स्वास्थ्य

दूरदर्शी और कारगर है पीएमबीजेपी

जनऔषधि केंद्र हमारे समाज के एक बड़े वर्ग की 1,451 जेनेरिक दवाओं और 240 सर्जिकल वस्तुओं की सस्ती आपूर्ति सुनिश्चित करते हैं

Swapnil Soni

भारत ने फरवरी मध्य में जन औषधि दिवस 2022 मनाने का निर्णय लिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2015 में भारत के नागरिकों को सस्ती और गुणवत्तापूर्ण दवा प्रदान करने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना (पीएमबीजेपी) की शुरुआत की थी।

यह योजना केंद्रीय रसायन और उर्वरक मंत्रालय के फार्मास्यूटिकल्स विभाग के अधीन शुरू की गई। 2015 में इसकी शुरुआत के बाद से पूरे भारत में 8,000 से अधिक जनऔषधि केंद्र  क्रियाशील हैं।

ये केंद्र हमारे समाज के एक बड़े वर्ग को 1,451 जेनेरिक दवाओं और 240 सर्जिकल वस्तुओं की सस्ती आपूर्ति करते हैं। दीर्घकालीन अवधि में सभी नागरिकों के स्वास्थ्य देखभाल को सस्ता, सुलभ और स्वीकार्य बनाना पीएमबीजेपी का उद्देश्य है।

स्वास्थ्य देखभाल जरूरी

स्वास्थ्य राष्ट्र के मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) के केंद्रीय स्तंभों में से एक है जो इसकी समृद्धि का प्रतीक है। स्वास्थ्य न केवल व्यक्ति की एक बुनियादी आवश्यकता है, बल्कि राष्ट्र के लिए मानव-पूंजी का अभिन्न अंग भी है।

इसे देखते हुए प्रत्येक राष्ट्र का उद्देश्य विभिन्न पहलों और योजनाओं के माध्यम से अपने नागरिकों को सस्ती लागत पर बेहतर स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करना है। पीएमबीजेपी सस्ती और सुलभ स्वास्थ्य देखभाल की सुविधा के लिए ऐसी ही बेहतरीन पहल है।

भारत सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है और दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है। इसके बावजूद स्वास्थ्य सेवा के लिए बजट आवंटन 3 प्रतिशत से भी कम है। भारत की आबादी में अधिकांश हिस्सेदारी  ग्रामीणों और मध्यम आय समूहों की है।

हमारे देश की लगभग एक तिहाई आबादी स्वास्थ्य बीमा से वंचित है। विभिन्न बीमारियां और महामारी का प्रकोप स्थिति को और बदतर बनाते हैं। इन सबके मद्देनजर स्वास्थ्य देखभाल को सस्ता बनाना जरूरी है। दवाएं और सर्जिकल उपकरण स्वास्थ्य देखभाल में अहम भूमिका निभाते हैं।

अगर इन्हें समाज में सर्वसुलभ बना दिया जाए तो स्वास्थ्य की प्रमुख और बुनियादी समस्या का समाधान हो जाता है। जन उपयोगी “जन औषधि” इसलिए अति महत्वपूर्ण हो जाती हैं।

बाजार में प्रतिस्पर्धा और दवा उद्योग में लाभ की भूख ने जेनेरिक दवाओं की उपेक्षा की है और दवाओं पर निजीकरण हावी हो गया है। इसके परिणामस्वरूप स्वास्थ्य की बुनियादी जरूरतें पूरी करने में लोगों की जेब पर भार बढ़ गया है।

नीति आयोग की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, स्वास्थ्य देखभाल पर भारत का आउट-ऑफ-पॉकेट खर्च 60 प्रतिशत से अधिक है जो निम्न-मध्यम आय वाले देशों के औसत से काफी अधिक है। इस समस्या का तोड़ खोजना भारत के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। पीएमबीजेपी को इसी चुनौती के समाधान के रूप में देखा जा सकता है।   

