स्वास्थ्य

भारत में समय पर इलाज न मिल पाने के कारण हृदयाघात और स्ट्रोक से गई 55 फीसदी जानें: लैंसेट

उत्तर भारत के कुछ जिलों में किए गए अध्ययन के मुताबिक असमय मौतों के लिए जागरूकता का अभाव भी जिम्मेवार है

Lalit Maurya

क्या आप जानते हैं कि हार्ट अटैक और स्ट्रोक से होने वाली 55 फीसदी मौतों के लिए चिकित्सा सहायता के मिलने में देरी जिम्मेवार है। लैंसेट में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक हृदयाघात और स्ट्रोक जैसी आपात स्थिति में बहुत कम मरीज ही समय पर स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच पाते हैं।

रिसर्च के अनुसार अधिकांश मरीजों की मौतें घर पर हुईं थी, क्योंकि ज्यादातर मरीजों को समय पर स्वास्थ्य सुविधा नहीं मिल पाई थी, जबकि इसके विपरीत बहुत कम मौतें स्वास्थ्य केंद्रों में हुईं थी। यह जानकारी अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के सेंटर फॉर कम्युनिटी मेडिसिन के विशेषज्ञों द्वारा किए अध्ययन में सामने आई है। इस अध्ययन के नतीजे अंतरराष्ट्रीय जर्नल लैंसेट में प्रकाशित हुए हैं।

यह अध्ययन उत्तर भारत के कुछ जिलों पर किया गया है। अध्ययन के मुताबिक इन बीमारियों के कारण होने वाली असमय मौतों के लिए कहीं न कहीं इनके बारे में जागरूकता का आभाव जिम्मेवार है।

यह अध्ययन 2020 में 21 लाख की आबादी वाले फरीदाबाद की तीन में से दो तहसीलों बड़खल और बल्लभगढ़ में किया गया था। अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने एक जुलाई, 2019 और 30 जून 2020 के बीच वहां पंजीकृत कुल 7,164 मौतों की पहचान की थी। इनमें से 4,089 यानी 57 फीसदी की उम्र 30 से 69 वर्ष के बीच थी।

इनमें से चयनित 3,415 में से 519 के पते गलत थे और 382 से कोविड-19 के कारण जानकारी प्राप्त नहीं की जा सकी थी। पता चला कि 2,466 में से 761 (30.8 फीसदी) की मौत हृदय या रक्तवाहिकाओं संबंधी बीमारियों के कारण हुई थी। इनमें से 435 मृतकों का सोशल ऑडिट किया गया था।

इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने उन मरीजों का सोशल आडिट किया है, जिनकी उम्र 30 से 69 वर्ष के बीच थी और जिन मरीजों की मृत्यु हार्ट अटैक या स्ट्रोक के कारण हुई थी। इन मौतों और उपचार में देरी के सम्बन्ध को समझने के लिए विशेषज्ञों ने मॉडल का उपयोग किया है, जिसमें उपचार में देरी को तीन हिस्सों में बांटकर देखा गया है। साथ ही इसमें स्वास्थ्य सुविधा की तलाश का निर्णय, उचित स्वास्थ्य सुविधा (एएचएफ) तक पहुंचना, निश्चित उपचार की शुरआत जैसी बातों को भी ध्यान में रखा है।

इसमें लक्षण शुरू होने से लेकर एएचएफ तक पहुंचने में लगने वाले अनुमानित समय के आधार पर मरीजों को तीन वर्गों में विभाजित किया है। इनमें पहले वो हैं जो एक घंटे के भीतर इन स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच गए थे, जबकि आखिर में वो हैं जो सबसे देर से पहुंचे थे।

सही समय पर स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंच पाए थे केवल 10.8 फीसदी मरीज

इस रिसर्च के जो नतीजे सामने आए हैं उनके मुताबिक इनमें से करीब आधे मृतक अपनी इन लाइलाज बीमारियों के दौरान किसी भी स्वास्थ्य केंद्र में नहीं गए थे। वहीं गंभीर हृदयाघात और स्ट्रोक के लक्षणों के शुरू होने के पहले एक घंटे के भीतर केवल दस में से एक या यह कहें कि केवल 10.8 फीसदी मरीज ही उपयुक्त स्वास्थ्य सुविधा (एएचएफ) तक पहुंच पाए थे।

इतना ही नहीं अध्ययन से पता चला है कि जो लोग किसी अस्पताल या स्वास्थ्य सुविद्या के पास रहते हैं या जो अमीर परिवार से हैं उनके आपात स्थिति के पहले घंटे में सही स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचने की सम्भावना अधिक है।

अध्ययन के मुताबिक 38.4 फीसदी मामलों में लेवल-I की देरी दर्ज की गई थी। इसके 60 फीसदी के लिए मामले की गंभीरता का न पहचाना जाना जिम्मेवार था। वहीं 20 फीसदी मामलों में लेवल- II  की देरी देखी गई, जिसके 40 फीसदी के लिए सही स्वास्थ्य सुविधा तक न पहुंच पाना वजह था।

वहीं 10.8 फीसदी मामलों में लेवल-III की देरी देखी गई, जिसके लिए कहीं न कहीं इसका मरीजों के सामर्थ्य से बाहर होना जिम्मेवार था। इसी तरह गरीबी और स्वास्थ्य केंद्रों से दूरी जैस कारक भी इन मौतों के लिए जिम्मेवार थे।

इतना ही नहीं केवल 4.1 फीसदी मामलों में ही मरीजों को अस्पताल ले जाने के लिए एम्बुलेंस का इस्तेमाल हुआ था, जबकि 32 फीसदी मामलों में मरीजों को अस्पताल ले जाने के लिए वाहनों को किराए पर लिया गया था। वहीं 26 फीसदी ने अपने वाहन का उपयोग किया था, जबकि 37.9 फीसदी ने जाने के लिए किसी साधन का उपयोग नहीं किया था।

67 फीसदी मौतें अस्पताल से बाहर हुई थी जबकि 21 फीसदी मरीजों की जान रास्ते में ही चली गई थी। वहीं 33 फीसदी ने अस्पताल में दम तोड़ा था।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक दुनिया भर में हर साल होने वाली 1.79 करोड़ मौतों के लिए कार्डियोवैस्कुलर डिजीज जिम्मेवार थी। इनमें से 85 फीसदी मौतें हार्ट डिजीज और स्ट्रोक के कारण हुई थी। यदि भारत से जुड़े आंकड़ों को देखें तो देश में 36 फीसदी मौतों के पीछे की वजह यह कार्डियोवैस्कुलर डिजीज ही हैं। ऐसे में इनकी रोकथाम भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए प्राथमिकता होनी चाहिए।

देखा जाए तो हार्ट अटैक या ह्रदय सम्बन्धी अन्य आपात स्थितियों में समय पर देखभाल बहुत मायने रखती है। ज्यादातर मामलों में इनके समय पर न मिल पाने के कारण मरीज की मृत्यु हो जाती है। रिसर्च में भी इस बात की पुष्टि हुई है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक यदि मायोकार्डियल इन्फ्रक्शन (एमआई) यानी हार्ट अटैक के मामले में यदि समय पर इलाज मिल जाए तो इसकी वजह से मृत्यु के जोखिम को 30 फीसदी तक कम किया जा सकता है। एक अध्ययन के मुताबिक यदि हृदयाघात के शिकार मरीजों को इलाज मिलने में 30 मिनटों की देरी होती है तो एक वर्ष के भीतर उनकी मृत्युदर की आशंका 7.5 फीसदी बढ़ जाती है।