स्वास्थ्य

चमकी प्रभावित इलाकों में अभी भी स्वास्थ्य कर्मियों के 60 फीसदी पद खाली

Pushya Mitra
बिहार में हर साल गर्मियों में होने वाले चमकी बुखार का सीजन अब बमुश्किल डेढ़ महीना ही दूर रह गया है, मगर पिछले साल 180 से अधिक बच्चों की मौत के बावजूद इस साल भी इस बुखार से निबटने की बिहार सरकार की तैयारी बहुत पुख्ता नजर नहीं आ रही। मुजफ्फरपुर जिले के जिन पांच प्रखंडों में इस बुखार का सबसे अधिक प्रकोप रहता है, वहां के सरकारी अस्पताल अभी भी चिकित्सकों और नर्सों की भारी कमी का सामना कर रहे हैं। इन प्रखंडों के 29 अस्पतालों में स्वास्थ्य कर्मियों के 60 फीसदी पद रिक्त हैं।
 
पिछले हफ्ते जारी एक रिपोर्ट में बताया गया कि चमकी बुखार से सर्वाधिक प्रभावित मुजफ्फरपुर जिले के 5 प्रखंड कांटी, मुशहरी, मीनापुर, मोतीपुर और बोचहां में 5 प्राथमिक और 24 अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र सरकार द्वारा संचालित हो रहे हैं। इनमें स्वास्थ्य कर्मियों के कुल 778 पद स्वीकृत हैं, हालिया जानकारी के मुताबिक इनमें से अभी सिर्फ 318 पदों पर लोग कार्यरत हैं। इस तरह इन अस्पतालों के 59.13 फीसदी पद रिक्त हैं।
 
चमकी बुखार निगरानी अभियान चलाने वाली इस संस्था के मुताबिक इस क्षेत्र में डॉक्टरों के 69.32 फीसदी पद रिक्त हैं। 88 पदों के एवज में सिर्फ 27 एलोपैथी चिकित्सक सेवा दे रहे हैं। ए ग्रेड नर्सों के सभी 114 पद रिक्त हैं। एएनएम के 444 पदों के स्थान पर सिर्फ 257 कार्यरत हैं। 19 अस्पतालों में कोई लैब टेक्नीशियन नहीं है। मीनापुर के सभी 7 अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र बिना एलोपैथी चिकित्सक के संचालित हो रहे हैं। 
 
इस रिपोर्ट को तैयार करने वाले संस्था के शोधार्थी संजीत भारती ने बताया कि पिछले साल इन पांच प्रखंडों में 278 बच्चे चमकी बुखार से बीमार हुए थे, जिनमें से 58 की मौत हो गयी थी। उस वक्त बिहार सरकार ने जुलाई माह में सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल किया था कि हमारे अस्पतालों में डॉक्टरों के 57 फीसदी और नर्सों के 71 फीसदी पद रिक्त हैं। तब सुप्रीम कोर्ट ने सरकार पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा था कि रिक्त पदों को भरना हमारा काम नहीं है। इसके बावजूद पिछले आठ महीने में इन अस्पतालों में मैन पावर को लेकर स्थिति बिगड़ी ही है।
 
हालांकि इस साल बिहार सरकार ने चमकी बुखार को लेकर बड़े पैमाने पर अभियान चलाने की बात कही है। पिछले साल इस बुखार से पीड़ित इन पांच प्रखंडों के सभी परिवारों को इंदिरा आवास देने का फैसला भी किया है। जेई के टीके भी लगाए जा रहे हैं। मगर बीमारी के रोकथाम को लेकर जमीनी प्रयास बहुत प्रभावी नजर नहीं आ रहे।