राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने 2025 का बिहार विधानसभा चुनाव जीत लिया है। पर्यवेक्षकों के अनुसार, इसका बड़ा श्रेय उन महिला मतदाताओं को जाता है जिन्होंने गठबंधन के पक्ष में मतदान किया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा शुरू की गई कई राजनीतिक पहलों ने बिहार की महिलाओं को उनका वफादार वोट बैंक बना दिया है।
बेशक सूची में सबसे ऊपर लोकप्रिय ‘दस हजारी’ नकद लाभ योजना, जो विशेष रूप से राज्य की महिलाओं के लिए लक्षित है। लेकिन बात सिर्फ इतनी ही नहीं है।
बिहार में महिला मतदाताओं की संख्या 3.5 करोड़ है, जो बिहार की कुल मतदाता संख्या का आधा हैं। ये महिलाएं चुनावों में निर्णायक भूमिका निभाती हैं। 2025 के विधानसभा चुनावों में बिहार में महिलाओं ने पुरुषों की तुलना में 8.8 प्रतिशत अधिक मतदान किया। चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, इस बार 2020 के पिछले चुनावों की तुलना में 4.4 करोड़ अधिक महिला मतदाता थीं।
दस हजार की ताकत
बिहार की महिलाओं, जिनमें से अधिकांश गरीब हैं को मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत सीधे उनके बैंक खातों में 10,000 रुपये का नकद लाभ मिलने के बाद, वे निस्संदेह खुश थीं और उन्होंने नीतीश कुमार की सराहना की।
इस योजना के तहत राज्य की 2.77 करोड़ महिलाओं को नकद लाभ प्रदान किया गया है, जिसमें बिहार के हर परिवार की एक महिला को आर्थिक सहायता देने का वादा किया गया है। पात्रता मानदंड बहुत सरल हैं: आवेदिका और उसके पति आयकर दाता नहीं होने चाहिए। इसका अर्थ है कि सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़ी और हाशिए पर रहने वाली महिलाओं को इसका अधिकार मिलता है।
एक सामाजिक कार्यकर्ता ने इस योजना को बिहार की महिलाओं के लिए अब तक का सबसे आकर्षक चुनाव-पूर्व प्रस्ताव बताया। उन्होंने कहा कि इससे पहले कभी भी चुनावों से ठीक पहले महिलाओं के लिए 10,000 रुपये की इतनी प्रत्यक्ष नकद प्रोत्साहन राशि की घोषणा नहीं हुई। उन्होंने इस योजना को संभावित “गेम चेंजर” करार दिया।
पूर्व मंत्री और जनता दल (यूनाइटेड) के वरिष्ठ नेता नीरज कुमार ने डाउन टू अर्थ को बताया कि नीतीश कुमार ने अपने लंबे कार्यकाल (2005–2025) के दौरान महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए कई योजनाएं शुरू कीं।
इन योजनाओं ने कुमार के लिए एक मजबूत वोट बैंक तैयार किया। उदाहरण के लिए, उनकी सरकार ने मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना के तहत स्कूली लड़कियों को मुफ्त साइकिलें उपलब्ध कराईं और पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण दिया।
उनकी सरकार ने राज्य की सभी सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए 35 प्रतिशत आरक्षण भी प्रदान किया और लड़कियों के स्कूलों में नामांकन बढ़ाने के लिए मुख्यमंत्री कन्या उत्थान योजना शुरू की।
नीतिश कुमार ने आजीविका कार्यक्रम के तहत स्वयं सहायता समूहों की 1.4 करोड़ से अधिक जीविका दीदियों के बीच भी एक मजबूत समर्थन आधार बनाया। ये महिलाएं ज्यादातर गरीब परिवारों से थीं और 2006 में विश्व बैंक की सहायता से शुरू की गई इस योजना से लाभान्वित हुईं।
कुमार ने राज्य में पूर्ण शराबबंदी भी लागू की, जिसके बारे में उनका दावा था कि यह महिलाओं की मांग पर किया गया कदम था। राज्य सरकार बार-बार यह कहती रही है कि शराबबंदी से घरेलू हिंसा में कमी आई है।
पिछले डेढ़ दशक में किए गए कई शोध अध्ययनों ने यह रेखांकित किया है कि बड़ी संख्या में महिलाओं, जो जाति और धर्म की सीमाओं से परे हैं ने राज्य में महिला-केंद्रित नीतियों के क्रियान्वयन के कारण कुमार के पक्ष में मतदान किया।
उदाहरण के लिए, 2020 के बिहार विधानसभा चुनावों को ही लें। एनडीए और विपक्षी महागठबंधन के बीच कड़े मुकाबले के बावजूद, 243 विधानसभा क्षेत्रों में से 167 में महिलाओं ने पुरुषों की तुलना में अधिक मतदान किया। इनमें से अधिकांश क्षेत्र बाढ़-प्रभावित कोसी–मिथिलांचल इलाके में थे। इसी क्षेत्र में एनडीए ने महागठबंधन से अधिक सीटें जीतीं, जिससे उसे सरकार बनाने में मदद मिली।
भारत निर्वाचन आयोग के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 2020 के लोकसभा चुनाव में बिहार में महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों से अधिक था। आंकड़े बताते हैं कि 59.7 प्रतिशत महिला मतदाताओं ने वोट डाला, जबकि पुरुष मतदाताओं में यह प्रतिशत 54.7 था।
2019 के बिहार विधानसभा चुनावों में भी लगभग 59.58 प्रतिशत महिलाओं ने मतदान किया, जबकि पुरुषों में यह आंकड़ा 54.45 प्रतिशत था।
2015 के राज्य विधानसभा चुनावों में 60.5 प्रतिशत महिलाओं ने मतदान किया, जबकि पुरुषों में यह आंकड़ा 53.3 प्रतिशत था।
2014 के लोकसभा चुनावों में 57.66 प्रतिशत महिला मतदाता मतदान केंद्रों तक पहुँचीं, जबकि पुरुष मतदाताओं का turnout 55.08 प्रतिशत था।
2010 के विधानसभा चुनावों में भी 59.6 प्रतिशत महिलाओं ने वोट डाला, जबकि पुरुषों में यह संख्या 54.9 प्रतिशत रही।