जंगल

खतरे में हसदेव अरण्य, आदिवासी कर रहे हैं अदानी की कोयला खदान का विरोध

Manish Chandra Mishra

छत्तीसगढ़ का हसदेव वन्य क्षेत्र अपनी जैव विविधता और विशेषतौर पर हाथियों के झुंड़ो के लिए काफी प्रसिद्ध है। यहां हजारो प्रजाति के वन्य जीव के साथ माइग्रेटरी चिड़ियों का भी बसेरा है। इतना ही नहीं, हसदेव बांगो बैराज का कैचमेंट क्षेत्र है जहां से छत्तीसगढ़ की 4 लाख हेक्टेयर खेतों में सिंचाई की जाती है। पर्यावरण की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण जंगल इस समय कोयला खदान की वजह से अस्तित्व का संकट झेल रहा है। हाल ही में छत्तीसगढ़ के सरगुजा स्थित परसा कोल ब्लॉक से उत्खनन के लिए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने अनुमति दे दी है। इस कोल ब्लॉक से अदानी समूह की कंपनी ओपनकास्ट माइनिंग के जरिये कोयला निकालेगी। 2100 एकड़ में फैला यह कोल ब्लॉक राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को आवंटित हुआ है, लेकिन एमडीओ यानी खदान के विकास और ऑपरेशन का अधिकार अडानी के पास है। संरक्षित व सघन वन क्षेत्र होने के कारण इस कोल ब्लॉक के आवंटन का शुरू से विरोध हो रहा है। इस निर्णय के बाद जंगल क्षेत्र में निवास करने वाले आदिवासी आंदोलन कर रहे हैं और आवंटन रद्द करने की मांग को लेकर बीते 14 अक्टूबर से धरने पर बैठे हैं।

डाउन टू अर्थ से बातचीत में आंदोलन स्थल पर मौजूद हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के सदस्यों ने अपने संघर्ष की 6 साल पुरानी कहानी साझा की। शाल्ही गांव के निवासी रामलाल करियाम बताते हैं कि ग्रामीणों को जब से जंगल में खनन की भनक मिली तबसे ही वो आंदोलन कर रहे हैं। करियाम ने आरोप लगाया कि सरकार उनसे जमीन छीनने के लिए तमाम हथकंडे अपना रही है और यहां तक कि प्रशासन ने ग्राम सभा का आयोजन किए बिना ही ग्राम सभा की स्वीकृति वाले कागजात बनाकर अडानी को खदान का संचालन सौंप दिया। वे कहते हैं कि हसदेव का जंगल हजारों प्रजाति पशु-पक्षियों और पेड़-पौधों का घर है और यहां के आदिवासी किसी का घर नहीं उजड़ने देंगे।

रामलाल ने संघर्ष के रास्ते में आ रहे बाधाओं के बारे में बताया कि 14 अक्टूबर को यह धरना तारा गांव के सरपंच की अनुमति के बाद गांव के एक मैदान में शुरू हुआ था लेकिन सरपंच पर बाद में अडानी कंपनी की तरफ से दबाव आया और धरना स्थल बदलना पड़ा।

ग्रामीणों का आरोप, सरकार नहीं मान रही पेसा कानून

आंदोलनकर्ता मनसाय कोर्राम ने बताया कि सरकार ने  कोल ब्लॉक पर खुदाई शुरू करने के आदेश दिए हैं जिससे हम सकते में हैं। यह क्षेत्र पेसा कानून यानि पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम 1996 के तहत आता है जिसके तहत ग्राम सभा की अनुमति के बिना कोई भी काम शुरू नहीं किया जा सकता है। हम इसके विरोध में अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे हैं और हम सरकार से चाहते हैं कि इसे रद्द किया जाए। उमेश्वर सिंह आर्मो कहते हैं कि यह कोयला खदान क्षेत्र पर आवंटन की प्रक्रिया गलत है लेकिन सरकार इसे तेजी से आगे बढ़ा रही है। हम सरकार के इस रवैये का विरोध करते हैं और आवंटन रद्द करने के लिए आंदोलनरत हैं।

समाजसेवी आलोक शुक्ला बताते हैं कि इस इलाके में हसदेव और चरनोई नदी का कैचमेंट क्षेत्र है जो कि जैव विविधता की दृष्टि के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। साथ ही, आदिवासियों की आजीविका का साधन भी है। यह नदी घाटी क्षेत्र कोयले के अथाह भंडार के लिए जाना जाता है। छत्तीसगढ़ के अधिकतर वन्य क्षेत्र उजाड़ने के बाद कॉर्पोरेट की नजर अब इस वन पर है।

सरकार से आवंटन रद्द करने की मांग

ग्रामीणों ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को पत्र लिखकर खनन रोकने की मांग की है। पत्र में उन्होंने लिखा है कि हसदेव अरण्य को वर्ष 2009 में “केंद्रीय वन पर्यावरण एवं क्लाइमेट चेंज मंत्रालय” ने खनन के लिए नो गो क्षेत्र घोषित किया था।  वर्ष 2011 में तत्कालीन केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने इस क्षेत्र में 3 कोल ब्लॉक तारा, परसा ईस्ट,केते बासन को यह कहते हुए सहमति दी थी कि इसके बाद हसदेव अरण्य में किसी अन्य खनन परियोजना को स्वीकृति प्रदान नही की जाएगी। हालांकि वर्ष 2014 में माननीय नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने सुदीप श्रीवास्तव की याचिका पर निर्णय देते हुए परसा ईस्ट केते बासन की वन स्वीकृति को भी निरस्त कर दिया।

पत्र में आगे लिखा है, दिनांक 30 जून 2011 में मोरगा 2 कोल ब्लॉक की स्वीकृति के संबंध में तत्कालीन केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री ने प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र लिखा था जिसमे उन्होंने स्पष्ट लिखा था कि मुख्य हसदेव अरण्य में अब किसी भी कोल ब्लॉक को पर्यावरणीय स्वीकति नहीं दी जा सकती। वर्ष 2014 में केंद्र में मोदी सरकार ने हसदेव अरण्य के नो गो प्रावधान को दरकिनार करते हए खनन परियोजनाओ को स्वीकति देना शुरू कर दिया।