आदिवासी दुनिया की लगभग 7,000 भाषाओं में से अधिकांश बोलते हैं और 5,000 अलग-अलग संस्कृतियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। फोटो साभार: आईस्टॉक
जंगल

अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस: छह फीसदी से भी कम आबादी वाले लोगों के अस्तित्व को खतरा

भारत में आदिवासी आबादी की बात करें तो यहां लगभग 10 करोड़ 40 लाख आदिवासी रहते हैं, जो देश की कुल जनसंख्या के लगभग 8.6 फीसदी के बराबर है।

Dayanidhi

अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस हर साल नौ अगस्त को मनाया जाता है, यह दिन आदिवासी के अधिकारों को बढ़ावा देने का दिन है। साथ यह दिन उनके भूमि अधिकारों और सामाजिक-आर्थिक असमानताओं जैसी चुनौतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने का भी दिन है। आज के दिन आदिवासी इतिहास और परंपराओं पर शैक्षिक कार्यशालाएं आयोजित की जाती हैं।

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, दुनिया भर में लगभग 200 आदिवासी या स्वदेशी लोग रहते हैं। आदिवासी, बोलीविया, ब्राजील, कोलंबिया, इक्वाडोर, भारत, इंडोनेशिया, पापुआ न्यू गिनी, पेरू और वेनेजुएला के सुदूर जंगलों में रहते हैं, तथा अपनी संस्कृतियों और भाषाओं को संरक्षित रखने के लिए भोजन इकट्ठा करने और शिकार पर निर्भर हैं।

आदिवासी या स्वदेशी लोग लंबे समय से अपनी पहचान, जीवन शैली और प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकारों की मांग करते आए हैं। उनके प्रयासों के बावजूद, पूरे इतिहास में उनके अधिकारों का लगातार उल्लंघन किया गया है।

उनके प्राकृतिक आवास में होने वाले बदलावों के कारण उनके अस्तित्व को खतरा है, इसलिए दुनिया भर में स्वदेशी आबादी के अधिकारों को बढ़ावा देने और उनकी रक्षा करने के प्रयास में, संयुक्त राष्ट्र हर साल विश्व के स्वदेशी लोगों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाता है।

यह दिन आदिवासियों की अनूठी संस्कृतियों, भाषाओं और परंपराओं को मान्यता देता है, साथ ही दुनिया भर में विविधता और सतत विकास में उनके योगदान का भी उल्लेख करता है। साथ ही भेदभाव, हाशिए पर डाले जाने और अपनी पैतृक भूमि खोने जैसी चुनौतियों को भी सामने लाता है।

इसके अलावा यह दिन सरकारों, संगठनों और लोगों को स्वदेशी लोगों के अधिकारों को बनाए रखने, उनके सशक्तिकरण को बढ़ावा देने और न्याय, समानता और सामंजस्य हासिल करने की दिशा में काम करने के लिए कार्रवाई करने का आह्वान करता है।

आदिवासी लोगों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र घोषणापत्र में शामिल किए गए अधिकारों के बावजूद भी आदिवासियों को अनोखी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिन्हें अक्सर आसपास की दुनिया द्वारा अनदेखा कर दिया जाता है। उनके रहने वाले इलाकों में खेती, खनन, पर्यटन और प्राकृतिक संसाधनों के विकास के कारण आदिवासियों के जंगलों का एक बड़ा हिस्सा नष्ट हो रहा है, जिससे उनकी जीवन शैली पर बुरा असर पड़ रहा है और प्राकृतिक पर्यावरण नष्ट हो रहा है जिसे उन्होंने पीढ़ियों से संरक्षित किया था।

भारत सरकार के जनजातीय कार्य मंत्रालय के अनुसार, भारत में आदिवासी आबादी की बात करें तो यहां लगभग 10 करोड़ 40 लाख आदिवासी रहते हैं, जो देश की कुल जनसंख्या के लगभग 8.6 फीसदी के बराबर है। भारत के मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, राजस्थान और उड़ीसा में सबसे ज्यादा जनजाति आदिवासी रहते हैं।

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की मानें तो आदिवासी लोगों की संख्या दुनिया भर की जनसंख्या का छह फीसदी से भी कम है, इनमें 15 फीसदी भारी गरीबी में जी रहे हैं।

आदिवासी या स्वदेशी लोग धरती के 28 फीसदी हिस्सों में रहते हैं और दुनिया के 11 फीसदी जंगल उनके रहने के इलाकों में शामिल हैं। वे दुनिया की अधिकांश बची हुई जैव विविधता के संरक्षक हैं

आदिवासी या स्वदेशी लोगों की खाद्य प्रणालियों में आत्मनिर्भरता का स्तर सबसे अधिक है, जो भोजन और संसाधनों के उत्पादन में 50 से 80 फीसदी तक है।

आदिवासी दुनिया की लगभग 7,000 भाषाओं में से अधिकांश बोलते हैं और 5,000 अलग-अलग संस्कृतियों का प्रतिनिधित्व करते हैं।