भारत की कुल आबादी का आधे से ज्यादा हिस्सा (55.6 प्रतिशत) स्वस्थ आहार का खर्च उठाने में असमर्थ है।
यह तथ्य 24 जुलाई, 2024 को प्रकाशित संयुक्त राष्ट्र की स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड (एसओएफआई) रिपोर्ट में बताया गया है। हालांकि रिपोर्ट के मुताबिक 2020 यानी जब कोविड-19 महामारी फैली थी उस वर्ष को छोड़ दिया जाए तो इस अनुपात में लगातार गिरावट देखी गई है।
वहीं, यह स्थिति अभी भी सभी दक्षिण एशियाई देशों के औसत (53.1 प्रतिशत) से ज्यादा है और 2022 में पाकिस्तान (58.7 प्रतिशत) के बाद इस क्षेत्र में आबादी का दूसरा सबसे बड़ा प्रतिशत है। इस रिपोर्ट में अफगानिस्तान के आंकड़े उपलब्ध नहीं थे।
रिपोर्ट के मुताबिक 2017 में भारत में स्वस्थ आहार का खर्च उठाने में असमर्थ आबादी का अनुपात 69.5 प्रतिशत था।
संयुक्त राष्ट्र की पांच एजेंसियों द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में ‘स्वस्थ आहार’ को चार प्रमुख पहलुओं के आधार पर बताया गया है। इनमें शामिल हैं : विविधता (खाद्य समूहों के भीतर और सभी में), पर्याप्तता (आवश्यकताओं की तुलना में सभी आवश्यक पोषक तत्वों की पर्याप्तता), संयम (खाद्य पदार्थ और पोषक तत्व जो खराब स्वास्थ्य परिणामों से संबंधित हैं) और संतुलन (ऊर्जा और मैक्रोन्यूट्रिएंट का सेवन)।
भारतीय संख्याएं भारत में खाद्य सुरक्षा और पोषण पर सार्वजनिक व्यय से मेल खाती हैं - इस व्यय का 83 प्रतिशत खाद्य उपभोग (जिसमें खाद्य उपलब्धता और पहुंच शामिल है) पर है जबकि खाद्य असुरक्षा और कुपोषण के प्रमुख कारकों पर केवल 15 प्रतिशत आवंटित किया जाता है।
इस साल मई में एक अन्य वैश्विक रिपोर्ट ने भारत में आहार संबंधी आदतों के बारे में चिंता जताई थी, जिसमें पौष्टिक विकल्पों की तुलना में अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों की खपत में उल्लेखनीय वृद्धि पर प्रकाश डाला गया था।
ग्लोबल फूड पॉलिसी रिपोर्ट 2024: फूड सिस्टम्स फॉर हेल्दी डाइट्स एंड न्यूट्रिशन रिपोर्ट के मुताबिक कम से कम 38 प्रतिशत भारतीय आबादी अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थ खाती है, जबकि केवल 28 प्रतिशत लोग सभी पांच बताए गए खाद्य समूह का उपभोग करते हैं, कम से कम एक स्टार्चयुक्त मुख्य भोजन, एक सब्जी, एक फल, एक दाल, अखरोट या बीज और एक पशु-स्रोत भोजन शामिल है।
वैश्विक स्तर पर 35.4 प्रतिशत लोग स्वस्थ आहार का खर्च उठाने में असमर्थ थे; इनमें से 64.8 प्रतिशत अफ्रीका में और 35.1 प्रतिशत एशिया में थे।
कुपोषित भारतीय
भारत में 2021 और 2023 के बीच 19.46 करोड़ कुपोषित लोग थे। यह कुल आबादी का 13.7 प्रतिशत था।
खाद्य और कृषि संगठन या एफएओ की परिभाषा के अनुसार, 'कुपोषण' का अर्थ है कि कोई व्यक्ति एक वर्ष की अवधि में दैनिक न्यूनतम आहार ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त भोजन प्राप्त करने में सक्षम नहीं है।
‘वेस्टिंग’ यानी बौनेपन से प्रभावित बच्चों (पांच वर्ष से कम) की संख्या 2.19 करोड़ (18.7 प्रतिशत) थी; और 2022 में 3.61 करोड़ (31.7 प्रतिशत) बच्चे बौने थे।
एफएओ वेस्टिंग को ‘ऊंचाई के हिसाब से कम वजन’ के रूप में वर्णित करता है, जो कुपोषण का एक घातक रूप है, जबकि स्टंटिंग को ‘उम्र के हिसाब से कम ऊंचाई’ के रूप में वर्णित किया जाता है और यह क्रोनिक या बार-बार होने वाले कुपोषण का परिणाम है।
कुल मिलाकर, एशिया में पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में वेस्टिंग का स्तर सबसे अधिक था।