स्वास्थ्य

गरीब देशों की 90 फीसदी आबादी को अगले साल तक नहीं मिल पाएगी कोरोना वैक्सीन, जानें क्यों?

Lalit Maurya

पीपुल्स वैक्सीन एलायंस की मानें तो लगभग 67 गरीब देश अगले साल तक अपने केवल दस में से एक नागरिक को कोरोना की वैक्सीन दे पाने में सक्षम होंगे। जबकि इसके विपरीत अमीर देशों ने क्लीनिकल ट्रायल के चरण में ही वैक्सीन की उतनी मात्रा खरीद ली है, जिसकी मदद से 2021 के अंत तक उनकी आबादी को तीन बार कोरोना वैक्सीन दी जा सकती है। अमीर देशों की इस लिस्ट में कनाडा सबसे ऊपर है जिसके पास उतनी वैक्सीन है जिसकी मदद से वो अपनी आबादी को पांच बार वैक्सीन दे सकता है। 

हाल ही में जारी आंकड़ों के अनुसार दुनिया की सिर्फ 14 फीसदी आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाले अमीर देशों ने कोरोना के सबसे कारगर टीकों का करीब 53 फीसदी हिस्सा खरीद लिया है। हालांकि यदि सरकारें सही समय पर सही कदम उठाएं और फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्री जरुरत के मुताबिक पर्याप्त वैक्सीन बना लेती हैं तो स्थिति को बदला जा सकता है। 

एमनेस्टी इंटरनेशनल, फ्रंटलाइन एड्स, ग्लोबल जस्टिस नाउ और ऑक्सफैम जैसे संगठन, पीपुल्स वैक्सीन एलायंस गठबंधन का हिस्सा हैं। इस एलायंस ने आठ अग्रणी वैक्सीन कंपनियों और देशों के बीच किए हुए सौदों का विश्लेषण करने के लिए एनालिटिक्स कंपनी एयरफिनिटी द्वारा एकत्र आंकड़ों का विश्लेषण किया है। रिपोर्ट के अनुसार 67 निम्न और निम्न-मध्य-आय वाले देशों को इसलिए वैक्सीन नहीं मिल पाएगी क्योंकि अमीर देश सिर्फ अपना फायदा देख रहे हैं। गौरतलब है कि इन 67 में से पांच देश (केन्या, म्यांमार, नाइजीरिया, पाकिस्तान और यूक्रेन) ऐसे हैं जहां अब तक कोविड-19 के 15 लाख से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं। 

ऑक्सफैम के स्वास्थ्य सम्बन्धी नीतियों की प्रबंधक, अन्ना मैरियट के अनुसार किसी को भी देश और पैसे की कमी के चलते जीवन रक्षक वैक्सीन से वंचित नहीं किया जा सकता। उनके अनुसार यदि स्थिति नाटकीय रूप से नहीं बदली तो आने वाले कई वर्षों में भी दुनिया के अरबों लोगों को कोविड-19 का सुरक्षित और प्रभावी टीका नहीं मिलेगा। 

गौरतलब है कि फिजर/ बायोएनटेक की वैक्सीन को ब्रिटेन में पहले ही मंजूरी मिल चुकी है और इस वैक्सीन की पहली खुराक एक 90 वर्षीय महिला को दी जा चुकी है। अनुमान है कि दिसम्बर के अंत तक ब्रिटेन में 4 लाख लोगों को वैक्सीन दी जाएगी। अनुमान है कि आने वाले कुछ दिनों में अमेरिका सहित अन्य देशों में भी इस वैक्सीन को मंजूरी दी जा सकती है। इसके साथ ही मॉडर्ना और ऑक्सफोर्ड एवं एस्ट्राज़ेनेका के साथ मिलकर तैयार की गई वैक्सीन भी मंजूरी के इंतजार में है। रुसी वैक्सीन 'स्पुतनिक' ने भी क्लीनिकल ट्रायल में सफल रहने की घोषणा की है, जबकि चार अन्य दवाएं भी क्लीनिकल ट्रायल के तीसरे चरण में हैं। 

विश्लेषण  के अनुसार मॉडर्ना की सभी खुराक और फिजर/ बायोएनटेक की करीब 96 फीसदी वैक्सीन को अमीर देशों ने खरीद लिया है। जबकि इसके विपरीत ऑक्सफोर्ड/ एस्ट्राज़ेनेका ने अपनी 64 फीसदी वैक्सीन को विकासशील देशों को देने का फैसला लिया है। उसके आपूर्ति की रफ्तार को बढ़ाने के बावजूद भी अगले साल तक दुनिया की बमुश्किल 18 फीसदी आबादी को ही वैक्सीन मिल पाएगी। ऑक्सफोर्ड / एस्ट्राजेनेका ने अपने ज्यादातर सौदे चीन और भारत जैसे कुछ बड़े विकासशील देशों के साथ किए हैं जबकि अधिकांश विकासशील देशों ने इस बाबत अब तक कोई सौदा नहीं किया है और वो देश वैक्सीन के लिए कोवेक्स पूल पर निर्भर हैं। 

यदि आंकड़ों पर गौर करें तो कोविड-19 दुनिया के 218 देशों में फैल चुका है। यह वायरस अब तक 6.8 करोड़ से ज्यादा लोगों को अपनी गिरफ्त में ले चुका है। इसके चलते अब तक करीब 1,565,254 लोगों की मौत हो चुकी है। जबकि 4.7 करोड़ से ज्यादा मरीज अब तक इस बीमारी से उबर चुके हैं। भारत में भी यह वायरस अब तक 97,35,850 लोगों को संक्रमित कर चुका है। जबकि इस संक्रमण से अब तक 141,360 लोगों की मृत्यु हो चुकी है।  

मॉडर्ना, ऑक्सफोर्ड/ एस्ट्राज़ेनेका और  फिजर/ बायोएनटेक को उनकी वैक्सीन विकसित करने के लिए 36,783 करोड़ रुपए (500 करोड़ डॉलर) से अधिक का सार्वजनिक धन प्राप्त हुआ है, एलायंस के अनुसार ऐसे में यह उनकी जिम्मेदारी है कि वो सार्वजनिक हितों को ध्यान में रखकर कदम उठाएं।  

पीपुल्स वैक्सीन एलायंस के डॉ मोगहा कमल यन्नी के अनुसार “अमीर देशों के पास वैक्सीन की इतनी खुराक है जिसकी मदद से वो अपनी पूरी आबादी को तीन बार टीका दे सकती है, जबकि गरीब देशों के पास अपने स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और जोखिम वाले लोगों को भी देने के लिए जरुरी वैक्सीन नहीं है। 

ऐसे में एलायंस ने सिफारिश की है कि देशों को चाहिए कि वो कोविड-19 वैक्सीन को सभी के लिए उपलब्ध कराने में मदद करें। जिसे जरुरत के आधार पर वितरित किया जाए। भारत और साउथ अफ्रीका पहले ही विश्व व्यापार संगठन से पहले ही कोविड-19 वैक्सीन, परीक्षणों और उपचार को आईपीआर से बाहर रखने की मांग कर चुके हैं। जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों को यह वैक्सीन उपलब्ध कराई जा सके।