सूख चुके या उजाड़ हो चुके जंगलों को फिर से हरा-भरा बनाने के लिए मध्य प्रदेश में निजी संस्थानों की मदद ली जाएगी। इससे निजी निवेशकों को 60 वर्षों के लिए कार्बन क्रेडिट के अधिकार भी प्राप्त होंगे।
वनीकरण की लागत 5 लाख रुपए से 8 लाख रुपए प्रति हेक्टेयर के बीच होने का अनुमान है। यह वहां के स्थान, भूमि के आकार, मिट्टी की स्थिति और जलवायु जैसे कारकों पर निर्भर करता है।
राज्य के वन विभाग द्वारा जारी कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर), कॉर्पोरेट पर्यावरण उत्तरदायित्व (सीईआर) की एक मसौदे से पता चलता है कि मध्य प्रदेश के 95 लाख हेक्टेयर वन में से 37 लाख हेक्टेयर क्षरित वन के रूप में चिन्हित किया गया है।
इस मसौदे का मुख्य उद्देश्य है कि वनों की बहाली के लिए निजी संस्थाओं को शामिल करना है, क्योंकि इस तरह के बड़े पैमाने पर की जाने वाली पारिस्थितिक बहाली के लिए वास्तव में सरकारी धन की कमी है।
मसौदे में बताया गया है कि इस पहल का उद्देश्य हरित आवरण को और अधिक बढ़ाना है। इससे पारिस्थितिक सेवाएं प्रदान करने और स्थानीय समुदायों के लिए वन-आधारित आजीविका को और अधिक मजबूत करना।
मसौदे में कहा गया है कि वनीकरण की लागत 5 लाख रुपये से 8 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर के बीच होने का अनुमान है, जो स्थान, भूमि के आकार, मिट्टी की स्थिति और जलवायु जैसे कारकों पर निर्भर करता है।
इस पहल के लिए सीएसआर और सीईआर के पैसों का उपयोग किया जाएगा। औद्योगिक समूह, कॉर्पोरेट संस्थाएं, व्यक्ति और स्वैच्छिक संगठन 60 साल की अवधि के लिए न्यूनतम 10 हेक्टेयर से लेकर अधिकतम 10,000 हेक्टेयर तक की क्षरित वन भूमि का चयन करके राज्य के वनीकरण में भाग ले सकते हैं।
इस मसौदे के अंतर्गत निवेशकों को 60 साल की अवधि के लिए कार्बन क्रेडिट का अधिकार होगा, जिसमें संयुक्त वन प्रबंधन समितियां (जेएफएमसी) इन क्रेडिट में 10 प्रतिशत हिस्सा बनाए रखेंगी।
निवेशक वृक्षारोपण के लिए पौधों की प्रजातियां और किस्मों का चुनाव कर सकते हैं, हालांकि इस मामले में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि विदेशी प्रजातियों के पौधों के रोपण का उपयोग पूर्ण रूप से प्रतिबंधित रहेगा।
यही नहीं निवेशकों को कोई भी भूमि स्वामित्व का अधिकार नहीं दिया जाएगा और राज्य सरकार के पास पेड़ों से प्राप्त होने वाली लकड़ी के स्वामित्व का अधिकार होगा।
मसौदे में वन (संरक्षण) अधिनियम 1980, भारतीय वन अधिनियम 1927 और अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वनवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 सहित मौजूदा कानूनों का पालन कड़ाई से लागू किया गया है।
निवेशकों को मध्य प्रदेश राज्य वन विकास निगम (एमपीएसएफडीसी) और जेएफएमसी के बीच एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर करना होगा। इसमें प्रत्येक हितधारक की भूमिका और जिम्मेदारियों को स्पष्ट रूप से बताया गया है।
वन उपज का जेएफएमसी को 20 प्रतिशत, निगम को 30 प्रतिशत और निवेशक को 50 प्रतिशत का वितरण अनुपात सुनिश्चित किया गया है। निगम वन उपज की देखरेख करेगा, जिसमें लागत आनुपातिक रूप से सभी के साथ साझा की जाएगी।
उपज को खुली निविदा के माध्यम से नीलाम किया जाएगा, जिसमें निवेशक को उच्चतम बोली लगाने का पहला अधिकार होगा। मसौदा नीति में कहा गया है कि निवेशकों को केंद्र सरकार के निर्धारित मानदंडों के अनुसार ही कार्बन क्रेडिट का अधिकार होगा। इन क्रेडिट का उपयोग समझौते की अवधि के लिए किया जा सकता है, जिसमें जेएफएमसी क्रेडिट में 10 प्रतिशत हिस्सेदारी बनाए रखेगा।
नोट: विरोध के चलते इस नीति को फिलहाल टाल दिया गया है