इस साल समावेशी कप के लिए आयोजित इस प्रतियोगिता में 102 टीमों ने भाग लिया। फोटो: राकेश कुमार मालवीय 
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बराबरी की मिसाल: लड़कों के साथ क्रिकेट खेलती लड़कियां बदल रही हैं तस्वीर

मध्यप्रदेश के चार जिलों में लड़कियों और लड़कों की सम्मिलित क्रिकेट प्रतियोगिता ने सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ते हुए खेल में बराबरी की नई मिसाल पेश की है

Rakesh Kumar Malviya

आपने लड़कों की क्रिकेट टीम के बारे में सुना है। लड़कियों भी अब चौके छक्के लगा रही हैं ! पर क्या आपने कभी यह देखा—सुना है कि कप्तान लड़की फील्डिंग सजा रही है और लड़के भाग-भाग कर रन बचा रहे हैं, यह भी किसी व्यवस्थित प्रतियोगिता में जहां लड़ाई हजारों की ईनाम की है। जीहां, यह सब कुछ हो रहा है मध्यप्रदेश के चार जिलों में। इसकी शुरुआत पांच साल पहले हरदा जिले से हुई। सिनर्जी संस्था को आइडिया आया, पहल की और इस साल समावेशी कप शीर्षक के आयोजित इस प्रतियोगिता में 102 टीमों ने भाग लिया।

बीस साल पहले हरदा जिले में तीन युवाओं ने मिलकर सिनर्जी संस्था बनाई थी। यह संस्था मुख्यरूप से युवाओं के साथ काम करते आई है। युवाओं में लड़कियां भी शामिल हैं। संस्था के  सीईओ और को-फाउंडर विमल जाट ने बताया कि ‘पांच साल पहले दो लड़कियों ने क्रिकेट खेलने में रुचि दिखाई। इसे जब हमने गहराई से सोचा तो लगा कि लड़कियों को 'घर के काम' और पारंपरिक भूमिकाओं तक ही सीमित रखा जाता है। खेल को अक्सर 'लड़कों का क्षेत्र' माना जाता है। लड़कियों को माता-पिता और समुदाय से अपेक्षित समर्थन भी नहीं मिलता। गांवों में खेल मैदानों की कमी हैं। खेल के लिए जरूरी सुरक्षा उपायों जैसे स्ट्रीट लाइट्स और सुरक्षित परिवहन नहीं होते। प्रशिक्षित कोच और खेल किट नहीं मिल पाती। कुल मिलाकर ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों के खेल में निवेश न के बराबर होता है।‘

बस इसी जड़ता को दूर करने के लिए हरदा में लड़कियों की पहली लेदर बाल क्रिकेट टीम बनाई। थोड़ी कोशिशों से 11 लड़कियां आ गयी। यह सिर्फ एक खेल की शुरुआत नहीं थी, बल्कि लड़कियों को मैदान पर अपने अधिकार का दावा करने और सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ने की एक पहल थी।

सन 2020 में पहली प्रतियोगिता हुई। इसका अच्छा सन्देश गया। इसके बाद गांव-गांव में लड़कियों की क्रिकेट टीमें बनाना, प्रैक्टिस कराना और हर साल महिला क्रिकेट टूर्नामेंट शुरू किया। विमल ने बताया कि ‘इन टूर्नामेंट्स ने न केवल लड़कियों को खेल में हिस्सा लेने का अवसर दिया, बल्कि उनके आत्मविश्वास, नेतृत्व क्षमता और सामुदायिक भागीदारी को भी बढ़ावा दिया।‘

लड़कियों की टीम बनानी एक बात थी, पर यह आइडिया आया कि क्यों न ‘जेंडर इक्वल गेम्स’ शुरू किया जाए। दो साल बाद यानी साल 2022 से समावेशी कप प्रतियोगिता की शुरुआत की गई। इसके बहुत बेहतर परिणाम मिले हैं।  

मनासा गांव की 17 वर्षीय क्रिकेटर अंकिता सरियाम का कहती है, ‘पहले हमें लगता था कि क्रिकेट केवल लड़कों का खेल है, लेकिन आज मुझे गर्व है कि मैं इस बदलाव का हिस्सा हूं।‘ अंकिता के पिता विकास सरियाम कहते हैं ‘शुरुआत में हमें डर था कि लोग क्या कहेंगे! लेकिन आज मेरी बेटी को खेलते देखना गर्व का क्षण है।‘

बड़वानी गांव के शिक्षक शिवशंकर ढोले कहते हैं, ‘मिक्स्ड जेंडर गेम्स ने लड़कों और लड़कियों दोनों को एक-दूसरे को समझने और सम्मान देने का अवसर दिया है।‘ रहटगांव की सरपंच सुमित्रा रंगीले कहती हैं कि ‘हमने पहली बार देखा कि लड़के और लड़कियां एक साथ खेलते हुए सहयोग और समानता को बढ़ावा दे रहे हैं। यह नई पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा है।‘

अब प्रतियोगिता का दायरा बढ़ रहा है,  इस साल, हरदा के साथ खंडवा, बड़वानी और गुना जिलों में विस्तार किया गया है। इस साल इस प्रतियोगिता में कुल 102 टीमों के कुल 1326 लड़के और लड़कियां इस खेल में शामिल हुए। पिछले दो महीनों से इन टीमों ने अपने-अपने गांव और बस्तियों में नियमित अभ्यास किया है।

पहले लीग मैच हुए और क्वार्टरफाइनल, सेमीफाइनल और फाइनल हरदा में खेले गए। विजेताओं को ₹31,000, ₹21,000, ₹11,000 और ₹5,100 की पुरस्कार राशि प्रदान की गई।

इस पहल से समाज में एक सकारात्मक संदेश जा रहा है। यह पहल जड़ताओं को तोड़ रही है और लड़कियों की नेतृत्व क्षमता को स्थापित कर रही है। इस प्रतियोगिता का विस्तार यह बता रहा है कि यदि उचित मौके मिलें तो लड़कियां लड़कों से कम नहीं हैं। इससे परिवारों में भी लड़कियों के प्रति धारणा बदल रही है। यही नहीं, इस प्रतियोगिता के लिए इस साल समुदाय ने टूर्नामेंट पुरस्कार, क्रिकेट किट, भोजन और यात्रा के लिए तीन लाख रुपए का चंदा दिया है, जो इस पहल के सम​र्थन को बताता है।