स्वास्थ्य

क्या ऐसे टीबी मुक्त होगा भारत, मध्य प्रदेश में 60 हजार मरीजों को नहीं मिल रही दवा

एक ओर मध्य प्रदेश सरकार राज्य को टीबी मुक्त करने का दावा कर रही है, दूसरी ओर मरीजों को दवा तक नहीं मिल रही है

Anup Dutta

देश को 2025 तक टीबी मुक्त बनाने में मध्यप्रदेश की अग्रणी भूमिका पर संकट के बादल मंडराने नजर आने लगे है। इसे महज इत्तेफाक है कि विश्व क्षयरोग दिवस के लगभग एक महीने बाद ही प्रदेश के लगभग 95 प्रतिशत सरकारी अस्पतालों द्वारा दी जाने वाली टीबी की दवाएं नहीं है। इसके चलते लगभग 60 हजार से अधिक मरीजों को दवाएं नहीं मिल रही हैं।

डाक्टरों का कहना है कि दवाइयों का क्रम टूटने से मरीजों की बीमारी बढ़ सकती है, वहीं टीबी की बीमारी और फैलने का खतरा बढ़ गया है।  

इसे महज एक इत्तिफाक ही समझा जाए कि दवाओं का आकाल सरकार द्वारा लगभग दो महीने पहले किये दावे के बाद उभर कर आया है. इस वर्ष फरवरी में मध्य प्रदेश सरकार ने प्रदेश को टी बी मुक्त बनाने को लेकर कई बड़े- बड़े दावे किये।

राजधानी के टीबी अस्पताल से वयस्क बीसीजी टीकाकरण अभियान का शुभारंभ करते हुए लोक स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा राज्य मंत्री नरेंद्र शिवाजी पटेल का कहना था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश को 2025 तक टीबी मुक्त बनाने में मध्यप्रदेश अग्रणी भूमिका निभाएगा। 

सरकार का तो यहां तक कहना है कि शासन द्वारा टीबी मरीजों की पहचान के साथ-साथ उन्हें निःशुल्क दवाओं का वितरण और पोषण आहार की व्यवस्था तक की जा रही है। अब तक 40 लाख व्यक्तियों का टीकाकरण हेतु पंजीयन भी किया जा चुका है। इतना ही नहीं, टीबी रोगी रहे लोगों के नजदीकी संपर्क में जो धूम्रपान करते हैं, डायबिटीज के मरीज और 60 वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्तियों की भी पहचान कर पंजीयन किया गया है।

लेकिन पिछले 45 दिनों से भी कम समय में मध्य प्रदेश का टीबी मुक्त बनाने के दावे पर धूल की परत जमने लगी है। दरअसल, मध्य प्रदेश में 60 हजार टीबी मरीजों के लिए दवाएं खत्म हो गई हैं। यही नहीं, प्रदेश के 95 प्रतिशत सरकारी अस्पतालों में टीबी की दवाएं ना होने के कारण मरीजों के सामने एक बड़ी समस्या खड़ी हो गई है।

भोपाल के डॉट्स सेंटर इंचार्ज डॉक्टर विश्वास गुप्ता मीडिया से बातचीत में कहते है कि सेंटर में मरीज आ तो रहे हैं पर दवाई का स्टॉक में ना होने के चलते सेंटर उन्हें दवा नहीं दे पा रहा है. वो कहते है इस परिस्थिति से उभरने के लिए निजी कंपनियों से दवा भी मंगाई जा रही है.

वही, एक अन्य सरकारी डॉक्टर का कहना है कि बिना दवाई के टीबी संक्रमण के फैलने का खतरा और भी बढ़ जाता है. यही नहीं, अगर टीबी संक्रमित मरीज समय से दवाई नहीं ले पाता है तो इसका प्रतिकूल असर उसके स्वास्थ्य में पड़ता ही है. उसका शरीर टीबी संक्रमण से लड़ने में कमजोर होने लगता है, जिस कारण उसकी हालत भी बिगड़ सकती है।

टीबी मुक्त बनाने के लिए राज्य सरकार ने प्रदेश में 1.90 लाख टीबी मरीज खोजने का लक्ष्य रखा है. पर बताया जा रहा है कि अब तक स्वास्थ्य विभाग 20 प्रतिशत टीबी मरीजों को ही चिह्नित कर पाया है।

