स्वास्थ्य

अफ्रीका की 67 फीसदी आबादी में है विटामिन डी की कमी

, Lalit Maurya

दुनिया भर में विटामिन डी की कमी बढ़ती जा रही है| साथ ही उससे जुड़ी बीमारियों से ग्रस्त मरीजों की संख्या में भी इजाफा हो रहा है| अफ्रीका में भी एक बड़ी आबादी इस बीमारी का बोझ ढो रही है| लेकिन विडम्बना देखिये की इसके बारे में बहुत ही कम जानकारी उपलब्ध है| इससे जुड़ा एक शोध जर्नल लांसेट ग्लोबल हेल्थ में प्रकाशित हुआ है| जिसमें शोधकर्ताओं ने अफ्रीका और विटामिन डी से जुड़े शोधों का अध्ययन और विश्लेषण किया है| शोधकर्ताओं के अनुसार अफ्रीका में विटामिन डी की कमी का औसत प्रसार उनकी अपेक्षा से भी कहीं ज्यादा था।

कहते हैं कि बस कुछ मिनटों की धूप शरीर को पर्याप्त विटामिन डी प्रदान कर सकती है| दुनिया के कई देशों में धूप ही विटामिन डी का प्रमुख और एकमात्र स्रोत है| हालांकि जिन क्षेत्रों में पर्याप्त धूप नहीं निकलती (विशेषकर सर्दियों में) वहां रहने वाले लोगों में विटामिन डी की कमी होने का खतरा अधिक रहता है| जिसकी कमी को पूरा करने के लिए लोगों को विटामिन डी से भरपूर खाद्य पदार्थ और उसके विकल्पों का सेवन करना पड़ता है|

शरीर के लिए क्यों जरुरी है विटामिन डी

एक अन्य शोध के अनुसार विटामिन डी इंसानों में 229 जीनों के कार्य को नियंत्रित करता है। जिससे पता चलता है कि यह स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए कितना जरुरी है। शोध से पता चला है कि विटामिन डी की कमी कई संक्रामक और गैर-संक्रामक रोगों का कारण बनती है। उदाहरण के लिए लंबे समय से बच्चों में इसकी कमी से 'रिकेट्स' नमक रोग हो जाता है| जिसमें हड्डियों का विकास रुक जाता है और उसमें विकृति आ जाती है। जबकि वयस्कों में यह ऑस्टियोपोरोसिस और ऑस्टियोमलेशिया का कारण बन सकता है| जिससे फ्रैक्चर होने का खतरा बढ़ जाता है|

हाल ही के कई शोधों में माना गया है कि विटामिन डी की कमी से कैंसर, हृदय रोग, ऑटोइम्यून से जुडी बीमारियां और संक्रामक रोग हो सकते हैं| अफ्रीका में पूरे वर्ष प्रचुर मात्रा में धूप रहती है| ऐसे में इस बात की पूरी उम्मीद रहती है कि अफ्रीकी आबादी में विटामिन डी की कमी नहीं होगी| पर ऐसा नहीं है| इस शोध से पता चला है कि अफ्रीकियों में भी इस विटामिन की कमी है| ऐसे में यह शोध बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि अफ्रीका में नीति निर्माताओं, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और आम जन को इस बात की जानकारी होना जरुरी है

अफ्रीका संक्रामक और गैर-संक्रामक दोनों तरह के रोगों का बोझ ढो रहा है। उदाहरण के लिए, वैश्विक रूप से अफ्रीकी बच्चों में रिकेट्स के मामले बहुत ज्यादा हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा 2014 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार 2030 तक गैर संक्रामक रोगों के मामले, संक्रामक रोगों की तुलना में कहीं ज्यादा होंगे| इनमें से कई बीमारियों, जैसे मधुमेह, स्ट्रोक और कैंसर आदि विटामिन डी की कमी से जुड़े हैं।

क्या कहता है अध्ययन

अब तक ज्ञात जानकारी के अनुसार अब तक किसी भी अफ्रीकी देश ने अपनी सार्वजनिक स्वास्थ्य सम्बन्धी नीतियों में विटामिन डी को जगह नहीं दी है। अफ्रीका में लोगों को विटामिन डी के बारे में बहुत ही कम जानकारी है| लोगों के मन में यह धारणा है कि यहां आबादी में विटामिन डी की कोई कमी नहीं है|

