कोविड-19 वैक्सीन को लेकर ग्रामीण इलाकों में खासा उत्साह है। ग्रामीण इसके लिए भुगतान करने को भी तैयार हैं, लेकिन वैक्सीन के दो शॉट के लिए 1,000 रुपए से अधिक पैसा देने वालों की संख्या काफी कम है। ग्रामीण मीडिया प्लेटफार्म गांव कनेक्शन द्वारा किए गए सर्वे के मुताबिक, सर्वे में शामिल ग्रामीणों में से लगभग आठ फीसदी लोग ऐसे हैं, जो वैक्सीन के लिए 1,000 से 2,000 रुपए का भुगतान करने को तैयार हैं, जबकि दो तिहाई ग्रामीणों ने कहा कि वे 500 रुपए से अधिक नहीं दे सकते।
गांव कनेक्शन की सर्वे रिपोर्ट "कोविड-19 वैक्सीन एंड रूरल इंडिया" आज जारी की गई। गांव कनेक्शन ने 16 राज्यों और एक केंद्र शासित क्षेत्र के 6040 परिवारों से बातचीत की। इनमें से 36 फीसदी परिवारों ने कहा कि वे वैक्सीन के लिए भुगतान नहीं कर पाएंगे, जबकि 20 फीसदी परिवारों ने इस पर कोई राय नहं दी। हालांकि 44 फीसदी परिवारों ने कहा कि वे भुगतान करने के लिए तैयार हैं। लेकिन इनमें से दो तिहाई परिवारों ने 500 रुपए से अधिक भुगतान करने में असमर्थता जताई। इनमें से एक चौथाई ग्रामीणों ने कहा कि वे दो बार वैक्सीन लेने के लिए 500 से 1,000 रुपए का भुगतान कर सकते हैं। सर्वेक्षण में शामिल ग्रामीणों में से 50 फीसदी ने कहा कि वे किसी विदेशी कंपनी की बजाय भारतीय कंपनी द्वारा तैयार वैक्सीन को अपनाएंगे।
सर्वेक्षण में शामिल परिवारों में से 15 फीसदी ने माना कि उनके परिवार का कोई न कोई सदस्य या नजदीकी व्यक्ति कोविड-19 से पीड़ित हो चुका है। दक्षिण भारत के ग्रामीण इलाकों में कोविड-19 के केस अधिक पाए गए। इन परिवारों में से लगभग 25 फीसदी का कोविड-19 टेस्ट हो चुका है।
सर्वे रिपोर्ट में बताया गया है कि लगभग 51 फीसदी ग्रामीणों का मानना है कि कोरोना वायरस संकट के पीछे चीन का षड्यंत्र है। जबकि 22 प्रतिशत लोगों ने इस संकट के लिए आम नागरिकों की लापरवाही और असावधानी को जिम्मेदार ठहराया है, लेकिन 18 फीसदी ग्रामीणों ने कोरोना के प्रसार के लिए सरकार की विफलता को जिम्मेवार माना है।
सर्वे में शामिल ग्रामीणों में से ज्यादातर ने सरकारी अस्पतालों में भरोसा जताया। लगभग दो तिहाई ग्रामीणों ने कहा कि वे अपने इलाज के लिए सरकारी अस्पतालों में जाना पसंद किया, जबकि केवल 11 फीसदी लोगों ने कहा कि वे अपने इलाज के लिए प्राइवेट अस्पतालों मे जाते हैं।
कोरोना वायरस संक्रमण की वजह से ग्रामीणों के खानपान की आदतों मे बदलाव आया है। सर्वे में लगभग 70 फीसदी ग्रामी परिवारों ने कहा कि उन्होंने अब बाहर का खाना बंद कर दिया है। जबकि 33 फीसदी ग्रामीणों ने माना कि उन्होंने अब सब्जियां अधिक खाना शुरू कर दिया है, जबकि 30 फीसदी ने कहा कि वे अब फल खाना पसंद करते हैं। वहीं लगभग 40 फीसदी ग्रामीणों ने कहा कि कुछ समय पहले तक उन्होंने मीट, मछली, अंडा खाना बंद कर दिया था, जबकि नौ फीसदी ने कहा कि उन्होंने मांसाहार खाना पूरी तरह बंद कर दिया है, क्योंकि इससे कोरोनावायरस संक्रमण का खतरा रहता है।
बेशक लॉकडाउन खत्म हो चुका है, लेकिन अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में कई लोगों को पूरा भोजन नहीं मिल पा रहा है। गांव कनेक्शन के इस सर्वे में शामिल गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) रह रहे परिवारों में एक चौथाई ने बताया कि उनके परिवारों को खाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं मिल रहा है। इस सर्वे में 48 फीसदी बीपीएल, 45 फीसदी एपीएल (गरीबी रेखा से ऊपर) और पांच फीसदी अंत्योदन योजना वाले परिवारों को शामिल किया गया था।