केरल में मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा) फरवरी से ही अपने मानदेय में वृद्धि के लिए पूरे राज्य में विरोध प्रदर्शन कर रही हैं। हालांकि उन्होंने 31 अक्टूबर को राज्य सचिवालय में अपना विरोध प्रदर्शन समाप्त कर दिया, क्योंकि सरकार उनकी मांग पर आंशिक रूप से सहमत हो गई थी, लेकिन आशा की नेताओं ने कहा है कि सरकार की गरीबी की परिभाषा गलत है  (फोटो: केए शाजी)
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केरल की गरीबी मुक्त घोषणा पर सवाल: क्या सभी गरीबों को मिला लाभ?

केरल ने खुद को चरम गरीबी से मुक्त राज्य घोषित किया है, हालांकि वहां अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले लोग, आदिवासी जनसंख्या और तटीय समुदाय अब भी अत्यंत गरीब परिस्थितियों में जी रहे हैं

K A Shaji

हमारी रोजाना की मजदूरी महज 420 रुपए है। मानसून के चार-पांच महीनों में हम काम ही नहीं कर सकते और इस दौरान हमारी कोई कमाई नहीं होती है। केरल के वायनाड जिले के मेप्पाड़ी कस्बे में रहने वाली 36 वर्षीय आर सेल्वी अपनी दशा सुनाते हुए आगे कहती हैं, “इसके बावजूद हम सरकारी सूची के मुताबिक गरीब नहीं हैं क्योंकि हमारे पास नौकरियां हैं।” सेल्वी एक चाय एस्टेट में मजदूरी करती हैं।

एक नवंबर को केरल ने खुद को “अत्यधिक गरीबी” से मुक्त राज्य घोषित किया, जिससे वह यह दर्जा हासिल करने वाला भारत का पहला राज्य बन गया। यह उसने अत्यधिक गरीबी का सामना कर रहे लोगो की पहचान और पुनर्वास के लिए किए गए विस्तृत सर्वेक्षण के आधार पर किया।

सेल्वी जिसके पास आय का कोई सुरक्षित साधन नहीं है और जो एस्टेट में ब्रिटिश द्वारा बनाई गई 10 वर्ग मीटर की कोठरी में रहती है, उसे राज्य के एक्सट्रीम पॉवर्टी इरेडीकेशन प्रोग्राम (ईपीईपी) के तहत अत्यधिक गरीब नहीं माना गया।

ईपीईपी के तहत राज्य सरकार ने नगरपालिका वार्ड और गैर लाभकारी संगठनो की मदद से व्यापक सर्वे किए और 64,006 परिवार (1,03,099 व्यक्ति) की पहचान अत्यधिक गरीब के रूप में की। ईपीईपी डैशबोर्ड के मुताबिक सत्यापन के बाद कुल 59,277 परिवार “पुनर्वासित” किए गए और माइक्रो योजनाओ के जरिए उन्हें कल्याणकारी योजनाओ से जोड़ा गया।

केरल की उपलब्धियां लगभग सभी मानव विकास सूचकांक में उल्लेखनीय हैं और राष्ट्रीय औसत से बेहतर हैं। उदाहरण के लिए नीति आयोग के बहुआयामी गरीबी सूचकांक में राज्य की गरीबी सिर्फ 0.55 प्रतिशत दिखाई गई है जबकि राष्ट्रीय औसत 15 प्रतिशत है। फिर राज्य ने सेल्वी जैसे लोगो को कैसे छोड़ दिया?

विशेषज्ञ कहते हैं कि अत्यधिक गरीबी समाप्त करने की घोषणा का संबंध वास्तविकता से अधिक गरीबी की परिभाषा से है।

भारत में गरीबी का आकलन करने के लिए नीति आयोग का बहुआयामी गरीबी सूचकांक स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर, इन तीन क्षेत्रों के 12 संकेतक पर आधारित है। विश्व बैंक उन सभी को अत्यधिक गरीब कहता है जो प्रतिदिन तीन डॉलर से कम पर जीवन यापन करते हैं। केरल सरकार ने इनमे से किसी भी मानक का उपयोग नहीं किया। इसके बजाय उसने खाद्य, स्वास्थ्य, आय और आवास जैसे चार आयाम अपनाए। सरकार ने इस आधार पर परिवारो की पहचान की। जब तक किसी व्यक्ति में इनमे से कई संकेतक की कमी नहीं पाई गई तब तक उसे अत्यधिक गरीब नहीं माना गया।

पलक्कड जिले के आदिवासी तालुक अटप्पाडी में रहने वाली सामाजिक कार्यकर्ता शाइनी मुथन कहती हैं, “राज्य सरकार के मानक के अनुसार झोपडी में रहने वाले अनौपचारिक मजदूर जो दिन में दो वक्त भोजन करते हैं और जिनकी रोज की आय कुछ सौ रुपया है, वे भी अत्यधिक गरीबी का सामना कर रहे के रूप में योग्य नहीं माने जा सकते।”

