स्वास्थ्य

14 फीसदी वयस्क और 12 फीसदी बच्चे बन चुके हैं अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स की लत के शिकार

कैंडी, आइसक्रीम, फ्राइज, चिप्स, बर्गर, डिब्बा बंद भोजन आदि को अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फ़ूड कहा जाता है

Lalit Maurya

विशेषज्ञों का कहना है कि करीब 14 फीसदी वयस्क और 12 फीसदी बच्चे अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स की लत का शिकार बन चुके हैं। लोगों में स्वास्थ्य के नजरिए से हानिकारक इन खाद्य पदार्थों को लेकर जो लगाव है, वो शराब और तम्बाकू जितना ही बढ़ चुका है।

बता दें कि दुनिया भर में 14 फीसदी लोग शराब के और 18 फीसदी लोग तम्बाकू के आदी बन चुके हैं। ऐसे में 14 फीसदी वयस्कों में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड की दीवानगी बेहद गंभीर खतरे की ओर इशारा करती है।

यह जानकारी अमेरिका, ब्राजील और स्पेन के शोधकर्ताओं द्वारा किए अध्ययन में सामने आई है, जिसके नतीजे नौ अक्टूबर 2023 को द ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित हुए हैं। यह अध्ययन 36 देशों में प्रकाशित 281 अध्ययनों के विश्लेषण पर आधारित है।

शोधकर्ताओं के अनुसार बेहद ज्यादा कार्बोहाइड्रेट और वसा वाले यह अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फ़ूड जैसे कैंडी, आइसक्रीम, फ्राइज, चिप्स, बर्गर, डिब्बा बंद भोजन जैसे खाद्य उत्पाद किसी नशीले पदार्थ से कम नहीं, जो धीरे-धीरे लोगों को अपना आदी बना रहे हैं। एक बार यदि कोई बच्चा या व्यक्ति इनका आदी हो जाता है, तो इसकी लत से बचना मुश्किल हो जाता है।

शोध के मुताबिक किसी चीज की लत को लेकर वैज्ञानिक ज्ञान में हाल के वर्षों में काफी वृद्धि हुई है। हालांकि इसके बावजूद यह मुख्य रूप से धूम्रपान और शराब पीने की आदतों पर केंद्रित है। लेकिन वैश्विक स्तर पर, अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों से संबंधित लत की अवधारणा भी दुनिया में तेजी से बढ़ रही है जो स्वस्थ जीवन के नजरिए से बेहद महत्वर्पूण है।

बता दें कि जब प्राकृतिक तरीके से प्राप्त खाद्य उत्पादों को कई लेवल पर प्रोसेस किया जाता है, जिससे वो कई दिनों तक खाने योग्य बने रहे या फिर जब डीप फ्राई करके उनकी कुदरती संरचना को बदल दिया जाता है तो वो खाद्य उत्पाद स्वास्थ्य के लिए अच्छे नहीं रहते, इन्हीं को अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स कहते हैं। इनमें सॉफ्ट ड्रिंक्स, चिप्स, टॉफी, चॉकलेट, लॉली पॉप, आइसक्रीम, शर्करा युक्त अनाज, प्रसंस्कृत मांस, जंक फ़ूड और फास्ट फूड शामिल हैं।

एशले गियरहार्ट और उनके साथियों का तर्क है कि अत्यधिक कार्बोहाइड्रेट और वसा वाले इन अल्ट्रा प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों को नशीले पदार्थ के रूप में समझना स्वास्थ्य सुधार के प्रयासों में योगदान कर सकता है।

इस बारे में अध्ययन से जुड़ी एकअन्य शोधकर्ता और वर्जीनिया टेक में सहायक प्रोफेसर एलेक्जेंड्रा डिफेलिसेंटोनियो का कहना है कि, हालांकि लोग धूम्रपान, शराब या जुआ खेलना छोड़ सकते हैं, लेकिन वे खाना नहीं छोड़ सकते।" उनके मुताबिक चुनौती यह परिभाषित करना है कि किन खाद्य पदार्थों में लत लगने की सबसे अधिक संभावना होती है और ऐसा क्यों होता है?

