यदि भारतीय किशोरियां अपने स्कूली समय के दौरान दस मिनट भी नृत्य करती हैं तो वे गैर संक्रामक रोगों से कोसों दूर हो सकती हैं। इतना ही नहीं इस नृत्य के कारण उनमें हृदय संबंधी बीमारियां भी कम होंगी। यह बात जर्नल ऑफ डायबिटीज साइंस एंड टेक्नोलॉजी में प्रकाशित एक अध्ययन में कही गई है।
यह अध्ययन “ए नोवेल हाई इनटेनसिटी शॉर्ट इंटरवेल डांस इंटरवेंशन (टीएचएएनडीएवी) फॉर नॉन कम्युनिकेबल डिसीज प्रीवेंशन टेलोर्ड टू एशियन इंडियन एडोलसेंट गर्ल्स” शीर्षक से प्रकाशित हुआ है। अध्ययन में कहा गया है कम आय वाले दुनियाभर के देशों में किशारियों के दैनिक गतिविधियों में नृत्य जैसी गतिविधियों को शामिल नहीं किया जाता है।
इस अध्ययन को चेन्नई में 13 से 15 वर्ष की आयु वर्ग वाली किशोरियों के बीच किया गया। और इस दौरान इन किशारियों ने 12 हफ्ते का एक पायलट प्रोजेक्ट पूरा किया। अध्ययन में पाया गया कि स्कूल आधारित नृत्य कार्यक्रम लड़कियों में गैर-संक्रामक रोगों के जोखिम को कम करते हैं। प्रारंभिक अध्ययन के अनुसार स्कूली समय में केवल 10 मिनट का नृत्य करने से किशोर लड़कियों में शरीर की वसा और रक्तचाप को कम किया है। यह स्कूली समय में की गई गतिविधियों का एक छोटा सा उदाहरण है।
ध्यान रहे कि कम आय वाले शहरी समुदायों में किशोरियों को अक्सर खेलों से बाहर रखा जाता है। ऐसे में शोधकर्ताओं ने सांस्कृतिक रूप से ऐसी स्थिति को एक व्यवहारिक रूप देने की कोशिश की है। और साथ ही इसका उद्देश्य भारत में गैर-संक्रामक रोगों की बढ़ती लहर को रोकना भी शामिल है।
अध्ययन में बताया गया है कि यह नृत्य आधारित कार्यक्रम भारत में युवा लड़कियों को अधिक सक्रिय बनाने में मदद सकता है। उन्होंने पारंपरिक व्यायाम के साथ अक्सर जुड़ी सांस्कृतिक बाधाओं को ध्यान में रखते हुए यह अध्ययन किया गया है। यह अपनी तरह का पहला और सांस्कृतिक रूप से उपयुक्त नृत्य कार्यक्रम है। यह मुख्य रूप से लड़कियों के बीच शारीरिक गतिविधि को बढ़ावा देने के लिए ही तैयार किया गया है।
ध्यान रहे कि देश में व्यायाम शब्द का अक्सर नकारात्मक अर्थ लिया जाता है और इसे लड़कियों के लिए हमेशा से स्वीकार नहीं किया जाता। इसलिए इसे अधिक मनोरंजक और प्रासंगिक बनाने के लिए इस स्कूली नृत्य कार्यक्रम की शुरुआत की गई।
यह अध्ययन चेन्नई के दो सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में किया गया था। इसमें 13 से 15 वर्ष की आयु वर्ग की 108 किशोर लड़कियों शामिल किया गया था। यह अध्ययन कुल 12 हफ्ते तक चला। और इसमें शामिल किशोरियों को हफ्ते में पांच दिन नियमित रूप् से स्कूली समय के दौरान दस मिनट का नृत्य कार्यक्रम में शामिल होना पड़ा। किशोरियों को यह नृत्य बकायदा प्रशिक्षित प्रशिक्षकों की देखरेख किया गया।
अध्ययन के दौरान उनकी गतिविधियों पर बारीक नजर रखी गई और उनके आंकड़ों को नोट किया गया। इस अध्ययन की सबसे बड़ी बात यह थी कि इसके शुरू होने और खत्म होने के बीच किसी प्रकार से स्कूली शिक्षा प्रभावित नहीं हुई और न ही किसी प्रकार की अतिरिक्त वित्तीय मदद की जरूरत महसूस की गई।
अध्ययन के नतीजे बहुत ही उत्साहजनक हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है कि इस गतिविधियों को अपनाने में किशारियों ने किसी प्रकार की आनाकानी नहीं की। यहां तक कि उन्हें यह बहुत अधिक पसंद भी आया।
यहां तक कि उनकी माताओं ने भी इसमें भाग लिया। अध्ययन नतीजे के रूप में किशोरियों में वास्तविक स्वास्थ्य सुधार दिखा। जैसे उनके शरीर की चर्बी का कम होना, बेहतर रक्तचाप, उनके पैदल चलने की गति में तेजी आना और कुल मिलाकर देखा जाए तो उनके संपूर्ण जीवनशैली में एक स्वास्थ्यवर्धक बदलाव दिखाई पड़ा।
अध्ययन के 12 सप्ताह के बाद किशोरियों में कई प्रकार के शारीरिक और उनके रक्तचाप में नियंत्रण दिखाई पड़ा। लड़कियों की शारीरिक गतिविधि में पर्याप्त वृद्धि दिखाई दी और औसतन प्रतिदिन 1,159 अतिरिक्त कदम चलीं। इसके चलते कुल बॉडी फैट प्रतिशत और कमर से कूल्हे के अनुपात में भी कमी देखी गई।
बेहतर रक्तचाप अच्छे स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण संकेत है। इसके अलावा किशोरियों की मांसपेशियों का द्रव्यमान काफी बढ़ गया। यह बढ़ी हुई मांसपेशियों की ताकत की और इशारा करता है। साथ ही आराम करने वाली हृदय गति आदि में भी सुधार पाया गया। अध्ययन के दौरान किशोरियों में औसतन 0.7 किलोग्राम वजन में कमी और शरीर की वसा में 2 प्रतिशत की कमी देखी गई। उनकी मांसपेशियों का द्रव्यमान औसतन 0.9 किलोग्राम बढ़ा। इसके अलावा हृदय संबंधी स्वास्थ्य में भी सुधार स्पष्ट रूप से दिखाई पड़े।
ध्यान रहे कि भारत में किशोरों में बढ़ती शारीरिक निष्क्रियता और स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं से निपटने के लिए शोध टीम ने शहरी किशोर लड़कियों में गैर-संक्रामक रोग (एनसीडी) के खतरे को कम करने के लिए स्कूली समय के दौरान नृत्य आधारित यह अध्ययन किया। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी कहता है कि बच्चों और किशोरों को प्रतिदिन कम से कम 60 मिनट तक शारीरिक गतिविधि में शामिल होना चाहिए। स्वास्थ्य आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि हर दो व्यक्तियों में से एक को जीवनशैली संबंधी विकार है।