राजकाज

मास्टर-स्ट्रोक!

“जब किताबों में अध्याय ही नहीं रहेंगे तब बच्चे स्कूल आकर भला क्या पढ़ेंगे? ऐसे में धीरे-धीरे स्कूल भी खत्म हो जाएंगे”

Sorit Gupto

बारिश के बाद गर्मी की धूप और गर्द से बोझिल पेड़ों की पत्तियां एकदम से हरी भरी हो गईं थीं और उस हरियाली में यह टूटी-फूटी इमारत भी बहुत खूबसूरत लगने लगी थी।

बूढ़ी मेज ने प्लास्टर उखड़ी दीवार पर लटकती उसकी हमउम्र घड़ी को देखते हुए कहा, “बच्चे क्यों नहीं आए अभी तक?”

उसकी निगाह सामने की दीवार पर लटकते कैलेंडर पर पड़ी और उसने बुदबुदाते हुए कहा, “आज तो कोई छुट्टी भी नहीं है और न ही इतवार है!”

कैलेंडर ने कहा, “वही तो मैं भी सोच रहा हूं! अब तक तो किलकारियों-शैतानियों और हो-हल्ले से आसपास गूंज रहा होता!”

“अरे मत पूछो, अभी कुछ दिन पहले कुछ बच्चे मेरी पीठ पर बैठ गए और बाकी लोग मुझे खींचने लगे” कमरे के किनारे से एक स्टूल की आवाज आई, “मेरी तो एक टांग ही उखड़ गई और देखो अब मुझे लंगड़ा कर चलना पड़ रहा है! ऊपर से तुर्रा ये कि वही बच्चे अब मुझे लंगड़ा स्टूल कहकर पुकारने लगे हैं!”

इसे सुनकर बाकी मेज और कुर्सियां खिलखिला कर हंसने लगीं। बूढ़ी मेज ने सबको डांट कर चुप करवा दिया। उसने बोर्ड से पूछा, “भाई यह इतिहास विषय को लेकर नया कुछ चल रहा है क्या? कल मैंने सुना कि कई चैप्टर हटा दिए जा रहे हैं! क्या यह सही है?”

बोर्ड ने कहा, “आपने ठीक सुना है और यह केवल इतिहास ही नहीं दूसरे विषयों से भी कई टॉपिक हटा दिए गए हैं।”

कमरे में अचानक सन्नाटा छ गया। सारे कुर्सी-मेज-कैलेंडर-घड़ी-दीवारों पर लगे देश के मानचित्र सब चुप होकर इन दोनों कि बातों को ध्यान से सुनने लगे।

बूढ़ी मेज ने कहा, “मैं पिछले तीस साल से हूं। इतिहास-भूगोल से लेकर विज्ञान तक सारी किताबों के पन्ने दर पन्ने इतनी बार सुन चुकी हूं कि अब तो सबकुछ जुबानी याद है। कल मैंने सुना कि मास्साब बच्चों को बता रहे थे कि अकबर एक बुरा बादशाह था। मेरा माथा ठनका! इससे पहले तो ऐसी बेसिरपैर की बात मैंने नहीं सुनी थीं।”

बोर्ड बोला, “इतिहास की किताब मुगल सल्तनत और दिल्ली सल्तनत को हटा दिया गया है। भौतिक विज्ञान की किताब से न्यूटन और केप्लर के सिद्धांत हटा दिए गए हैं। जंतु विज्ञान से वर्गिकी सहायक, पादप जगत से आवृतबीजी को हटा दिया गया है। कृषि विषय से “वैश्वीकरण का कृषि पर प्रभाव” अध्याय को हटा दिया गया है।”

एक नन्ही सी कुर्सी ने पूछा, “पर सरकार भला ऐसा क्यों कर रही है?”

बोर्ड ने कहा, “सरकार की मर्जी! वह चाहे तो कुछ भी कर सकती है।”

अचानक हवा के एक तेज झोंके से कमरे का दरवाजा धड़ाम से खुला और जाने कहां से अखबार का पन्ना कमरे में फड़फड़ाता हुआ अंदर आ गया जिसने आते ही कहा, “आपके स्कूल को बंद कर दिया है और इसीलिए आज यहां बच्चे नहीं दिख रहे हैं और आप हैं कि इतिहास-भूगोल-विज्ञान में उलझे पड़े हैं!”

एक नन्ही सी मेज ने पूछा, “स्कूल बंद हो जाएगा तो बच्चे कहां पढ़ने जाएंगे? बाकी स्कूल तो यहां से बहुत दूर हैं। हमारे नन्हे दोस्त उतनी दूर पैदल भला कैसे जाएंगे?

एक भर्राई सी आवाज आई, “स्कूलों को बंद करने का फैसला एकदम सही है। एक सरकार पाठ्यक्रम से कुछ अध्यायों को हटाएगी तो दूसरी सरकार फिर कुछ दूसरे अध्यायों को हटाएगी। जल्द ही किताबों से सारे अध्यायों को हटा दिया जाएगा। जब किताबों में अध्याय ही नहीं रहेंगे तब बच्चे स्कूल आकर भला क्या पढ़ेंगे? ऐसे में धीरे-धीरे स्कूल भी खत्म हो जाएंगे। इसे कहते हैं पढ़ाई का मास्टर-स्ट्रोक!

यह आवाज बूढ़ी मेज की थी। बाहर एक बार फिर से बारिश शुरू हो गई थी।