स्वास्थ्य

डिमेंशिया से जूझ रहे हैं भारत के 90 लाख बुजुर्ग: अध्ययन

डब्ल्यूएचओ के अनुसार वर्तमान में दुनिया भर में 5.5 करोड़ से अधिक लोग डिमेंशिया से पीड़ित हैं और हर साल लगभग 1 करोड़ नए मामले सामने आते हैं

Dayanidhi

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, डिमेंशिया या मनोभ्रंश उम्र बढ़ने के साथ होने वाला एक विकार है। यह एक ऐसी समस्या है, जिसमें बीमार व्यक्ति मानसिक रूप से कमजोर हो जाता है। डिमेंशिया से पीड़ित व्यक्ति को अपने रोजमर्रा के कामों को निपटाने के लिए भी दूसरे लोगों की मदद की जरूरत पड़ती है।

यह स्मृति, सोच, समझ, गणना, सीखने की क्षमता, भाषा और निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करता है। ज्ञान-संबधी कार्य में नुकसान होना आमतौर पर मनोदशा, भावनात्मक नियंत्रण, व्यवहार या प्रेरणा में बदलाव होने पर होता है और कभी-कभी पहले भी ऐसा हो सकता है।

डब्ल्यूएचओ के अनुसार वर्तमान में दुनिया भर में 5.5 करोड़ से अधिक लोग डिमेंशिया से पीड़ित हैं और हर साल इसके लगभग 1 करोड़ नए मामले सामने आते हैं।

पूरे भारत में कराए गए एक अध्ययन में पाया गया है कि देश के लगभग 7.4 फीसदी बुजुर्गों को डिमेंशिया है। जिसका अर्थ है कि 60 वर्ष और उससे अधिक आयु के 88 लाख लोग स्मृति और ज्ञान-संबधी कार्य को कमजोर करने वाली बीमारी से पीड़ित हैं।

यह आंकड़ा पिछले अनुमानों से बहुत ज्यादा है, जिसने इसकी व्यापकता को 37 लाख माना था। इस बीमारी से जूझ रहे लोगों के लिए बेहतर देखभाल और सहायता की तत्काल आवश्यकता पर जोर देता है।

जम्मू-कश्मीर में डिमेंशिया का प्रसार देश में सबसे अधिक 11 फीसदी है। जबकि अधिकांश नमूने कश्मीर से एकत्र किए गए थे, विशेषज्ञों का मानना ​​है कि क्षेत्र की दशकों पुरानी राजनीतिक अशांति की भूमिका होने पर अधिक विस्तृत अध्ययन की गुंजाइश है।

दक्षिणी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय और एम्स-दिल्ली के शोधकर्ताओं की अगुवाई में मुंबई के जेजे अस्पताल सहित 18 अन्य संस्थानों के सहयोग से यह अध्ययन किया गया। अध्ययन में विभिन्न राज्यों में डिमेंशिया या मनोभ्रंश की बीमारी में काफी भिन्नता पाई गई।

महाराष्ट्र को उन 11 राज्यों में से एक के रूप में पहचाना गया है जहां डिमेंशिया या मनोभ्रंश के प्रसार राष्ट्रीय औसत से अधिक है। राज्य के 7.6 फीसदी लोग इस बीमारी के शिकार है। शोधकर्ताओं के अनुमान है कि 2036 तक राज्य में इस बीमारी के साथ रहने वाले लोगों की संख्या लगभग 10 लाख से बढ़कर 18 लाख हो जाएगी।

डिमेंशिया पुरुषों में 5.8 फीसदी की तुलना में महिलाओं 9 फीसदी लगभग दोगुना पाया गया। जिसे विशेषज्ञों ने शिक्षा और जीवन के शरुआती दौर में पोषण की कमी होना बताया गया है। शहरी क्षेत्रों 5.3 फीसदी की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में इस बीमारी का प्रसार भी 8.4 फीसदी अधिक पाया गया था, जो ग्रामीण स्वास्थ्य सुविधाओं में जांच को बढ़ाने की तत्काल आवश्यकता पर जोर देता है।

इसके अलावा, कम शिक्षा डिमेंशिया के अधिक खतरे से जुड़ी थी। उन लोगों में इस बीमारी का प्रसार 10 फीसदी था, जो बिल्कुल भी पढ़े लिखे नहीं थे, जबकि प्राथमिक स्तर की शिक्षा वाले लोगों में यह 4.5 फीसदी और आठवीं कक्षा और उससे ऊपर की शिक्षा हासिल करने वालों में यह बीमारी 1.5 फीसदी थी।

शोधकर्ताओं ने  इस विकार से निपटने के लिए अधिक स्थानीय नीतियों की मांग करते हुए कहा, राज्यों में शिक्षा के विभिन्न स्तर भी डिमेंशिया के लग-अलग खतरों के कारणों में क्रॉस-स्टेट मतभेदों में योगदान दे सकते हैं, जैसे कि कम पोषण और इनडोर वायु प्रदूषण के संपर्क में आना आदि।

दिल्ली के एम्स में गेरिएट्रिक मेडिसिन चिकित्सा विभाग के पूर्व परियोजना की अगुवाई करने वाले डॉ अपराजित बल्लव ने कहा, यह दुनिया में सबसे बड़ा ज्ञान संबंधी उम्र बढ़ने का अध्ययन है जहां विश्व स्तर पर उपयोग किए जाने वाले वैज्ञानिक उपकरणों को यह दिखाने के लिए उपयोग किया गया है कि डिमेंशिया लगभग सभी क्षेत्रों को प्रभावित करता है।

उन्होंने कहा इससे निपटने के लिए भारत को सभी स्वास्थ्य प्रणालियों को सशक्त बनाने की जरूरत है। यह अध्ययन अल्जाइमर एसोसिएशन नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।