स्वास्थ्य

बंगाल चुनाव: आर्सेनिक की चपेट में आ रहे बच्चे चुनावी एजेंडे से बाहर

Umesh Kumar Ray

पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले के गायघाटा ब्लॉक के मधुसूदनकाठी फ्री प्राइमरी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों की उम्र 14 साल से भी कम है, लेकिन इसी उम्र में उनके शरीर में भारी मात्रा में जानलेवा रसायन आर्सेनिक जमा हो गया है। अगर इन बच्चों के शरीर में आर्सेनिक इसी तरह प्रवेश करता रहे, तो 10 साल बाद आर्सेनिक का दुष्प्रभाव इनके शरीर में स्पष्ट तौर पर दिखने लगेगा।

मधुसूदनकाठी प्राइमरी स्कूल के बच्चों को लेकर किये गये एक शोध में ये खुलासा हुआ है। जादवपुर यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ एनवायरमेंटल स्टडीज की तरफ से किया गया ये शोध एक्सपोजर एंड हेल्थ नाम के जर्नल में छपा है। शोध के लिए स्कूल के बच्चों के नाखून, बाल और यूरिन के सैंपल लिये गये। साथ ही स्कूल में पकने वाला मिड डे मिल और पानी का सैंपल भी इकट्ठा किया गया। 

इन सैंपलों की जांच में मिड डे मिल से लेकर पानी तक और यहां तक कि बच्चों के नाखून, बाल और यूरिन में भी भारी मात्रा में आर्सेनिक मिला है, जो जानकारों के मुताबिक, गंभीर चिंता की बात है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, एक लीटर पानी में 10 माइक्रोग्राम आर्सेनिक की मौजूदगी सेहत के लिए नुकसानदेह नहीं है, लेकिन सैंपलों की जांच में पता चला है कि भोजन के जरिए उनके शरीर में रोजाना 366 माइक्रोग्राम आर्सेनिक पहुंच रहा है। इसी तरह बच्चों के यूरिन में 64.6 माइक्रोग्राम (प्रति लीटर) आर्सेनिक, बालों में 2656 माइक्रोग्राम (प्रति लीटर) और नाखूनों में 4256 माइक्रोग्राम (प्रति लीटर) आर्सेनिक मिला है।

शोध का नेतृत्व करने वाले जादवपुर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर तरित रायचौधरी ने डाउन टू अर्थ को बताया, “शरीर में जितना आर्सेनिक पहुंचता है, उसका 70 प्रतिशत हिस्सा यूरिन के रास्ते बाहर निकल जाता है, लेकिन बच्चों के यूरिन में इतनी भारी मात्रा में आर्सेनिक मिलने का मतबल है कि कई माध्यमों से उनके शरीर में आर्सेनिक पहुंच रहा है। इतना ही नहीं, बाल और नाखूनों में आर्सेनिक की मौजूदगी से साबित होता है कि बच्चों के शरीर में बड़े पैमाने पर आर्सेनिक जमा हो चुका है।

बच्चों में सामान्य तौर पर आर्सेनिक का दुष्प्रभाव तुरंत नहीं दिखाई पड़ता है। यही बच्चे अगर अगले 10 साल तक आर्सेनिक युक्त पानी और भोजन का सेवन जारी रखते हैं तो 20-22 साल की उम्र में उनकी हथेली, तलवों शरीर के अन्य हिस्सों में सख्त गांठें निकली शुरू हो जाएंगी।” 

पानी ही नहीं, खाने से भी पहुंच रहा आर्सेनिक

जिस स्कूल के बच्चों पर शोध किया गया है, उस स्कूल में मौजूद ट्यूबवेल के पानी का इस्तेमाल तो मिड डे मिल में होता है और ही पीने में, क्योंकि उक्त ट्यूबवेल के पानी में आर्सेनिक है।

स्कूल के एक शिक्षक ने नाम नहीं छापने की शर्त पर डाउन टू अर्थ को बताया, “हमारी पंचायत में एक एनजीओ का वाटर ट्रीटमेंट प्लांट है। ये प्लांट करीब 8 साल पहले स्थापित हुआ था। उसी समय से हमारे स्कूल को वहां से फ्री में साफ पानी मुहैया कराया जाता है। इसी पानी का इस्तेमाल मिड डे मिल में होता है और पीने में भी।

