नीलगाय का एक झुंड। फोटो: डॉन मैमोसर वाया आईस्टॉक 
जंगल

मध्यप्रदेश: खेतों से निकालकर जंगल में छोड़े गए 913 नीलगाय और काला हिरण

राज्य में 15 हजार से अधिक नीलगाय व काला हिरण जंगलात की बजाय राजस्व भूमि में रहते हैं

Himanshu Nitnaware

  • मध्यप्रदेश के शाजापुर जिले में वन विभाग ने 913 नीलगाय और काला हिरण को किसानों की फसल से बचाने के लिए जंगल में छोड़ा।

  • यह अभियान 11 दिन चला, जिसमें हेलीकॉप्टर और बोमा तकनीक का उपयोग किया गया।

  • दक्षिण अफ्रीका की विशेषज्ञ टीम ने इस अभियान में सहयोग किया, जिससे वन्यजीवों को सुरक्षित स्थानांतरित किया जा सका।

मध्यप्रदेश राज्य के शाजापुर जिले में वन विभाग टीम ने किसानों की फसल को नुकसान पहुंचाने वाले वन्य जीवों को कृषि व राजस्व भूमि से दूर जंगल की ओर ले जाने के लिए अभियान चलाया, जिसमें 913 नीलगाय व काला हिरण को पकड़कर जंगल में छोड़ा गया।

यह अभियान 11 दिन चला। इसमें हेलीकॉप्टर व बोमा (घेरा बनाना) तकनीक का प्रयोग किया गया, जो कि भारत में पहली बार उपयोग किया है।

 इस अभियान को अंजाम देने के लिए वन विभाग ने दक्षिण अफ्रीका की कंपनी “कंजर्वेशन सॉल्यूशन” की विशेषज्ञ टीम को बुलाया, जिनका हाथी, गैंडा व अन्य शाकाहारी जानवरों को सफलतापूर्वक पकड़ने व स्थानांतरण करने का अनुभव था। विशेषज्ञों ने प्रदेश के वन विभाग के कर्मचारियों को पूरे अभियान के बारे में प्रशिक्षित किया।

इस अभियान की जिम्मेवारी संभालने वाले वन प्रभागीय अधिकारी बीरेंद्र कुमार पटेल ने बताया, “राज्य में 15 हजार से अधिक नीलगाय व काला हिरण जंगलात में न रहकर राजस्व भूमि में रहते है। यह जानवर खेतों व फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। किसानों द्वारा लगातार फसल नुकसान की शिकायत मिलने के कारण राज्य सरकार ने इन जानवरों को जंगलों में स्थानांतरित करने का फैसला लिया।”

वन्य जीवों को एक जगह इकट्ठा करने के बाद इन्हें सुरक्षित आसपास के अभ्यारण जैसे- रानी दुर्गावती बाघ अभयारण्य, नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य, गांधीसागर वन्यजीव अभयारण्य और कूनो राष्ट्रीय उद्यान में भेज दिया गया।

वन अधिकारी ने इस अभियान को एक सफलता बताते हुए कहा, “वन विभाग के इस अभियान ने जनता का समर्थन हासिल किया है और किसान व वन्यजीवों के मध्य संघर्ष को कम करने में उनकी मदद की है, इससे वन्य शाकाहारी जानवर भी मानव बस्तियों व खेतों से दूर प्राकृतिक आवास वाले जंगलों और संरक्षित क्षेत्रों में चले जाते हैं।"

इस अभियान में स्थानीय ग्रामीण लोगों का भरपूर सहयोग मिला। अधिकारी पटेल ने बताया कि स्थानीय लोगों ने शाकाहारी वन्य जीवों की अधिक संख्या के ठिकानों के बारे में बताया जिससे वन्य टीम का एक केंद्रित अभियान बन सका।

बोमा तकनीक के बारे में अधिकारी बताते है कि यह एक चारों और से घेरा बनाने का तरीका है जिसमे अफ्रीका की टीम ने घास व हरे रंग की जालियों का घेरा बनाया व हेलीकॉप्टर की मदद से शाकाहारी वन्य जीवों को इन जालियों मे लाया गया। इसमे वन्य सिपाही या मानव हस्तक्षेप नहीं होता है।

यह अभियान 20 दिन का निर्धारित किया गया था लेकिन तकनीकी कारणों की वजह से 11 दिन ही चल सका। अभियान में 150 से अधिक अधिकारी, विशेषज्ञ व पशु चिकित्सकों को एक दर्जन क्षेत्र में तैनात किया गया था। पशु चिकित्सकों ने आवश्यकता पड़ने पर जानवरों को दवा देने के लिए दूरस्थ तरीकों का भी इस्तेमाल किया।

इस अभियान को पूर्ण करने में चुनोतियों भी आई। अधिकारी पटेल बताते है कि सबसे पहले उन्हें राजस्व विभाग से इजाजत लेनी पड़ी और यह सुनिश्चित करना पड़ा कि न तो इंसानों को नुकसान पहुंचे और न ही जानवरों को (उन्हें उन क्षेत्रों से हांका गया था जहां कम मानव आबादी थी)। इस सब के लिए अत्यधिक सावधानी रखनी पड़ी।