स्वास्थ्य

टीबी रोगियों के परिवारों को बेहतर पोषण मिले तो 40 फीसदी कम हो सकता है नया संक्रमण: लैंसेट

परीक्षण में शामिल प्रतिभागियों में से दो-तिहाई से अधिक आदिवासी थे, जिनमें से अधिकांश पीडीएस से राशन प्राप्त कर रहे थे। पांच में से चार रोगी कुपोषित थे, इनमें से लगभग आधों में गंभीर कुपोषण पाया गया

Dayanidhi

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा समर्थित एक शोध परीक्षण में पाया गया है कि टीबी या तपेदिक रोगी के परिवार के सदस्यों के पोषण में सुधार से इस बीमारी के मामलों में 40 प्रतिशत तक की कमी हो सकती है।

शोध के मुताबिक, जब झारखंड के एक 18 वर्षीय आदिवासी को टीबी का पता चला, तो उसका शरीर बहुत कमजोर हो गया था, उसका वजन सिर्फ 26 किलो था, उसके जीने की कोई उम्मीद नहीं थी। परिवार को दिन में एक वक्त का भोजन भी मुश्किल से मिल पाता था, जिससे उसकी हालत और खराब हो गई। लेकिन जब उसे पौष्टिक भोजन के पैकेट दिए गए तो छह महीने में लड़के के शरीर का वजन 16 किलो बढ़ गया।

शोधकर्ताओं ने कहा, वह एक परीक्षण का हिस्सा था, जिसने दिखाया कि अच्छे आहार और पोषण से न केवल संक्रमित रोगियों के साथ रहने वाले कमजोर लोगों में तपेदिक (टीबी) की बीमारी को रोकने में मदद मिली, बल्कि रोगियों में मृत्यु दर पर भी अंकुश लगा।

ये निष्कर्ष आईसीएमआर के दो नए अध्ययनों का परिणाम थे जो द लैंसेट और द लैंसेट ग्लोबल हेल्थ पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं। जो झारखंड में आयोजित, शोध परीक्षण के पहले सबूत को सामने लाते हैं, जिससे इस बात का पता चलता है कि, अतिरिक्त पोषण देने से भारत में टीबी के मामलों और मृत्यु दर को रोका जा सकता है।

पोषण संबंधी स्थिति में सुधार के द्वारा, टीबी की सक्रियता को कम करने के परीक्षण के नए सबूतों से पता चलता है कि, फेफड़ों के संक्रामक टीबी वाले रोगियों के बीच बेहतर पोषण से हर तरह की टीबी को 40 प्रतिशत और संक्रामक टीबी को लगभग 50 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है।

शोधकर्ताओं के अनुसार, पोषण संबंधी सहायता शुरू करने के पहले दो महीनों में जल्दी वजन बढ़ने से टीबी से मृत्यु दर का खतरा 60 प्रतिशत कम हो जाता है। अन्य लाभों में उपचार की सफलता की उच्च दर और अन्य कार्रवाई के दौरान बेहतर वजन बढ़ना शामिल है।

परीक्षण के अनुसार, 2,800 टीबी रोगियों के 10,345 घरेलू लोगों को नियमित भोजन पार्सल और अतिरिक्त सूक्ष्म पोषक तत्व 750 किलो कैलोरी, 23 ग्राम प्रोटीन दिया गया था।

कुल 5,621 लोगों को एक वर्ष के लिए पोषक तत्वों से भरपूर भोजन दिया गया, जबकि 4,724 लोगों को बिना किसी अतिरिक्त पोषण के खाद्य पार्सल दिए गए थे। परीक्षण के अंत में, नियंत्रण समूह की तुलना में हस्तक्षेप समूह में टीबी की घटनाओं में 39 प्रतिशत की कमी देखी गई।