उन्होंने कहा, जब भी इस तरह की जांच होती है, तो हमलोग स्कूल के प्रशासक को रिपोर्ट देते हैं, लेकिन इस पर सरकार की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं होती है। चुनावों में भी इस मुद्दे पर कोई नेता बात नहीं करता है।

सवाल उठता है कि बच्चों में आर्सेनिक कैसे पहुंच रहा है? तरित रायचौधरी कहते हैं, “दरअसल बच्चों में जागरूकता की कमी है, तो संभव है कि रोक के बावजूद वे लोग ट्यूबवेल का पानी पी लेते होंगे। इसके अलावा उनके लिए मिड डे मिल बनाने में जिस अनाज का इस्तेमाल होता है, उसमें आर्सेनिक मौजूद है, क्योंकि अनाज को उपजाने में भूगर्भ जल का इस्तेमाल हो रहा है, जो आर्सेनिक से प्रदूषित है। इससे अनाज खासकर धान, जिसमें पानी की जरूरत अधिक पड़ती है, में आर्सेनिक की मौजूदगी अधिक रहती है। इसके जरिए बच्चों में आर्सेनिक पहंच रहा है। इसके अलावा बच्चे घर पर जाकर कौन सा पानी इस्तेमाल करते हैं, ये किसी को नहीं मालूम। संभव है कि घरों में मौजूद जलस्रोतों में आर्सेनिक होगा और बच्चे इन स्रोतों से पानी पी रहे होंगे।

उल्लेखनीय हो कि पश्चिम बंगाल के बर्दवान, हुगली, हावड़ा, मालदह, मुर्शिदाबाद, नदिया, उत्तर 24 परगना और दक्षिण 24 परगना के भूगर्भ जल में आर्सेनिक पाया जाता है। 

बंगाल में नल-जल योजना फिसड्डी

केंद्र सरकार ने सभी घरों में नल से पानी पहुंचाने के लिए योजना शुरू की है, लेकिन पश्चिम बंगाल में ये योजना फिसड्डी साबित हो रही है। जलशक्ति मंत्रालय से मिले आंकड़ों के मुताबिक, पश्चिम बंगाल उन तीन राज्यों में शामिल है जहां नल जल योजना के तहत सबसे कम काम हुआ है। पश्चिम बंगाल में कुल 1,63,25,859 घर हैं, लेकिन अब तक केवल 8.63 प्रतिशत घरों तक ही नल से जल पहुंच सका है।

नल जल स्कीम के तहत आर्सेनिक और फ्लोराइड प्रभावित इलाकों में साफ पानी भी पहुंचाना है। जलशक्ति मंत्रालय ने पश्चिम बंगाल की 9112 बसाहटों की शिनाख्त की है, जहां साफ पानी पहुंचाया जाना है। इनमें उत्तर 24 परगना जिले की 2699 बसाहटें शामिल हैं। आंकड़े बताते हैं कि इनमें से 2638 बसाहटों में साफ पहुंचाया जा चुका है और 61 में काम चल रहा है, लेकिन मधुसूदनकाठी फ्री प्राइमरी स्कूल की जांच इस आंकड़ों की पोल खोल रही है।

पश्चिम बंगाल के जनस्वास्वाथ्य अभियांत्रिकी विभाग के एक अधिकारी ने नाम नहीं जाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा, “उत्तर 24 परगना जिले में कुल 34 आर्सेनिक रिमूवल प्लांट स्थापित करने की मंजूरी दी गई है। इनमें से 20 से अधिक प्लांट तैयार हो चुके हैं। उत्तर 24 परगना जिले के हाबरा-गायघाटा में सतही पानी पर आधारित जलापूर्ति स्कीम पर भी काम चल रहा है। जल्द ही ये तैयार हो जाएंगे, तो लोगों को शत-प्रतिशत साफ पानी दिया जा सकेगा।”