दुनिया भर के रुझानों से पता चलता है कि हाल के दशकों में बच्चों में मोटापे में भारी वृद्धि हुई हैं। बच्चों में रोगों का बढ़ना और मृत्यु दर के लिए यह सबसे ज्यादा खतरनाक है, यह देखते हुए कि बचपन का मोटापा वयस्कता तक चलता जाता है।
अधिक वजन गैर-संचारी रोग (एनसीडी) होने का एक बड़ा कारण है। दुनिया भर की प्रणालियों में हो रहे बदलाव बढ़ते मोटापे के प्रमुख कारण हैं, विशेष रूप से किफायती, अत्यधिक प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों के उत्पादन में वृद्धि जो प्रभावी रूप से प्रसारित किए जाते हैं।
बच्चों में बढ़ते वजन के पीछे जंक फूड विज्ञापनों का कितना हाथ है? लिवरपूल विश्वविद्यालय की अगुवाई में इसकी वैश्विक समीक्षा की गई है। यह इस बात के साक्ष्य प्रदान करती है कि फूड मार्केटिंग बच्चों में जंक फूड के सेवन को बढ़ाव दे रहे हैं। इस शोध समीक्षा की शुरुआत विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा शुरू की गई थी।
यह अध्ययन लिवरपूल की टीम द्वारा हाल ही में किए गए अन्य शोध के निष्कर्षों पर आधारित है। समीक्षा के निष्कर्ष बताते हैं कि बच्चों पर जंक फूड मार्केटिंग से पड़ने वाले प्रभावों तथा इससे होने वाले खतरों पर लगाम लगाने की जरूरत है। इसके लिए नीतियां बनाने तथा उन्हें लागू करने से बच्चों के स्वास्थ्य को लाभ होने की उम्मीद है।
ऐसे उत्पाद जिनमें वसा, चीनी या नमक (एचएफएसएस) की बहुत अधिक मात्रा होती है उनको बढ़ावा देने के लिए टेलीविजन, डिजिटल मीडिया, बाहरी स्थानों में विज्ञापन दिए जाते हैं। विज्ञापनों के लिए खासकर खेल से जुड़े प्रसिद्ध सख्शियतों आदि का उपयोग किया जाता हैं। इन विज्ञापनों का बच्चों और किशोरों पर खासा प्रभाव पड़ता है।
हालांकि बच्चों को फूड मार्केटिंग के प्रभाव में काफी रुचि होती है, बच्चों के लिए खाद्य पदार्थों और बिना मादक वाले पेय पदार्थों की मार्केटिंग पर डब्ल्यूएचओ की सिफारिशों के मौजूदा संग्रह के लिए आधारभूत साक्ष्य अब बड़े पैमाने पर इंटरनेट को एक प्रमुख मार्केटिंग मंच के रूप में प्रस्तुत करता है।
डब्ल्यूएचओ ने शोध के माध्यम से विभिन्न मार्केटिंग प्लेटफार्मों पर बच्चों में फूड मार्केटिंग और खाने के व्यवहार और स्वास्थ्य के बीच संबंध स्थापित करने के लिए एक नई समीक्षा शुरू की। इस समीक्षा के निष्कर्ष से निकले दिशा निर्देश इस विषय पर जानकारी तथा जागरूकता फैलाने में मदद करेंगे।
प्रोफेसर एम्मा बॉयलैंड की अगुवाई में, लिवरपूल विश्वविद्यालय और स्टर्लिंग विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने 96 अध्ययनों की समीक्षा की, जिसमें 64 क्रमरहित (रैंडम्ली) नियंत्रित परीक्षण, 32 क्रमवार अध्ययन शामिल थे।
शोध में पाया गया कि फूड मार्केटिंग से भोजन सेवन, पसंद, वरीयता और खरीदने में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। हालांकि खरीदारी के साथ संबंधों का कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं था और दांत या शरीर के वजन के परिणामों पर भी बहुत कम सबूत पाए गए।
लिवरपूल विश्वविद्यालय में फूड मार्केटिंग और बाल स्वास्थ्य के प्रोफेसर एम्मा बॉयलैंड ने कहा कि यह समीक्षा सबूतों का एक मजबूत नया विश्लेषण प्रदान करती है, जो दिखाती है कि फूड मार्केटिंग बच्चों और किशोरों में बढ़ते सेवन, पसंद, वरीयता और खरीदने के लिए मजबूर कर देने वाले तरीकों से जुड़ा हुआ है।
इसके अलावा, यह संदेश को पुष्ट करता है कि बच्चों के स्वास्थ्य को हानि पहुंचाने वाले उत्पादों पर लगाम लगाने में मदद करने के लिए खाद्य विज्ञापनों पर अधिक प्रभावी प्रतिबंधों की आवश्यकता है। साथ ही यह सुनिश्चित करना कि उनके द्वारा दिए गए विकल्प उनके स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हैं।
खाद्य-संबंधी हर निर्णय हमारे नियंत्रण से बाहर असंख्य चीजों से प्रभावित होता है। प्रसंस्कृत वस्तुओं की उपलब्धता, पहुंच, सामर्थ्य, मार्केटिंग और प्रचार सभी हमारा ध्यान आकर्षित करने की कोशिश करते हैं और हम प्रतिस्पर्धी ब्रांडों से इन्हें खरीदते हैं। हमें चाहिए कि हम विज्ञापन और हेरफेर को हटा दें तथा अपने खाने और पीने के बारे में अपने मन को संतुलित बनाना शुरू कर सकते हैं। यह शोध जामा पीडियाट्रिक्स नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।