उनका कहना है कि कई खाद्य पदार्थ जिन्हें हम नेचुरल या कम प्रोसेस मानते हैं, वो हमें कार्बोहाइड्रेट या वसा के रूप में ऊर्जा प्रदान करते हैं, लेकिन यह दोनों ही बातें सही नहीं हैं। शोध के अनुसार कार्बोहाइड्रेट और अतिरिक्त वसा से भरपूर अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थ जो बेहद आकर्षक, फायदेमंद और अक्सर अनिवार्य रूप से खाए जाते हैं, उनकी लत लग सकती है।

अनगिनत बीमारियों की जड़ हैं जंक और अल्ट्रा प्रोसेस्ड फ़ूड

हाल के अध्ययनों ने अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों (यूपीएफ) जैसे आइसक्रीम, शर्करा युक्त पेय पदार्थों और पैकेट बंद खाद्य पदार्थों को स्वास्थ्य समस्याओं की वजह माना है, जिनमें बढ़ता वजन, ह्रदय रोग और कैंसर तक शामिल हैं। आज इन उत्पादों की वैश्विक खपत बढ़ रही है, जहां यूके और अमेरिका में यह औसत आहार का आधे से अधिक हिस्सा बन चुके हैं। वहीं भारत जैसे विकासशील देशों में भी इनकी खपत तेजी से बढ़ रही है।

इस शोध से जुड़ी शोधकर्ता एशले गियरहार्ट का कहना है कि, “अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों की लत की पुष्टि करने वाले सबूत पहले से कहीं ज्यादा मजबूत हो रहे हैं।“ उनके मुताबिक कुछ खास प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों में ऐसे गुण होते हैं जो लोगों को उनका आदी बना सकते हैं। वहीं कुछ लोग ऐसा व्यवहार करते हैं जिससे इस बात की पुष्टि की जा सकती है कि वो इसकी लत का शिकार हैं।

इसमें इन खाद्य पदार्थों की तीव्र, लालसा, खाने पर नियंत्रण नहीं, बार-बार खाने की इच्छा, मोटापा, जरूरत से ज्यादा खा लेना, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में कमी और जीवन की गुणवत्ता में गिरावट जैसे लक्षण सामने आने के बावजूद इनका निरंतर उपयोग प्रमुख हैं।

हम क्या खाते हैं वो हमारे स्वास्थ्य के नजरिए से बेहद महत्वपूर्ण होता है। लेकिन जिस तरह से देश-दुनिया में इन बेहद ज्यादा तले खाद्य पदार्थों और जंक फ़ूड का चलन बढ़ रहा है वो लोगों में अनगिनत बीमारियों की वजह बन रहा है। इसपर किए गए अनेकों शोधों में इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि यह खाद्य उत्पाद भले ही स्वाद में कितने ही अच्छे लगे लेकिन यह हमारी सेहत के लिए ठीक नहीं।

हाल ही में  डब्ल्यूएचओ-यूनिसेफ-लांसेट आयोग द्वारा जारी एक रिपोर्ट ने भी माना था कि प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ जंक फ़ूड भी भारतीय बच्चों के जीवन के लिए बड़ा खतरा है। हार्वर्ड टीएच चैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के वैज्ञानिकों द्वारा किए अध्ययन से पता चला है कि जो लोग बहुत ज्यादा तला हुआ भोजन करते हैं उनमें मधुमेह और ह्रदय रोग का खतरा कहीं ज्यादा हो सकता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक हर साल जरूरत से ज्यादा नमक (सोडियम) का सेवन दुनिया में 30 लाख से ज्यादा लोगों की जान ले रहा है। इतना ही नहीं इसकी वजह से रक्तचाप और हृदय रोग का खतरा भी बढ़ रहा है।

इसी तरह ब्रिटिश जर्नल ऑफ ओप्थोमोलॉजी में प्रकाशित एक अध्ययन ने इस बात की पुष्टि की है कि जंक फ़ूड, लाल मांस और अधिक वसायुक्त भोजन बुजुर्गों से उनके आंखों की रौशनी छीन रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार आहार में जंक फूड और पश्चिमी भोजन की अधिकता बुजुर्गों में मैक्यूलर डिजनरेशन नामक विकार को जन्म दे रही है, जोकि उनकी आंखों के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकता है।

जर्नल द प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज (पनास) में प्रकाशित एक रिसर्च के नतीजे दर्शाते हैं कि तला हुए भोजन, विशेष रूप से तले हुए आलू का ज्यादा सेवन चिंता में 12 और अवसाद के जोखिम में सात फीसदी का इजाफा कर सकता है।