राज्य के 26 जिलों में 18 वर्ष की उम्र से अधिक के चिन्हित लोगों को टीबी से बचाव के लिए सात मार्च से एडल्ट टीबी वैक्सीनेशन अभियान भी शुरू किया गया है। इसमें भोपाल,आगर मालवा,अशोक नगर, बड़वानी, भिंड, हरदा, होशंगाबाद, जगलपुर,कटनी, मंडला, मुरैना, नरसिंहपुर, पन्ना,रायसेन, रतलाम, सतना, सीहोर, शहडोल, श्योपुर, सिंगरौली, टीकमगढ़ और उमरिया शामिल है. अभियान के तहत टीकाकरण किया जा रहा है।

मिशन संचालक एनएचएम प्रियंका दास ने बताया कि आईसीएमआर की गाइडलाइन के अनुसार टीबी को जड़ से खत्म करने के लिए राज्य में वयस्क बीसीजी टीकाकरण अभियान चलाया जा रहा है। 

आपको बताते चलें कि आकड़ो के हिसाब से देश में टीबी के सर्वाधिक रोगियों की संख्या में मध्य प्रदेश तीसरा स्थान रखता है। दुनियाभर के कुल टीबी मरीजों के एक चौथाई भारत में है और उत्तर प्रदेश में देश में सर्वाधिक 20 प्रतिशत रोगी है।

गैस पीड़ितों की मुसीबत बढ़ी

इस बीच टीबी से जूझ रहे भोपाल गैस पीड़ित मरीजों को दोहरी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। उनका कहना है कि टीबी संक्रमित गैस पीड़ितों मरीजों की ज्यादा देखभाल की जाना चाहिए क्योंकि वो पहले ही कई अन्य बीमारियों से जूझ रहे होते हैं।

टीला जमालपुरा भोपाल के रहवासी गैस पीड़ित शफीक उल्लाह बताते हैं- "जब मुझे ये बताया गया कि अब मुझे किडनी फेल के साथ-साथ टीबी जैसे जानलेवा बीमारी से भी जूझना पड़ेगा तो कई दिनों तक मैं अपने बच्चे और परिवार से छिपा कर अपने दुखों का घूट पीता रहा। चूंकि दोनों किडनी खराब होने के चलते मुझे सप्ताह में तीन दिन डायलिसिस करवाना पड़ता है, ऊपर से अब टीबी का इलाज शुरू हो गया।"

वह आगे कहते हैं कि जब हम जैसे गैस पीड़ितों के लिए खोले गए भोपाल स्मारक अस्पताल एवं अनुसंधान केंद्र (बीएमएचआरसी) सारी दवाइयां मुहैया करा पाने में असमर्थ है तो भला वो मुझे टीबी से लड़ने वाली दवाइयां कहां से दे पाता। परिवार के निर्णय के बाद हमने प्राइवेट अस्पताल में दिखाया। मेरे टीबी के इलाज कि दवाइयां प्राइवेट दुकान से लाई जा रही है।

आपको बता दें कि लगभग 18 -19 दिन पहले भोपाल स्मारक अस्पताल एवं अनुसंधान केंद्र (बीएमएचआरसी) ने राज्य सरकार के सहयोग से टीबी से जूझ रहे गैस पीड़ित मरीजों की पहचान और उनके इलाज के लिए मदद करने और केंद्र सरकार की निक्षय मित्र योजना के तहत मरीजों को पोषण आहार भी उपलब्ध कराने की बात कही है।

गैस पीड़ित मरीजों के बीच काम कर रही संसथान भोपाल गैस पीड़ित संघर्ष के सह-संयोजक एनडी जयप्रकाश का कहना है कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना की है। क्योंकि अब तक गैस पीड़ितों के हेल्थ कार्ड तक नहीं बने हैं।

अस्पतालों में आवश्यकता अनुसार उपकरण व दवाएं उपलब्ध नहीं हैं। बीएमएचआरसी के भर्ती नियम तय नहीं होने से डॉक्टर व पैरामेडिकल स्टाफ स्थाई तौर पर सेवाएं प्रदान नहीं कर रहे हैं। इस कारण पीड़ितों को उपचार के लिए भटकना पड़ रहा है।

फिलहाल जहा एक ओर 2025 तक टीबी मुक्त बनाने में मध्यप्रदेश कि अग्रणी भूमिका पर कई सवाल आक्रामक होते जा रहे है वही लबोलुआब तो यही है कि इस चक्रव्यूह में आखिर पिसना तो टीबी मरीज और गैस पीड़ित टीबी संक्रमित मरीज को ही है।