चीन के बाहर कोविड-19 के शुरुआती 288 मामलों की ट्रैवल हिस्ट्री और संक्रमण श्रृंखला का पीछा करने वाले
शोध ने इस बात की खोजबीन की है कि जब चीन को छोड़कर दुनिया को इसकी भनक नहीं थी, तब हुबई के वुहान में लगाए गए यात्रा प्रतिबंध और अन्य सख्त कदमों ने भी आखिर क्यों दुनिया में इसका प्रसार नहीं रोका। शोध के लिए 3 जनवरी से लेकर 13 फरवरी के बीच चीन से बाहर संक्रमित होने वाले 288 लोगों का डाटा जुटाया गया। इनके यात्रा इतिहास, संक्रमण की पूरी जानकारी, अस्पताल में दाखिला आदि सूचनाओं का भी संग्रहण किया गया। महामारी घोषित होने से काफी पहले ज्यादातर लोग चीन के प्रांतों से लौटे थे या चीन के लोगों के संपर्क में आए थे।
इन 288 लोगों में 163 इंपोर्टेड यानी देशों में प्रवेश करने वाले मामले थे, 109 मामले ऐसे थे जिन्होंने स्थानीय संक्रमण फैलाया, 30 ने अपने देश में वापसी की थी और एक मामले की उत्पत्ति नहीं पता चली। इनमें 15 मामले ऐसे भी थे जो न सिर्फ देश में दाखिल हुए बल्कि उन्होंने स्थानीय स्तर पर संक्रमण भी फैलाया। ये चीन से बाहर ये संक्रमित हुए और इन्होंने कई देशों की यात्राएं भी की।
जनवरी, 2020 में चीन में पहचाने गए गंभीर श्वसन सिंड्रोम सार्स-सीओवी-2 (सीवियर एक्यूट रेस्पेरिटरी सिंड्रोम कोरोनावारयरस 2) ने कुछ ही महीनों के भीतर दुनिया भर में अपने पांव पसार दिए थे। 17 मार्च, 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे वैश्विक महामारी घोषित किया था। वहीं, जनवरी खत्म होने को थी और उसी वक्त चीन के प्राधिकरणों ने इस महामारी को नियंत्रित करने के लिए कई कदम उठाए। चीन समेत बाहरी देशों ने भी सीमाओं पर चौकसी बढ़ा दी। बाहर से आने वाले लोगों की निगरानी के लिए सर्विलांस व जांच बढ़ा दिया गया ताकि संक्रमण की संभावना रखने वाले लोगों को आम लोगों से अलग किया जा सके।
हालांकि, इस व्यापक कदम ने भी संक्रमण की संभावना रखने वाले लोगों के आने और उनकी पहचान में कोई खास मदद नहीं की। उल्टे स्थानीय स्तर पर संक्रमण की स्वतंत्र श्रृंखला बनाने वालों का विस्तार होता गया और आखिरकार यह स्थानीय स्तर में फैल गया।
शोध में यह पाया गया कि शुरुआती स्तर पर महामारी की प्रकृति और आकार के आधार पर ही जांच केंद्रित हो रही थी। कोविड-19 को पनपने के लिए जो समय चाहिए वह स्क्रीनिंग में एक बड़ी चुनौती बनकर सामने आया। मसलन कोई संक्रमित व्यक्ति अपने रोजमर्रा के काम कर रहा है या यात्रा में है और उसमें कोई लक्षण सामने नहीं आए हैं तो वह एयरपोर्ट पर होने वाली स्क्रीनिंग में बचकर निकल जाएगा। ऐसा ही हुआ। मसलन हल्के और बहुत विशेष लक्षण न दिखाई देने वालों ने भी कोरोना को विस्तार दिया। ऐसे मामलों न ही जांचे जा सके और वैश्विक स्तर पर कोरोना विस्तार का असर दिखाई दिया।
चीन में यात्रा प्रतिबंध और संक्रमण रोकने की रणनीति ने मामलों को बाहर और ज्यादा विस्तारित होने से भले रोका लेकिन चीन आने वाले लोगों यानी इंपोर्टेशन का जोखिम दक्षिण पूर्वी एशिया के अन्य स्रोतों से बढ़ गया। चीन में महामारी के शुरुआती चरण में सर्विलांस और यात्रा वाले मामलों को प्रबंधित करने पर जोर था। हालांकि बड़ी संख्या में लोग आसानी से इन जांच प्रयासों से छिप गए। मसलन, 10 में से 6 मामले बिना जांचे ही रहे जिन्होंने दुनियाभर में समुदायों के बीच कोरोना की स्वतंत्र सत्ता को न सिर्फ विस्तारित किया बल्कि मजबूत भी बनाया। डिटेक्शन रेट यानी जांच की दर महज 36 फीसदी ही थी। यानी कोरोनो ने अपने यहां प्रतिबंध लगाकर मामलों को भले ही निर्यात करने के मामले में अंकुश लगाया लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोरोना संक्रमण के विस्तारित होने को रोकने में नाकाम रहा।