अफ्रीका में विटामिन डी की कमी को समझने के लिए शोधकर्ताओं ने इसको तीन वर्गों में विभाजित करके देखा है| जिसके आधार पर उन्होंने इसकी कमी का अनुमान लगाया है|

  • विटामिन डी की गंभीर कमी: इसमें शरीर में विटामिन डी की मात्रा 30 नैनोमोल्स प्रति लीटर (एनएमएल / एल) से कम हो जाती है (इसके कारण शरीर में हड्डी और मिनरल्स से जुड़े रोगों का जोखिम बढ़ जाता है)
  • 50 नैनोमोल्स प्रति लीटर (एनएमएल / एल) से नीचे विटामिन डी के स्तर का स्तर
  • 75 नैनोमोल्स प्रति लीटर (एनएमएल / एल) से नीचे विटामिन डी के स्तर का स्तर (इससे हड्डी के अतिरिक्त अन्य रोगों का खतरा बढ़ जाता है)

शोधकर्ताओं के अनुसार यदि 50 नैनोमोल्स प्रति लीटर (एनएमएल / एल) के आधार पर देखें तो अफ्रीका में लगभग 34 फीसदी आबादी में विटामिन डी की कमी है| इसका तात्पर्य है कि अफ्रीका में तीन में से कम से कम एक व्यक्ति विटामिन डी की कमी से ग्रस्त है| और उनमें हड्डी से संबंधित बीमारियों का खतरा हो सकता है। वहीं यदि 30 नैनोमोल्स प्रति लीटर (एनएमएल / एल) की दर से देखें तो करीब 18 फीसदी आबादी में इसकी कमी है| जबकि यदि 75 नैनोमोल्स प्रति लीटर की दर से देखें तो लगभग 67 फीसदी आबादी में विटामिन डी की कमी है जो कि हर तीन में से 2 लोगों में विटामिन डी की कमी को दिखाती है| जिसकी वजह से इन्हे गैर संक्रामक बीमारियों का खतरा सबसे ज्यादा है|

इस शोध के अनुसार बच्चों, महिलाओं, और शहरी इलाकों में रहने वाले लोगों में विटामिन डी की कमी का जोखिम सबसे ज्यादा था| यदि भौगोलिक रूप से देखें तो उत्तर और दक्षिण अफ्रीका में इसका सबसे ज्यादा खतरा है| जबकि भूमध्य रेखा के करीब के देशों में विटामिन डी की कमी की समस्या कम थी। इसके साथ ही इस अध्ययन से अलग किये गए विश्लेषणों से यह बात सामने आई है कि रिकेट्स, तपेदिक, मधुमेह, अस्थमा और मलेरिया जैसे रोगों से ग्रस्त लोगों में विटामिन डी की कमी का होना आम बात है|

इस शोध से पता चला है कि अफ्रीका में विटामिन डी की कमी सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुडी समस्या हो सकती है| क्योंकि यहां पर आमतौर पर होने वाली कई बीमारियां, विटामिन डी की कमी से जुडी हैं। जिसको देखते हुए अफ्रीका में विटामिन डी की कमी को पूरा करने पर ध्यान देना चाहिए| सरकारों को चाहिए कि वो अपने सार्वजनिक स्वास्थ्य और प्राथमिक देखभाल सम्बन्धी कार्यक्रमों में विटामिन डी को भी शामिल करें| जिससे इसकी कमी का पता लगाने रोकने और उसको पूरा करने की रणनीतियां बनायीं जा सकें| विशेषकर उन देशों में जहां इसका जोखिम ज्यादा है, इस पर ज्यादा ध्यान देने की जरुरत है| इसके लिए राष्ट्रीय नीतियों में बदलाव और पोषण सम्बन्धी दिशानिर्देश जारी करने की जरुरत है| पर्याप्त धूप और विटामिन डी से भरपूर आहार की मदद से इसकी कमी को पूरा किया जा सकता है|