भारत में 2019 के दौरान टीबी के 24 लाख से ज्यादा मामले सामने आए हैं। वहीं एक साल में 79,144 लोगों की मौत हुई। यह जानकारी 24 जून को जारी की गई 'इंडिया टीबी रिपोर्ट 2020' में सामने आई है। यदि 2018 की तुलना में देखें तो 2019 में टीबी के 12 फीसदी ज्यादा मामले सामने आए हैं।
जबकि रिपोर्ट के अनुसार करीब 2 लाख मरीजों के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। साथ ही 1.3 लाख से ज्यादा मरीज ऐसे हैं जो रजिस्ट्रेशन कराने के बाद वापस अस्पताल ही नहीं गए। वहीं, विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी ‘ग्लोबल ट्यूबरक्लोसिस रिपोर्ट 2019’ के अनुसार वैश्विक स्तर पर करीब 1 करोड़ लोग इस बीमारी से ग्रस्त हुए थे, जिनमें से सबसे बड़ी संख्या भारतीयों की थी। इस रिपोर्ट के अनुसार भारत में करीब 27 लाख लोग इस बीमारी से ग्रस्त थे| जोकि दुनिया के कुल टीबी मरीजों के एक-चौथाई से भी ज्यादा है| इनमें से करीब 4 लाख मरीजों की मौत हो गई थी| जबकि ‘इंडिया टीबी रिपोर्ट 2020’ के अनुसार देश में टीबी से मरने वालों का यह आंकड़ा घटकर 79,144 रह गया है| जोकि एक बड़ी उपलब्धि है| यदि 2017 के आंकड़ों को देखें तो उस वर्ष में करीब 10 लाख से ज्यादा मरीजों के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं थी। वहीं 2019 में इनमें भी कमी आई है, और यह आंकड़ें घटकर 2.9 लाख रह गए हैं। गौरतलब है कि टीबी के कुल मरीजों में 1,51,286 बच्चे शामिल हैं।
देश में टीबी के सबसे ज्यादा मामले उत्तरप्रदेश में सामने आये हैं| आंकड़ों के अनुसार उत्तरप्रदेश में देश के करीब 20 फीसदी टीबी मरीज हैं| इसके बाद महाराष्ट्र का नंबर आता है जहां देश के 9 फीसदी टीबी मरीज हैं| इसके बाद 8 फीसद के साथ मध्य प्रदेश और सात-सात फीसदी के साथ राजस्थान और बिहार का नंबर आता है| अकेले इन पांच राज्यों में ही देश के 51 फीसदी टीबी मरीज हैं|
यदि प्रति दस लाख लोगों पर देखा जाए तो टीबी के 1,590 मामले सामने आये हैं| जबकि तुलनात्मक रूप से देखें तो कोरोनावायरस के 343 मामले हैं| यदि आबादी के हिसाब से देखा जाए तो टीबी के सबसे ज्यादा मामले चंडीगढ़ में सामने आये हैं| जहां प्रति 10 लाख पर 6050 मामले दर्ज किये गए हैं| इसके बाद दिल्ली (5740/दस लाख) फिर पुडुचेरी (3130/दस लाख) का नंबर है|
देश में मल्टी-ड्रग रेसिस्टेंट (एमडीआर) और आरआर टीबी के भी 66,359 मामले सामने आये हैं| जिनमें से 56,569 का इलाज किया जा रहा है| जिनमें से 7.6 फीसदी मरीजों की स्थिति में सुधार आया है| इसकी रोकथाम और इलाज के लिए देश भर में 711 ड्रग रेसिस्टेंट टीबी केंद्र बनाए गए हैं| जो जांच के साथ-साथ मरीजों का इलाज भी करते हैं| इसके साथ ही भारत में हर साल करीब 92,000 एचआईवी पॉजिटिव लोगों को टीबी हो जाता है| जोकि कुल टीबी मरीजों का 3.4 फीसदी है| यह एक बड़ी समस्या है क्योंकि एक से ज्यादा बीमारियां में मृत्युदर ज्यादा होती है| क्योंकि मरीज को एक साथ दोहरी और कई बार उससे भी ज्यादा बीमारियों का बोझ ढोना पड़ता है| भारत में इस वजह से हर साल करीब 9,700 लोगों की मृत्यु हो जाती है| यदि वैश्विक स्तर पर देखें तो भारत में विश्व के करीब 9 फीसदी मरीज टीबी और एचआईवी दोनों ही बीमारियों का बोझ झेल रहे हैं| इस मामले में भारत दुनिया में दूसरे स्थान पर है|
भारत में 2025 तक इस बीमारी को जड़ से मिटाने का लक्ष्य रखा है| हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनिया भर से टीबी को खत्म करने के लिए 2030 का लक्ष्य तय किया है। जबकि कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने उससे पहले ही इस बीमारी को खत्म करने का लक्ष्य रखा है| इसमें केरल (2020), हिमाचल प्रदेश (2021), सिक्किम और लक्षद्वीप ने 2022 तक इस बीमारी को मिटाने का लक्ष्य तय किया है| देश में इसकी रोकथाम के लिए कई प्रोग्राम चलाये जा रहे हैं| जिसमें इलाज से लेकर स्वास्थ्य और न्यूट्रिशन के लिए सरकारी मदद देना शामिल है| इसमें रोगियों के लिए निक्षय पोषण योजना (एनपीवाई), उपचार को प्रोत्साहन देना, आदिवासी क्षेत्रों में टीबी रोगियों के इलाज के लिए आने जाने में सहयोग करना, एनपीवाई के तहत सीधे बैंक खाते में धनराशि देना (डीबीटी) जैसी योजनाएं शामिल हैं|
इस वर्ष रोगियों को पोषण से भरपूर आहार देने के लिए करीब 462 करोड़ रुपए दिए गए हैं| जोकि पिछले वर्ष की तुलना में 130 फीसदी ज्यादा है| 2014-15 में टीबी उन्मूलन के लिए जहां 710.15 करोड़ रुपए का बजट रखा गया था वो 2019-20 में बढ़कर 3333.21 करोड़ कर दिया गया है| इन सबके बावजूद देश के लिए टीबी मुक्ति के लक्ष्य को हासिल करना नामुमकिन नहीं तो मुश्किल जरूर है| यह तभी संभव हो सकता है जब इस दिशा में सबके द्वारा मिलकर कदम उठाया जाए|