसके लिए अभी तक कोई स्वीकृत सीमा या मानक निर्धारित नहीं है।
पिछले वर्ष वैज्ञानिकों ने स्तनदूध के नमूनों में सीसा (लीड) भी पाया था और कुछ वर्ष पहले आर्सेनिक की मौजूदगी का भी पता चला था।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यह यूरेनियम शिशुओं में स्वास्थ्य संबंधी कई जटिलताओं को जन्म दे सकती है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि जिन महिलाओं के नमूने लिए गए, उनमें कैंसरकारी (कार्सिनोजेनिक) जोखिम नहीं पाया गया।
यह अध्ययन भारत के कई संस्थानों के वैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा किया गया, जिनमें बिहार के पटना स्थित महावीर कैंसर संस्थान एवं अनुसंधान केंद्र, पंजाब के फगवाड़ा में लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी, बिहार के हाजीपुर में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च और दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) शामिल हैं।
वैज्ञानिकों ने अक्टूबर 2021 से जुलाई 2024 के दौरान बिहार के भोजपुर, समस्तीपुर, बेगूसराय, खगड़िया, कटिहार और नालंदा जिलों से 17-35 वर्ष आयु वर्ग की 40 स्तनपान कराने वाली माताओं के नमूने चुने और उनका विश्लेषण किया।
शोध अध्ययन से जुड़े वैज्ञानिकों में से एक अरुण कुमार ने बताया, “स्तनदूध के नमूनों में यूरेनियम (यू238) की मात्रा को संयुक्त राज्य अमेरिका से प्राप्त उपकरण की मदद से मापा गया। यूरेनियम का विश्लेषण बिहार के वैशाली ज़िले स्थित एनआइपीइआर-हाजीपुर में किया गया।”
शिशुओं और माताओं में कैंसरकारी जोखिम और जोखिम गुणांक का भी अध्ययन किया गया, ताकि यूरेनियम के संभावित स्वास्थ्य प्रभावों को समझा जा सके।
डिस्कवरी ऑफ यूरेनियम कंटेंट इन ब्रेस्ट मिल्क एंड असेसमेंट ऑफ एसोसिएटेड हेल्थ रिस्क फॉर मदर्स एंड इनफेंट इन बिहार, इंडिया शीर्षक वाली रिपोर्ट पिछले सप्ताह जर्नल नेचर में प्रकाशित हुई।
वैज्ञानिकों ने लिखा है कि माताओं की तुलना में शिशु संभावित गैर-कैंसरकारी जोखिम के प्रति अधिक संवेदनशील पाए गए, क्योंकि उनके शरीर से यूरेनियम का वास्तविक समय में निष्कासन अधिक प्रभाव डाल सकता है।
निष्कर्षों के अनुसार, शिशुओं की 70 प्रतिशत आबादी में पाया गया यूरेनियम स्तर गैर-कैंसरकारी स्वास्थ्य प्रभाव उत्पन्न करने की क्षमता रखता था।
सबसे अधिक यूरेनियम सांद्रता (5.2 माइक्रोग्राम प्रति लीटर) कटिहार में दर्ज की गई। सबसे कम औसत मान 2.35 माइक्रोग्राम प्रति लीटर नालंदा के नमूनों में मिला, जबकि सबसे अधिक औसत मान 4.035 माइक्रोग्राम प्रति लीटर खगड़िया के नमूनों में पाया गया।
वैज्ञानिकों ने बताया कि अध्ययन में शामिल जिलों में यूरेनियम का स्रोत पीने का पानी या उसी क्षेत्र में उगाई गई खाद्य सामग्री हो सकता है।
भारत में भूजल में यूरेनियम प्रदूषण एक गंभीर चिंता का विषय है, जो 18 राज्यों के 151 जिलों को प्रभावित कर रहा है।
अध्ययनों से पता चला है कि बिहार के 11 जिले गोपालगंज, सारण, सीवान, पूर्वी चंपारण, पटना, वैशाली, नवादा, नालंदा, सुपौल, कटिहार और भागलपुर इस समस्या से जूझ रहे हैं।