स्वास्थ्य

63 प्रतिशत भारतीय महिलाओं की कैंसर से होने वाली मौतें रोकी जा सकती थीं: लैंसेट

Dayanidhi

लैंसेट द्वारा प्रकाशित एक नए अध्ययन से पता चला है कि भारत में महिलाओं में कैंसर से संबंधित 63 फीसदी मौतों को रोका जा सकता था। अध्ययन में यह भी कहा गया है कि उचित और समय पर उपचार के साथ-साथ जांच को बढ़ाकर इन मौतों के खतरों को 37 फीसदी तक कम किया जा सकता है।

अध्ययन में कहा गया है कि, लैंसेट ने एक आयोग का गठन किया है जिसमें लिंग अध्ययन, मानवाधिकार, कानून, अर्थशास्त्र, सामाजिक विज्ञान, कैंसर महामारी विज्ञान, रोकथाम और उपचार के साथ-साथ रोगी अधिवक्ताओं के विशेषज्ञ शामिल थे। यह आयोग महिला, सत्ता और कैंसर के गठजोड़ की जांच के लिए बनाया गया था।

कैंसर दुनिया के लगभग सभी देशों की महिलाओं में समय से पहले मृत्यु के शीर्ष तीन कारणों में से एक है। दुनिया भर में महिलाओं का स्वास्थ्य प्रजनन और मातृ स्वास्थ्य पर आधारित है, जो एक पितृसत्तात्मक संरचना है जो कि इसके साथ जुड़ा हुआ है।

अध्ययन के मुताबिक, समाज में महिलाओं की अहमियत और भूमिकाओं की संकीर्ण नारीवाद-विरोधी परिभाषाएं, विशेष रूप से, महिलाओं में पुरुषों के समान ही कैंसर का बोझ है, जो दुनिया भर में 48 फीसदी नए मामलों और 44 फीसदी मौतों जिम्मेवार है। अध्ययन में कहा गया है कि, इन आंकड़ों पर प्रकाश डालने से इस समस्या से निपटने के लिए कार्रवाई करने में मदद मिलेगी। 

हर साल कैंसर से समय से पहले मरने वाली 23 लाख महिलाओं में से, प्राथमिक रोकथाम या शीघ्र पता लगाने की रणनीतियों के माध्यम से 15 लाख असामयिक मौतों को रोका जा सकता है। जबकि यदि हर जगह सभी महिलाएं कैंसर से मरती हैं तो 8,00,000 से अधिक मौतों को रोका जा सकता है। यह तभी संभव है जब अधिकांश की कैंसर देखभाल तक आसान पहुंच हो।

अध्ययन में यह भी कहा गया है कि कैंसर के इलाज के लिए नारीवादी दृष्टिकोण हर साल दुनिया भर में लगभग 8,00,000 महिलाओं की जान बचाने में मदद कर सकता है। अध्ययन के हवाले से अध्ययनकर्ता बताते हैं कि कैंसर की जांच और देखभाल में लैंगिक असमानता कैंसर से होने वाली मौतों का एक प्रमुख कारण है।

अध्ययनकर्ता ने बताया कि, महिलाओं के कैंसर के अनुभवों पर पितृसत्तात्मक समाज के प्रभाव की काफी हद तक जानकारी नहीं है। विश्व स्तर पर, महिलाओं का स्वास्थ्य अक्सर प्रजनन और मातृ स्वास्थ्य पर केंद्रित होता है, जो समाज में महिलाओं के महत्व और भूमिकाओं की संकीर्ण नारीवाद-विरोधी परिभाषाओं के अनुरूप होता है, जबकि कैंसर को पूरी तरह से कमतर आंका जाता है।

उन्होंने कहा, हमारा आयोग इस बात पर प्रकाश डालता है कि लैंगिक असमानताएं महिलाओं के कैंसर के अनुभवों को प्रभावित करती हैं। इससे निपटने के लिए, कैंसर को महिलाओं के स्वास्थ्य में एक प्राथमिकता वाले मुद्दे के रूप में देखा जाना चाहिए और कैंसर के प्रति नारीवादी दृष्टिकोण को तत्काल लागू किया जाना चाहिए।

अध्ययन में यह भी कहा गया है कि, 2020 में सभी आयु वर्ग की महिलाओं में तंबाकू, शराब, मोटापा और संक्रमण के कारण लगभग 13 लाख मौतें हुई, यह स्वीकार करते हुए कि इन खतरों के पीछे के कारण महिलाओं में कैंसर के बोझ की कम पहचान की गई थी।