सीएसई भी भारत में इसके बढ़ते चलन को लेकर कर चुका है आगाह

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) द्वारा भारत में किए गए अध्ययन में भी इस बात का खुलासा हुआ है कि जंक फूड और पैकेटबंद भोजन हमें जाने-अनजाने बीमारियों के भंवरजाल में धकेल रहा है। अध्ययन के नतीजे दर्शाते हैं कि जंक फूड में मौजूद नमक, वसा, ट्रांस फैट की बेहद ज्यादा मात्रा होती है जो मोटापा, उच्च रक्तचाप, मधुमेह और हृदय की बीमारियों को बढ़ा रहा है।

रिसर्च से पता चला है कि फास्ट फूड में नमक की इतनी ज्यादा मात्रा होती है कि आप दिन पूरा करते-करते तय मानकों से दोगुना नमक खा लेते हैं। देखा जाए तो चटपटा खाने वाले लोगों में आजकल पैकेटबंद फास्ट फूड का चलन तेजी से बढ रहा है, जिसमें जरूरत से ज्यादा नमक होता है। इनमें मौजूद नमक की असंतुलित मात्रा, सेहत का संतुलन बिगाड़ रही है।

सीएसई की लैब रिपोर्ट के मुताबिक लोगों के पसंदीदा जंक फूड में जरूरत से ज्यादा नमक पाया गया है। ऐसे में स्नैक्स या मील के तौर पर खाए जाने वाले पैकेटबंद फास्ट फूड का सेवन लोगों को बहुत ज्यादा बीमार बना सकता है। वहीं बड़ों की तुलना में बच्चों में यह खतरा और भी ज्यादा है।

यदि भारत में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड की बिक्री को देखें तो 2005 में यह दो किलोग्राम प्रति व्यक्ति थी, जो 2019 में बढ़कर छह किलोग्राम तक पहुंच गई। वहीं अनुमान है कि 2024 तक इसकी बिक्री बढ़कर आठ किलोग्राम प्रति व्यक्ति तक जा सकती है।

देखा जाए तो ज्यादा तले भोजन और जंक फूड का सेवन ऐसा ही है जैसे हम बीमारी को दावत देते हुए कह रहे हों की आ बीमारी मुझे मार। भारत जैसे देशों में यह बेहद तला हुआ भोजन बच्चों और बड़ों की पहली पसंद बनता जा रहा है। आज लोग पोषण की जगह स्वाद को तरजीह दे रहे हैं जो उनके शरीर को अंदर ही अंदर दीमक की तरह खा रहा है। देखा जाए तो इसके बढ़ते चलन से एक तरफ जहां फास्ट फूड कंपनियां मुनाफे की फसल काट रही हैं वही बच्चों की सेहत दांव पर है।

ऐसे में यह जरूरी है कि हम न केवल अपने परिवार में बल्कि आसपास भी लोगों को इसके खतरों से अवगत कराएं। ऐसे में यह जरूरी है कि हम न केवल अपने परिवार में बल्कि आसपास भी लोगों को इसके खतरों से अवगत कराएं और इसके जरूरत से ज्यादा सेवन से बचे। देखा जाए तो यह जितना मुश्किल दिखता है उतना है नहीं, बस इसके लिए दृढ इच्छाशक्ति की जरूरत है।

जब इससे जुड़ी नीतियों की बात करें तो गियरहार्ट 103 देशों की ओर इशारा करती हैं, जिन्होंने चीनी युक्त मीठे पेय पदार्थों पर कर लगाए हैं। यहां तक की कई अन्य देशों ने अल्ट्रा-प्रोसेस खाद्य पदार्थों पर भी कर लगाया है। एक विश्लेषण का अनुमान है कि ऐसे कर इन बेहद प्रोसेस किए हुए खाद्य पदार्थों की बिक्री में औसतन 15 फीसदी और इनके सेवन में 18 फीसदी की गिरावट से जुड़े हैं। उनका आगे कहना है कि इन करों से मैक्सिको जैसे देशों में बच्चियों के बीच बॉडी मास इंडेक्स में कमी देखी गई है।

वहीं 20 से अधिक देशों में इन में मौजूद पोषक तत्वों को लेबल पर दर्शाने से जुड़ी नीतियों को अपनाया गया है, जिससे इनकी खरीद में उल्लेखनीय कमी देखी गई है।

गियरहार्ट ने जोर देकर कहा है कि, "विशेष रूप से निम्न और मध्यम आय वाले देशों में, इन अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड की लत को समझना बेहद महत्वपूर्ण है।" उनके मुताबिक ये खाद्य पदार्थ सस्ते होने के साथ, अपनी उपलब्धता, स्वाद, और व्यापक मार्केटिंग के कारण बहुत आकर्षक लगते हैं। ऐसे में लोगों को इनकी लत और मायाजाल से बचाने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत होगी।