स्कूल में दाखिला लेने के बाद किशोरावस्था में आते-आते बड़ी संख्या में लड़कियों का स्कूल जाना बंद हो जाता है। माहवारी इसकी एक बड़ी वजह के रूप में उभरकर आई है। एक नए अध्ययन के मुताबिक, बारह वर्ष की आयु में जब लड़कियों में सीखने की क्षमता अधिक होती है, तभी 13 प्रतिशत लड़कियों का माहवारी के कारण स्कूल जाना बंद हो जाता है। आमतौर पर लड़कियां स्कूल में सुविधाओं की कमी, घर में काम के बोझ और शिक्षा के बाद नौकरी न मिलने के अंदेशे से कारण भी स्कूल जाना बंद करती हैं।
जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय से पीएचडी कर रहीं मधुलिका खन्ना का 15 दिसंबर 2019 को जारी अध्ययन “द प्रिकोशस पीरियड: इम्पैक्ट ऑफ अर्ली मनार्की ऑन स्कूल इन इंडिया “बताता है कि माहवारी अथवा मासिक धर्म के समय विभिन्न सामाजिक कारणों के चलते लड़कियों के स्कूल जाने में कमी आती है। उनका अध्ययन बताता है कि जब किसी लड़की को मासिक धर्म शुरू होता है, तब उसके प्रति परिवार और समुदाय का रवैया पूरी तरह बदल जाता है। कई जगह मासिक धर्म शुरू होने पर उत्सव मनाया जाता है। उसके बाद लड़कियों पर कई तरह की पाबंदियां लगा दी जाती हैं। इस दौरान माता-पिता अपनी बेटियों की सुरक्षा का हवाला देकर उसका बाहर आना-जाना बंद कर देते हैं। कई जगह लड़कियों का धार्मिक गतिविधियों में भाग लेना बंद कर दिया जाता है। किचन के अलावा पानी के स्रोत पर भी उनके जाने पर पाबंदियां लग जाती है। इन तमाम भ्रांतियों के कारण उनकी शिक्षा प्रभावित होती है और अक्सर स्कूल जाना बंद हो जाता है।
1,000 बच्चों का साक्षात्कार
लड़कियों की शिक्षा पर माहवारी का प्रभाव जानने के लिए मधुलिका खन्ना ने आंध्र प्रदेश (अब आंध्र प्रदेश और तेलंगाना) के 1,000 बच्चों का सर्वे और साक्षात्कार किया। माहवारी का अनुभव करने वाली लड़कियों को उन्होंने दो समूहों में बांटा। पहले समूह में आठ से बारह वर्ष की लड़कियों (जल्द माहवारी समूह) शामिल की गईं जबकि दूसरे समूह में उन लड़कियों को शामिल किया गया जिन्होंने 12 वर्ष के बाद माहवारी (देर से माहवारी समूह) को अनुभव किया। तीसरा समूह लड़कों का था। अध्ययन बताता है कि आठ साल की आयु में तीनों समूहों में दाखिले की दर लगभग समान थी। आठ साल के बाद जल्द माहवारी समूह की लड़कियों के स्कूल जाने में तेजी से कमी आई। बारह साल तक लड़कों और देर से माहवारी समूह की लड़कियों में स्कूल जाने में गिरावट की दर समान थी। लेकिन बारह साल बाद यह अंतर बढ़ता चला गया। अध्ययन के अनुसार, आठ से बारह वर्ष की आयु में माहवारी को अनुभव करने वाली लड़कियों के स्कूल जाने में 13.4 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई।
स्वस्थ लड़कियां ज्यादा छोड़ती हैं स्कूल
मधुलिका खन्ना का अध्ययन बताता है कि माहवारी का जल्दी आना इस बात पर भी निर्भर करता है कि लड़कियों का खानपान और पोषण का स्तर कैसा रहा है। पोषित लड़कियां अन्य लड़कियों के मुकाबले माहवारी जल्दी अनुभव करती हैं। इतना ही नहीं, ये लड़कियां दूसरे समूह की लड़कियों के मुकाबले दो सेंटीमीटर लंबी होती हैं और उनका वजन भी अधिक होता है। मधुलिका ने अपने अध्ययन में पाया कि माहवारी के बाद इन्हीं लड़कियों के स्कूल छोड़ने की संभावना अधिक होती है। यानी बेहतर स्वास्थ्य का जो लाभ शिक्षा में प्रतिबिंबित होना चाहिए, उससे वे वंचित रह जाती हैं।
शादी पर असर
अध्ययन में यह भी पाया गया है कि माहवारी को जल्दी अनुभव करने वाली लड़कियों की शादी भी जल्दी हो जाती है। यानी जिन लड़कियों को माहवारी आठ से बारह साल के बीच आती है, उनमें से 45 प्रतिशत लड़कियों की शादी 19 साल की उम्र में हो जाती है, जबकि देर से माहवारी अनुभव करने वाली 31 प्रतिशत लड़कियां इस उम्र तक विवाहित हो जाती हैं। 22 साल की उम्र तक जल्दी माहवारी अनुभव करने वाली 65 प्रतिशत लड़कियों की शादी हो जाती है। वहीं, देर से माहवारी अनुभव करने वाली 54 प्रतिशत लड़कियों की शादी 22 साल की उम्र तक कर दी जाती है।