आज वनों और वन्यजीवों के जीवन में जरूरत से ज्यादा दखलअंदाजी और वनों की कटाई, निवास स्थान के नुकसान की वजह से वायरस फैलने के आसार बढ़ गए हैं। वन्यजीवों से लोगों में रोग फैलाने वाले वायरस का पूर्वानुमान लगाने और भविष्य में महामारियों पर लगाम लगाने के लिए, वन्यजीवों से रोग के खतरे सबसे अधिक कहां है यह समझना महत्वपूर्ण है।
नीदरलैंड में वैगनिंगन यूनिवर्सिटी एंड रिसर्च (डब्ल्यूयूआर) की अगुवाई में शोधकर्ताओं की एक टीम ने बताया कि स्तनपायी जैव विविधता वन्यजीवों की बीमारी के खतरों को बढ़ाने वाला एक महत्वपूर्ण तंत्र है। उन्होंने दुनिया भर में 4466 स्तनपायी प्रजातियों के बारे में पता लगाया जो बहुत अधिक संख्या में फैले थे। उन्होंने इन प्रजातियों के आंकड़ों का विश्लेषण करके रोग के खतरों की पहचान की।
स्तनधारी जीवों में रोग फैलाने वाले वायरस होते हैं जिनसे लोगों में रोग फैलता है। रोग फैलने की इस प्रक्रिया को जूनोटिक कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि जानवरों से ही लोगों में सार्स-सीओवी-2 वायरस फैला, जिसकी वजह से पूरी दुनिया कोविड-19 महामारी का शिकार है।
शोधकर्ताओं ने पाया कि स्तनपायी में बढ़ोतरी और इनमें स्थानीय आधार पर भिन्नता वन्यजीव रोग के खतरे को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाती है। अध्ययनकर्ता यिंगिंग वांग कहते हैं कि सभी स्तनपायी प्रजातियों में से एक चौथाई के विलुप्त होने के खतरे के साथ, हमें तत्काल यह समझने की आवश्यकता है कि जैव विविधता का नुकसान जूनोटिक रोग के जोखिम को कैसे प्रभावित करता है।
उन्होंने और उनके सहयोगियों ने दुनिया भर में रहने वाले स्थलीय स्तनपायी के मॉडल के लिए सबसे पहले जलवायु और उनके पसंदीदा आवास, शरीर का द्रव्यमान और स्तनधारियों के आहार पर जानकारी का उपयोग किया।
किस प्रजाति के कितने जानवर एक साथ रहते हैं और कहां रहते हैं? इन चीजों के आधार पर, शोधकर्ताओं ने महामारी विज्ञान पैरामीटर 'आर-नोट' के पारिस्थितिक संस्करण का उपयोग करके रोग के खतरे की गणना की।
यह आबादी के स्तर पर आर-नोट कई मेजबानों को संक्रमित करने वाले रोगजनकों के लिए मूल प्रजनन संख्या का प्रतिनिधित्व करता है। इस दृष्टिकोण को तब रोग के खतरे का पूर्वानुमान लगाने के लिए बढ़ाया गया था।
परिणामों से पता चलता है कि उष्णकटिबंधीय इलाकों में रोग फैलने की सबसे अधिक आशंका है, क्योंकि यहां जैव विविधता बहुत अधिक है, लेकिन इसमें जोखिम भरे समशीतोष्ण क्षेत्र भी शामिल थे। भूमध्यरेखीय उष्ण कटिबंध और यूरोप, उत्तरी अमेरिका और एशिया के तापमान के घनत्व पर निर्भर बीमारियों का जोखिम अधिक था, जबकि उत्तरी अमेरिका और यूरेशिया के उत्तरी भागों और ओशिनिया में बार-बार होने वाली बीमारियों का जोखिम अधिक था।
ये पूर्वानुमान बीमारी के प्रकोप के पिछले वैश्विक पैटर्न के साथ अच्छी तरह फिट बैठते हैं। हालांकि वन्य जीव पारिस्थितिकी विद केविन मैटसन के अनुसार वन्य जीव से नई बीमारियों के उद्भव के मामले में लोग अक्सर उष्णकटिबंधीय इलाकों को जोखिम भरा मानते हैं। लेकिन हमारे पूर्वानुमान इस संभावना को उजागर करते हैं कि उष्णकटिबंधीय इलाकों के बाहर भी नए प्रकोप हो सकते हैं।
उन्होंने आगे बताया कि एक कारण यह भी हो सकता है कि समशीतोष्ण क्षेत्रों में कुछ स्तनधारी, विशेष रूप से कतरने वाले जानवर जैसे चूहा गिलहरी आदि में, मेजबान प्रजातियों के बीच कुछ वायरस एक दूसरे में फैल जाते हैं। यह अध्ययन ग्लोबल चेंज बायोलॉजी नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
निवास स्थान के नुकसान, जलवायु परिवर्तन और अन्य वैश्विक ताकतों के कारण चल रहे जैव विविधता संकट का सामना करते हुए, शोधकर्ताओं ने यह भी सोचा कि आने वाले दशकों में वन्य जीव रोग का खतरा कैसे बदल सकता है।
ऐसा करने के लिए, उन्होंने दो अलग-अलग रास्तों के तहत प्रत्याशित पर्यावरणीय परिवर्तनों को शामिल करने के लिए अपने मॉडल का विस्तार किया। जिसमें पहला भविष्य के अपेक्षाकृत गुलाबी अथवा आशावादी दृष्टिकोण के साथ और दूसरा, अधिक निराशावादी था।
इससे यह पता चला है कि प्रजातियों को बीमारी के जोखिम को प्रभावित करने के लिए स्थानीय रूप से विलुप्त होने की जरूरत नहीं है, जैसा कि अक्सर माना जाता है। रोग के खतरे में पर्याप्त परिवर्तन किसी भी प्रजाति के विलुप्त होने के बिना हो सकता है, इसके बजाय सापेक्ष बहुतायत में परिवर्तन से प्रभावित होता है।
बड़ी प्रजातियां छोटी प्रजातियों की बहुतायत को नियंत्रित कर सकती हैं, जिसका अर्थ है कि हमें इस बात पर विचार करना होगा कि बड़ी प्रजातियों का संरक्षण एक महत्वपूर्ण नियंत्रण उपाय के रूप में काम कर सकता है।
इस तरह के निष्कर्ष हमें जैव विविधता और बीमारी के बीच संबंधों की बारीकियों और जटिलता को स्वीकार करने के लिए मजबूर करते हैं। शोधकर्ता डी बोअर ने कहा यह रोमांचक है कि हमारे पूर्वानुमान बीमारी के प्रकोप के पिछले वैश्विक पैटर्न के साथ इतनी अच्छी तरह फिट बैठते हैं। इससे पता चलता है कि हमने यह समझने की सही दिशा में एक कदम उठाया है कि रोगों के और जैव विविधता के बीच संबंध वास्तव में कैसे काम करता है।