पीएमबीजेपी फार्मा क्षेत्र में मानव संसाधनों को रोजगार के अवसर भी प्रदान करती है। यह जनऔषधि केंद्र खोलने और आय सृजित करने के लिए योग्य पेशेवरों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है। प्रत्यक्ष रोजगार के अवसरों के अलावा, जनऔषधि केन्द्र आपूति श्रृंखला और परिवहन, मेंटेंनस क्षेत्रों में भी रोजगार पैदा करती है।

इस प्रकार पीएमबीजेपी न केवल स्वास्थ्य के लिए बल्कि राष्ट्र की संपत्ति के लिए भी औषधि है। यह वास्तव में एक जन-उपयोगी है।

आगे की राह

पीएमबीजेपी ने गुजरे सात वर्षों में देश में जनऔषधि केंद्र की व्यापक उपस्थिति और सस्ती दवाएं प्रदान करने के मामले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आबादी की बढ़ती उम्र और महामारी को देखते हुए इसकी स्थिरता और विकास के लिए इस पहल का समर्थन और बढ़ावा देने की आवश्यकता है।

इसके लिए कुछ सुझाव महत्वपूर्ण हो सकते हैं। पहला, जनऔषधि केंद्र की पहुंच बढ़ाना।

दूसरा, पीएमबीजेपी के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रचार। तीसरा, बढ़ती मुद्रास्फीति और आपूति लागत के बावजूद जेनेरिक दवाओं के किफायती मूल्य को बनाए रखना। इन चुनौतियों को देखते हुए कुछ सुझाव कारगर साबित हो सकते हैं।

जैसे, सबसे पहले जनऔषधि केन्द्र की पहुंच बढ़ाने के लिए अवसंरचना और वित्तीय सहायता के लिए स्वास्थ्य देखभाल बजट में वृद्धि की आवश्यकता है।

इसके अलावा, जेनेरिक दवाओं के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल को अपनाना चाहिए। इसमें अधिक निजी खिलाड़ियों को प्रतिस्पर्धी भागीदारी बढ़ाने और आउटरीच का विस्तार करने के लिए तैयार किया जाना चाहिए।

जनऔषधि केंद्र के विस्तार में फार्मास्युटिकल स्टाफ के प्रशिक्षण और विकास की भी आवश्यकता होगी। दूसरा, पीएमबीजेपी और जनऔषधि केंद्र के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए स्थानीय अस्पतालों, क्लीनिकों और डॉक्टरों के साथ सहयोग की आवश्यकता है।

विशिष्ट विज्ञापन अभियानों के अलावा यह जेनेरिक दवाओं की प्रभावकारिता पर लोगों के विश्वास को बढ़ाएगा। इसकी वजह यह है कि रोगी डॉक्टर के पर्चे में विश्वास करते हैं, विज्ञापन में नहीं।

अंत में मुद्रास्फीति से बचाव करने और जेनेरिक दवाओं की सस्ती कीमतों को बनाए रखने के लिए आपूर्ति पक्ष के हस्तक्षेप की भी आवश्यकता है। इसमें मुख्य रूप से कम लागत पर पेटेंट दवाओं के बराबर जेनेरिक दवाओं में प्रभावकारिता लाने के लिए दवाओं का अनुसंधान और विकास शामिल है।

उत्पादन, भंडारण और आपूर्ति श्रृंखला में दक्षता से इनपुट लागत में कमी लाने में भी मदद मिलेगी। इस प्रकार, हितधारकों के लाभ हित से समझौता किए बिना किफायती मूल्यों को बनाए रखा जा सकता है।

सस्ती, सुलभ और स्वीकार्य दवाएं हर नागरिक का अधिकार है। स्वास्थ्य केवल व्यक्ति की पसंद ही नहीं, बल्कि राष्ट्र की आवश्यकता है। पीएमबीजेपी स्वस्थ भारत की दिशा में एक बेहतर पहल है। यह न केवल आम नागरिकों के लिए दवाओं को सुलभ बनाता है, बल्कि रोजगार भी पैदा करता है। इस पहल को भविष्य के भारत के लिए टिकाऊ बनाना महत्वपूर्ण है।

(ये लेखक के निजी विचार हैं और आवश्यक नहीं है कि उनके विचार डाउन टू अर्थ से मेल खाएं)