शोध के मुताबिक, सख्त यात्रा प्रतिबंध का एक फायदा यह हो सकता है कि इसके जरिए देशों को छोटी अवधि में ही सर्विलांस सिस्टम को मजबूत करने का समय मिल जाता है। ऐसा देखने को भी मिला कि पहले यात्रा की तारीख से जांच की तारीख के बीच बड़ा गैप था लेकिन बाद में यह अंतराल काफी घट गया और जांच जल्दी होने लगी। साथ ही बाहर से आने वाले मामलों में भी कमी आई। हालांकि, दूसरी तरफ यह भी संभव है कि यह कमी काफी देर में दिखाई दे, तब तक इपिसेंटर यानी जहां से बीमारी पैदा हुई है वह उस स्थान से निकलकर दुनियाभर में स्थानीय स्तर पर फैल और स्थापित हो चुकी हो।
फरवरी के अंत में ईरान और इटली में कोविड-19 का कहर समुदायिक स्तर पर फैल गया था जो बाद में दुनिया के कई देशों में कुछ ही दिनों में फैल गया। वहीं, उस वक्त कोविड-19 मामले को सिर्फ चीन से यात्रा को जोड़कर देखा जा रहा था। कहीं-कहीं पूर्वी-एशियाई देशों की यात्रा के लोगों की भी निगरानी की जा रही थी। वहीं, ऑस्ट्रेलिया और चीन में शुरुआती स्तर पर कोविड-19 की दूसरी लहर की रोकथाम के लिए व्यापक जांच और क्वारंटाइन जैसे प्रयास बाहर से आने वाले यात्रियों के लिए किए जिसने महामारी की शुरुआत में ही ऐसे मामलों को भी उजागर किया जो चुपके से संक्रमण फैला सकते थे।
शोध में यह भी पाया गया कि फरवरी के शुरुआत में चीन के बाहर कई देशों में कोरोना मरीज मिल रहे थे लेकिन उन्हें महामारी के लिंक का कोई ज्ञान नहीं था। वहीं, बहुत कम लोगों की जांच हो रही थी। उसके कई कारण थे, मसलन बिना लक्षण या हल्के लक्षण वाले संक्रमण, केस की परिभाषा, जैसे कई फैक्टर थे जो लोगों के संक्रमण को पकड़ नहीं पाए। जब तक एक गंभीर स्थिति के मरीज का परीक्षण नहीं हो जाता था तब तक उस क्लस्टर का पता नहीं लगाया जा सका था कि वहां कोरोना संक्रमित हो सकते हैं। ऐसा ही इटली में देखने को मिला, जब 21 फरवरी को पहला गंभीर मरीज वहां मिला और देखते ही देखते कुछ ही दिन में वहां बिना जांचे गए कई लोगों में लक्षण सामने आ गए। न सिर्फ कुछ जांच रिपोर्ट गलत आईं बल्कि कुछ समय ढ़लने के बाद सूचनाएं भी कमजोर और गुणवत्ताहीन होने लगी जिसने संक्रमण विस्तार को समझने में दिक्कत पैदा की।
वहीं, फरवरी के अंत में जब कई देशों में इपिसेंटर बन गए उसी वक्त दुनिया भर में यात्राओं पर प्रतिबंध लग गया ताकि उनके देशों में बाहर से आने वाले मामलों की रोकथाम हो सके। खासतौर से यूरोप और नॉर्थ अमेरिका में यह प्रतिबंध लगा। इसने न सिर्फ फ्लाइट नेटवर्क को बाधित किया बल्कि देश के भीतर फैल रहे कोविड-19 मामलों की रोकथाम से ध्यान भी भटकाया। वहीं शुरुआती चरण में बिना जांचे मामलों ने समस्या को विकराल बनाया।
वहीं, हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि वुहान भले ही इपिसेंटर था और वहां प्रतिबंध लगाया गया लेकिन यह कदम दुनिया के दूसरे को इपिसेंटर बनने से रोक नहीं पाया। यदि इंपोर्टेशन यानी बाहर से देश के भीतर आने वाले मामलों की जांच दर बढ़िया और मजबूत होती तो शायद यह स्थिति न बनती। अब जब कई देश लॉकडाउन को खत्म कर रहे हैंऔर महामारी गतिविधियों में ढ़ील बरत रहे हैं तो उन्हें कोविड-19 का पहला सबक याद रखना चाहिए ताकि दूसरी लहर हमें बर्बाद न करे।