भारत में लगभग एक अरब लोग कामकाजी उम्र के हैं, लेकिन मुंबई में एक स्वतंत्र शोध संस्थान सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के अनुसार देश में 43 करोड़ नौकरियां हैं और जिन लोगों को रोजगार के रूप में सरकार द्वारा गिना जाता है, उनमें से अधिकांश दिहाड़ी मजदूरों और खेतिहर मजदूरों के रूप में अनिश्चित जीवन जीने पर मजबूर हैं। निर्यात में वृद्धि नई नौकरियों का स्रोत बन सकती है। विशेषकर महिलाओं के लिए, जिन्हें औपचारिक कामकाजी रैंक से काफी हद तक बाहर रखा गया है। वास्तव में देखा जाए तो भारत का विनिर्माण विकास अभी भी नवजात और कमजोर स्थिति में है।
यह सही है कि पिछले 10 वर्षों में भले ही भारत ने बंदरगाहों और राजमार्गों का आक्रामक रूप से निर्माण किया हो, लेकिन इसका बुनियादी ढांचा अभी भी खस्ताहाल बना हुआ है, जिससे कच्चे माल और तैयार माल की आवाजाही में कई चुनौतियां सामने आ रही हैं। यहां तक कि भारतीय विनिर्माण में शामिल लोग भी विकास की तेजी को संभालने की देश की क्षमता के बारे में आश्चर्य करते हैं।
देश की तरक्की के लिए अच्छे बुनियादी ढांचे का होना बहुत जरूरी है। इसमें सड़कें, रेलवे, बिजली, पानी, सिंचाई जैसी चीजें शामिल हैं। भले ही सरकार ने इन क्षेत्रों में काफी काम किया है, फिर भी भारत के बुनियादी ढांचे को अभी और विकसित होने की जरूरत है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की एक रिपोर्ट के अनुसार बुनियादी ढांचे के मामले में भारत 141 देशों में से 70वें नंबर पर है। हालांकि इसे सुधारने के लिए सरकार ने नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन नाम से एक योजना बनाई है जिसके तहत साल 2025 तक 111 लाख करोड़ रुपए का निवेश बुनियादी ढांचे में करने का लक्ष्य रखा गया है।
यह पहली बार नहीं है कि दुनिया में यह बात जोर-जोर गूंज रही है कि भारत अंततः एक प्रमुख विनिर्माण शक्ति के रूप में अपनी नियति को हासिल करने की कगार पर है। देखा जाए तो इस तरह की बातें पूर्व में वास्तविकता में तब्दील होने में विफल होती रहीं हैं, लेकिन इस बार भारत के इस मिशन को जियो पॉटिक्स यानी भू-राजनीतिक स्थिति ने हकीकत में बदलने में मदद की है। इसके बावजूद स्थिति अब तक अनुकूल नहीं है। न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल शंघाई में अमेरिकन चैंबर ऑफ कॉमर्स द्वारा चीन में काम कर रही अमेरिकी कंपनियों के एक सर्वेक्षण में 40 प्रतिशत ने कहा था कि वे वाशिंगटन और बीजिंग के बीच तनाव के कारण नियोजित निवेश को अन्य देशों में स्थानांतरित कर रहे हैं या ऐसा करने का इरादा रखते हैं। अधिकांश कंपनियां दक्षिण-पूर्व एशिया की ओर देख रही हैं।
भारत 140 करोड़ लोगों के देश के रूप में अब यह चीन से भी कम से कम जनसंख्या के मामले में बड़ा देश बन गया है। कपास से लेकर लौह अयस्क और रसायनों तक प्रचुर मात्रा में कच्चे माल के साथ यह अपनी आपूर्ति श्रृंखला विकसित करने की क्षमता रखता है। यदि कोई देश किसी दिन विनिर्माण क्षेत्र में चीन की भूमिका को दोहरा सकता है तो यह भारत ही हो सकता है।
ये विशेषताएं बताती हैं कि दुनिया का सबसे बड़ा खुदरा विक्रेता वॉलमार्ट भारत में अपनी आपूर्तिकर्ताओं की श्रृंखला को आक्रामक रूप से विस्तार क्यों कर रहा है, जिसका लक्ष्य 2020 में लगभग 3 बिलियन डॉलर से 2027 तक अपनी खरीद को बढ़ाकर 10 बिलियन डालर प्रति वर्ष करना है। यही नहीं एप्पल आई फोन उद्यम के बढ़ते हुए कार्य को भारतीय कारखानों को सौंप रहा है। न्यूयार्क टाइम्स में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका की ही तरह यूरोपीय कंपनियां भी इसी तरह इच्छुक हैं। इनका भी यही कहना है कि किसी भी चीज के लिए एक आपूर्तिकर्ता पर निर्भर रहना अच्छा नहीं है। इन सभी सकारात्मकता के बावजूद विनिर्माण में तेजी नहीं है।
मोदी सरकार के पूर्व आर्थिक सलाहकार और अब वाशिंगटन में पीटरसन इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल इकोनॉमिक्स के वरिष्ठ फेलो अरविंद सुब्रमण्यन ने कहा है कि यह एक आकर्षक संभावना है। यह एक संभावित गेम चेंजर है। यह 225 मिलियन लोगों की आबादी है, इसलिए यदि आप वहां कुछ कर सकते हैं, जहां आपके पास बहुत सारे अकुशल श्रमिक हैं और युवा आबादी बढ़ रही है तो एक तरह से यह वैसा ही हो सकता है जैसा चीन 40 साल पहले था। कहा जाता है कि भारत की युवा आबादी देश की सबसे बड़ी ताकत है और इन युवाओं को बेहतर शिक्षा और कौशल विकास देने की जरूरत है लेकिन वास्तविकता ये है कि एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट 2022 में ये पाया गया कि सिर्फ 45 प्रतिशत पांचवीं क्लास के बच्चे ही दूसरी क्लास का लेवल का टेक्स्ट पढ़ पाए।
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के कंज्यूमर पिरामिड्स हाउसहोल्ड सर्वे के अनुसार भारत में बेरोजगारी की दर अप्रैल 2024 में बढ़कर 8.1 प्रतिशत हो गई है, जबकि मार्च 2024 में 7.4 प्रतिशत थी। इसमें सबसे विशेष बात यह है कि शहर और गांव दोनों जगह बेरोजगारी बढ़ी है. गांव में बेरोजगारी की दर मार्च की 7.1 प्रतिशत से बढ़कर अप्रैल में 7.8 प्रतिशत हो गई. वहीं शहरों में ये दर 8.1 प्रतिशत से बढ़कर 8.7 प्रतिशत हो गई। ध्यान रहे कि सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज की ओर से कराए गए सर्वे के अनुसार हाल में समाप्त हुए चुनाव में मतदाताओं ने बेरोजगारी (23.1 प्रतिशत), महंगाई (23.8 प्रतिशत) और गरीबी (11.2 प्रतिशत) को मोदी सरकार के पिछले पांच साल के सबसे कम पसंद किए जाने वाले कामों में बताया है।