नतीजा यह कि सेल्वी जैसे लोग जिनके पास नियमित आय या जमीन नहीं है, योजना के दायरे से बाहर रह गए। नाम न उजागर करने की शर्त पर केरल के श्रम विभाग के एक अधिकारी कहते हैं “सेल्वी जैसे लोग कंपनी एस्टेट में बिना जमीन के मालिकाना हक के रहते हैं। बहुतों के पास अपनी आय या पते को साबित करने के लिए कोई दस्तावेज नहीं है। वह सिस्टम के लिए अदृश्य हैं।”

यह बहुत हद तक संभव है कि कई लोग अत्यधिक गरीबी का सामना कर रहे हों और वह ईपीईपी के दायरे से बाहर हों। तिरुवनंतपुरम स्थित गुलाटी इंस्टीट्यूट ऑफ फाइनेंस एंड टैक्सेशन के 2024 के एक अध्ययन से पता चलता है कि केरल के 22 प्रतिशत मजदूर कम वेतन वाली असुरक्षित नौकरियों में काम करते हैं।

तिरुवनंतपुरम स्थित स्वास्थ्य कार्यकर्ता एस एस लाल कहते हैं कि केरल में गरीबी का स्वरूप जमीन न होना जलवायु संकट असमानता और लैंगिक शोषण जैसे कारकों से भी तय होता है। आवास 15 संकेतको में से एक है और राज्य में बहुत से लोग बिना घर या जमीन के बिना हैं। मिसाल के तौर पर वायनाड के थाविंजल पंचायत में पनिया और अडिया जनजाति के लोग बांस की छड़ और प्लास्टिक शीट से बने झोपडियो में रहते हैं। वायनाड के जनजातीय नेता मणिकुट्टन पनियन कहते हैं, “वह पिछले वर्ष यहां आए थे टैबलेट और कैमरा लेकर और कहा था कि हमें घर और जमीन दी जाएगी। अब वह कहते हैं कि केरल गरीबी मुक्त है। लेकिन हमारे पास न जमीन है और न ही घर।”

केरल अनुसूचित जनजाति विकास विभाग के अनुसार राज्य में 4,26,000 जनजातीय लोग हैं जिनमे से 1,52,000 वायनाड में रहते हैं। वायनाड, पलक्कड, इडुक्की और कन्नूर के जनजातीय क्षेत्रों में 85 प्रतिशत से अधिक जनजातीय परिवार जमीन के बिना हैं। इसी तरह राष्ट्रीय पृथ्वी विज्ञान अध्ययन केंद्र के अनुसार केरल के 580 किलोमीटर लंबे तट का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा मध्यम से गंभीर कटाव का सामना कर रहा है और तटीय समुदाय आवास समस्याओ के प्रति अधिक संवेदनशील हैं। कोच्चि जिले के चेल्लानम गांव के मछुआरे एंटनी जोसफ कहते हैं,“जो कहते हैं कि केरल गरीबी मुक्त है वह मानसून में यहां आकर देखें कि हम कैसे रहते हैं। समुद्र हमारे घरो में घुस आता है। हमें बैठे-बैठ सोना पड़ता है।” वहीं, विस्थापित तटीय समुदायो के पुनर्वास का समन्वय करने वाले माइकल वेट्टिक्कल का कहना है, “परिवार मजबूरी में उधार लेते हैं और बहुत से लोग कर्ज के जाल में फंस जाते हैं।”

लाल कहते हैं, “केरल ने दिखाई देने वाली गरीबी को कम किया है लेकिन असुरक्षा को नहीं। केरल में अत्यधिक गरीबी की परिभाषा केवल उन पर लागू होती दिखती है जो बिल्कुल बेसहारा हैं।” वह आगे कहते हैं, “यहां गरीब सड़कों पर भीख नहीं मांगते, वे उधार लेकर कर्ज पर जीते हैं। इसलिए उन्हें अत्यधिक गरीबी का सामना करने वाला नहीं माना जाता।”

ईपीईपी 2.0

सरकार ने यह स्वीकार किया है कि अपने डाटाबेस और सम्मिलन मानकों यानी शामिल करने के नियमों को लगातार अपडेट करने की आवश्यकता है। मीडिया रिपोर्ट यह भी कहती हैं कि ईपीईपी के दूसरे चरण यानी ईपीईपी 2.0 में यह सुनिश्चित किया जाएगा कि ईपीईपी में पहचाने गए परिवार आत्मनिर्भर बनने के लिए सहायता प्राप्त करें और दोबारा अत्यधिक गरीबी में न गिरें।

स्वयं सहायता समूह और स्थानीय सरकारें ईपीईपी 2.0 के क्रियान्वयन की निगरानी करेंगी और राज्य बजट में ईपीईपी 2.0 की गतिविधियो को जारी रखने के लिए अलग से धनराशि आवंटित की जाएगी। पनियन कहते हैं, “वह जो चाहे कह सकते हैं। हम तब विश्वास करेंगे जब हमारे बच्चे उस जमीन पर सोएंगे जो हमारी है।”