तेलंगाना सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि कंचा गाचीबौली वन क्षेत्र के लिए एक ऐसी विकास योजना तैयार की जा रही है, जिसमें पर्यावरण और वन्यजीवों के संरक्षण के साथ-साथ विकास कार्यों के बीच संतुलन बनाए रखने पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
राज्य सरकार ने अदालत को यह भी जानकारी दी है कि पिछले आदेशों का पालन करते हुए पेड़ों के काटे जाने से जुड़ी सभी गतिविधियों पर रोक लगा दी गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना सरकार के इस रुख की सराहना की है और कहा कि वह विकास के खिलाफ नहीं है, लेकिन ऐसा विकास "सतत (सस्टेनेबल)" होना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि विकास कार्यों के दौरान पर्यावरण और वन्यजीवों के हितों की रक्षा जरूरी है, जिसके लिए उपयुक्त उपाय किए जाने चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति विनोद चंद्रन की बेंच ने कहा कि अगर तेलंगाना सरकार ऐसी संतुलित योजना के साथ आगे बढ़ती है, तो अदालत उसका स्वागत करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य को कंचा गाचीबौली जंगल की बहाली से जुड़ी योजना पेश करने के लिए छह सप्ताह का समय दिया है।
गौरतलब है कि 3 अप्रैल 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप करते हुए हैदराबाद यूनिवर्सिटी के पास कंचा गाचीबौली जंगल में पेड़ों के काटे जाने पर रोक लगा दी थी। अदालत ने इस इलाके में सैकड़ों एकड़ में बड़े पैमाने पर पेड़ों के काटे जाने पर हैरानी और चिंता जताई थी।
गौतम बुद्ध नगर: तालाबों की बहाली के लिए सुप्रीम कोर्ट ने दिया विशेषज्ञ समिति के गठन का आदेश
अदालत ने समिति को तालाबों के जलग्रहण क्षेत्र की पहचान के साथ-साथ, पानी के प्राकृतिक प्रवाह को समझने की जिम्मेदारी सौंपी है
सुप्रीम कोर्ट ने दादरी तहसील के सैनी गांव में स्थित दो प्रमुख जलाशयों (खसरा संख्या 552 और 490) के संरक्षण और बहाली के लिए छह विशेषज्ञों की एक समिति गठित करने का आदेश दिया है। मामला उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्ध नगर जिले का है।
अदालत ने समिति को तालाबों के जलग्रहण क्षेत्र (कैचमेंट एरिया) की पहचान करने के साथ-साथ, पानी के प्राकृतिक प्रवाह को समझने की जिम्मेदारी सौंपी है। साथ ही समिति से उन सभी रुकावटों को चिह्नित करने के लिए कहा है जिन्हें हटाना जरूरी है ताकि तालाबों को उनकी मूल स्थिति में बहाल किया जा सके। अदालत ने इस बारे में सभी हितधारकों से सुझाव लेने की बात कही है।
सर्वोच्च न्यायालय ने विशेषज्ञ समिति को स्थानीय निवासियों के साथ-साथ सभी संबंधित पक्षों से सुझाव लेने का निर्देश दिया है, ताकि योजना को जमीनी हकीकत के अनुसार तैयार किया जा सके।
इसके साथ ही अदालत ने ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण को निर्देश दिया कि वह न केवल खसरा संख्या 552 और 490 में स्थित दो तालाबों के लिए, बल्कि इस क्षेत्र के अन्य सभी जल निकायों के संरक्षण और बहाली के लिए भी एक विशेष फंड निर्धारित करे।
पहले भी दिए गए थे निर्देश
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 25 नवंबर 2019 को यह स्पष्ट आदेश दिया था कि किसी भी जल निकाय (तालाब या नहर) का निजी व्यक्तियों को आवंटन अवैध है। इसके साथ ही अदालत ने सैनी गांव के सभी जल निकायों को बहाल करने, उनकी सुरक्षा और नियमित देखभाल के निर्देश दिए थे। साथ ही, उन सभी अड़चनों को हटाने को कहा था जो तालाबों तक प्राकृतिक जल प्रवाह में बाधा बन रही थीं।
सुप्रीम कोर्ट ने 11 अगस्त 2025 को यह भी दर्ज किया कि दो तालबों का निजी आवंटन रद्द किया जा चुका है और खसरा नंबर 552 और 490 अब ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण के अधिकार में वापस आ गए हैं।
लेकिन, सुप्रीम कोर्ट के निर्देश जो कैचमेंट एरिया से पानी के प्राकृतिक प्रवाह में रुकावटें हटाने और दोनों तालाबों की देखभाल के लिए थे, अभी तक पूरी तरह लागू नहीं किए गए हैं।