विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 2018 में 10 रोगों की एक ऐसी सूची जारी की थी, जो महामारी पैदा कर सकते हैं। ये सभी वायरल बीमारियां थी। जीका, इबोला और सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (सार्स – कोरोनो वायरस जनित) जैसे वायरस के अलावा, इस सूची में अज्ञात वायरस जनित डिजीज एक्स (बीमारी एक्स) का भी जिक्र था। अब ये माना जा रहा है कि कोविड-19 ही अज्ञात वायरस जनित डिजीज एक्स है। नीदरलैंड की इरास्मस यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर के वायरोसाइंस विभाग की हेड मैरियन कूपमंस जर्नल सेल में लिखती हैं, “यह प्रकोप (कोविड -19) तेजी से महामारी चुनौती बनता जा रहा है जो डिजीज एक्स श्रेणी में फिट बैठता है।” पीटर दासजक, डब्ल्यूएचओ की उस टीम का हिस्सा थे, जिसने 2018 की सूची बनाई थी। दासजक ने न्यूयॉर्क टाइम्स में लिखा है कि उनकी टीम ने अनुमान लगाया था कि डिजीज एक्स जानवरों से उत्पन्न होने वाली एक वायरल डिजीज होगी और ऐसी जगह पर उभरेगी, जहां आर्थिक विकास ने लोगों और वन्यजीवों को एक साथ जोड़ा है।
इस टीम ने भविष्यवाणी की थी कि प्रारंभिक अवस्था में इस बीमारी को लेकर भ्रम की स्थिति होगी। इसे अन्य बीमारी के रूप में समझा जा सकता है। लेकिन ये यात्रा और व्यापार के कारण जल्दी से पूरी दुनिया में फैल जाएगी। डिजीज एक्स का मृत्यु दर मौसमी फ्लू की तुलना में अधिक होगा और फ्लू की तरह ही आसानी से फैलेगा। यह महामारी बनने से पहले ही वित्तीय बाजारों को झकझोर देगा। वह लिखते हैं, “कोविड -19 ही डिजीज एक्स है।”
कोविड-19 के कारण हुई तबाही इस बात की भी तस्दीक करती है कि दुनिया को बेहतर ढंग से महामारी को समझने और प्रबंधित करने की जरूरत है। पेंसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी के पशु चिकित्सा और जैव चिकित्सा विभाग के एनीमल डायगनोस्टिक लैब के सहायक निदेशक और क्लिनिकल प्रोफेसर सुरेश वी कुचिपुड़ी कहते हैं, “संक्रामक रोगों की हमारी समझ में सुधार हुआ है। फिर भी हम महामारी के उभार से संबंधित सभी पहलुओं को पूरी तरह से नहीं समझ सके हैं।” हालांकि, वह अतीत की कुछ महामारियों के बीच कुछ समानता को उजागर करते हैं। वह कहते हैं, “आरएनए वायरस कोविड -19 सहित सभी प्रमुख महामारियों का कारण बना है।” उत्परिवर्तित और विकसित होने के अपने अंतर्निहित गुण के कारण, आरएनए वायरस भविष्य की महामारियों के कारण बन सकते हैं। 2011 से 2018 के बीच, 172 देशों में 1,483 महामारी की घटनाएं सामने आईं। 60 फीसदी महामारी जूनोटिक (जानवर से इंसान में फैलने वाली बीमारी) थी, जिनमें से 72 प्रतिशत वन्यजीवों में उत्पन्न हुए थे। कोविड-19 के अलावा, डब्ल्यूएचओ ने 2020 के पहले 79 दिनों में 9 बीमारियों के फैलने की बात कही थी।
जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय क्षरण मामले को बदतर बना रही है, क्योंकि ये वायरस को तेजी से उत्परिवर्तित होने में मदद करते हैं। इससे बीमारी के फैलने की दर बढ़ जाती है। स्कूल ऑफ एनवॉयारमेंट एंड बॉयोलॉजिकल साइंस, रटगर्स, द स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू जर्सी की सहायक प्रोफेसर सियोबेन डफ्फी ने 2018 में पीएलओएस बॉयोलॉजी में लिखा कि आरएनए वायरस में उत्परिवर्तन दर अपने मूल स्त्रोत के मुकाबले लाखों गुना अधिक होती है। ये उच्च दर और अनुकूलन की क्षमता विषाणुओं के दुष्प्रभाव और हानिकारक प्रभाव को तीव्र करने में सहायक माने जाते हैं। वायरल रोग का नियंत्रण मुश्किल होता है और उनके बारे में सीमित ज्ञान इस चुनौती को और अधिक बढ़ा देता है। दशकों के अनुभव के बावजूद, वैज्ञानिक वह प्रभावी तरीका खोजने में पूरी तरह सफल नहीं है जिससे वायरल प्रकोप को रोका जा सके। गौरतलब है कि 1917-1918 में जब घातक स्पैनिश फ्लू का प्रकोप था, तब भी आज की तरह ही सामाजिक दूरी और स्कूल बंद करने जैसे आकस्मिक तरीकों का इस्तेमाल किया गया था। ये तरीके तब भी काम नहीं करते थे और आज भी काम करते नहीं दिख रहे हैं। यहां तक कि साबुन से हाथ धोने को आज बहुत अधिक प्रचारित किया जा रहा है लेकिन यह भी उतना प्रभावी नहीं है, जितनी उम्मीद की जा रही थी।
यूनिवर्सिटी ऑफ हांगकांग के शोधकर्ताओं ने पाया कि व्यक्तिगत सुरक्षात्मक उपाय, जैसे हाथ की स्वच्छता या फेस मास्क और पर्यावरणीय स्वच्छता जैसे उपाय भी इन्फ्लूएंजा के प्रसार को कम करने में मदद नहीं करते हैं। बढ़ते खतरे के बावजूद, हमारे पास वैश्विक निगरानी की व्यवस्था नहीं है जो संभावित महामारी के उद्भव पर नजर रख सके। 2018 में एक प्रोजेक्ट (ग्लोबल विरोम प्रोजेक्ट) लांच किया गया था। इसके तहत, अगले 10 वर्षों में उन सभी स्थानों को मिलाकर एक ग्लोबल एटलस विकसित करने की बात है, जहां प्राकृतिक रूप से जूनोटिक वायरस पाए जाने की संभावना है। आज वैज्ञानिकों के पास मनुष्यों को संक्रमित कर सकने वाले सिर्फ 260 वायरस की जानकारी है। यह संभावित जूनोटिक वायरस संख्या का महज 0.1 प्रतिशत ही है। यानी, दुनिया आज भी लगभग 99.9 प्रतिशत संभावित जूनोटिक वायरस से अनभिज्ञ है।