दूसरे अध्ययन में छह महीने तक टीबी के 2,800 रोगियों का अध्ययन किया गया और पाया गया कि अतिरिक्त पोषण उपचार के दौरान वजन बढ़ने से मृत्यु का खतरा कम हो गया, खासकर पहले दो महीनों के भीतर जब मौतें होती हैं। एक प्रतिशत वजन बढ़ने पर मृत्यु का तत्काल खतरा 13 प्रतिशत कम हो गया और पांच प्रतिशत वजन बढ़ने पर 61 प्रतिशत कम हो गया।

राष्ट्रीय टीबी कार्यक्रम के तहत, जिन रोगियों में तपेदिक की जांच की जाती है, उन्हें उनके उपचार की अवधि के लिए प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के माध्यम से 500 रुपये मासिक पोषण सहायता दी जाती है। 2018 में इसकी शुरुआत के बाद से, इस नि-क्षय पोषण योजना के तहत 244 मिलियन डॉलर प्रदान किए गए हैं। इसके अलावा, सरकार ने पिछले साल नि-क्षय मित्र कार्यक्रम भी शुरू किया, जिससे स्वयंसेवकों को अपने गोद लिए गए रोगियों को मासिक पोषण किट प्रदान करने की अनुमति मिल सके।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की ग्लोबल ट्यूबरक्लोसिस रिपोर्ट, 2022 के अनुसार, भारत में 2021 में 4,94,000 मौतों के साथ 30 लाख नए टीबी के मामले दर्ज किए गए, जो वैश्विक टीबी के मामलों का 27 प्रतिशत और मौतों का 35 प्रतिशत है। भारत का लक्ष्य 2025 तक टीबी के मामलों में 80 प्रतिशत की कमी और टीबी से होने वाली मृत्यु दर में 90 प्रतिशत की कमी लाना है।

राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम और राष्ट्रीय क्षय रोग अनुसंधान संस्थान, चेन्नई के सहयोग से झारखंड के चार जिलों में अगस्त 2019 से अगस्त 2022 के बीच तीन साल का अध्ययन आयोजित किया गया था। इसे भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने समर्थन दिया था।

झारखंड को परीक्षण स्थल के रूप में चुना गया था क्योंकि यहां टीबी के मरीज सबसे अधिक है और बहुआयामी गरीबी का दूसरा उच्चतम स्तर भी है। सभी प्रतिभागियों को छह महीने के लिए मासिक 10 किलो भोजन की टोकरी, जिसमें चावल, दाल, दूध पाउडर, तेल और मल्टीविटामिन दिए गए।

शोध के मुताबिक, परिवार के सदस्यों में, समूह के हर व्यक्ति को प्रति माह पांच किलोग्राम चावल और 1.5 किलोग्राम दालें दी जाती थीं। यह कम लागत वाला भोजन-आधारित पोषण संबंधी हस्तक्षेप हो सकता है टीबी को काफी हद तक रोका जा सकता है।

परीक्षण में शामिल प्रतिभागियों में से दो-तिहाई से अधिक आदिवासी थे, जिनमें से अधिकांश पीडीएस से राशन प्राप्त कर रहे थे। पांच में से चार रोगी कुपोषित थे, इनमें से लगभग आधों में गंभीर कुपोषण पाया गया।

इनमें एचआईवी, मधुमेह, एमडीआर-टीबी का प्रसार कम था लेकिन शराब और तंबाकू का उपयोग अधिक पाया गया। लगभग एक प्रतिशत मरीज हाइपरटेंसिव, हाइपोक्सिक थे, या खड़े होने में असमर्थ थे, जो रोगी की देखभाल की आवश्यकता को दर्शाता है। सभी उम्र के तीन में से एक नामांकन के समय कुपोषण का शिकार था।

अध्ययन से पता चला है कि फेफड़े के टीबी वाले रोगियों के परिवार के सदस्यों में पोषण स्तर में सुधार से इस बीमारी के होने का खतरा काफी हद तक कम हो सकता है।